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India-Nepal Relation: पीएम पुष्प कमल दहल को चीन ने जिस अंदाज में दी बधाई उसे देख भारत को नेपाल के खिलाफ नई रणनीति बनाने की सख्त जरूरत

Pushpa Kamal Dahal Prachanda: विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल में नई सरकार बनने के बाद भारत को नेपाल के घटनाक्रमों पर सावधानी से नजर रखनी होगी.

What Prachanda's rise in Nepal means for India: भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में नई सरकार बन गई है. तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने ले ली है. उनके प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही चीन ने उन्हें बधाई दी. बता दें कि 'प्रचंड' चीन के करीबी माने जाते हैं. भारत के लिए 'प्रचंड' का प्रधानमंत्री बनना इसलिए ही कई मायनों में उतना फायदेमंद नहीं है. ऐसे में भारत को भी 'चीन के करीबी' नेपाल पीएम से सावधान रहने की जरूरत है. साथ ही मोदी सरकार को नेपाल को लेकर एक नई रणनीति बनाने पर भी ध्यान देना जरूरी है.

विदेश मामलों के विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि नेपाल में नई सरकार बनने के बाद भारत को नेपाल के घटनाक्रमों पर सावधानी से नजर रखनी होगी. साथ ही समग्र संबंधों को आगे बढ़ाने पर ध्यान देना होगा.

चीन ने दी प्रचंड को बधाई

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ''प्रचंड'' को प्रधानमंत्री बनने पर बधाई दी. उन्होंने बधाई देते हुए कहा कि नेपाल के पारंपरिक मित्र और पड़ोसी के रूप में, चीन नेपाल के साथ अपने संबंधों को गहराई से महत्व देता है. हम मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और सहयोग का विस्तार करने और उन्हें और गहरा करने, उच्च गुणवत्ता वाले रोड सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए नई नेपाली सरकार के साथ काम करने के लिए तैयार हैं. हमारी रणनीतिक सहकारी साझेदारी में विकास और समृद्धि के लिए चिरस्थायी मित्रता शामिल है.

चीन के राजनीतिक घटनाक्रम पर एक नजर

बता दें कि इस बार नेपाल में नेपाली कांग्रेस गठबंधन की सरकार नहीं बन पाई जबकि उनके 136 सीटें थीं. इसके बाद नेपाल का राजनीतिक खेल पलट गया. इस गठबंधन की ही एक पार्टी सीपीएन-माओवादी जिसकी कमान पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के हाथों थी वो गठबंधन से अलग हो गई और उसने अपना समर्थन के.पी ओली की CPN-UML को दे दिया. इसी उलटफेर के साथ शेर बहादुर देउबा के नेपाल के पीएम बनने का ख्वाब टूट गया.

यहां राजनीति में डील होती है. यहां भी डील हुई. प्रधानमंत्री पद के लिए ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला तय हुआ.  शुरुआती ढाई साल तक प्रचंड PM रहेंगे और फिर कमान ओली की पार्टी CPN-UML के हाथों में होगी.

भारत के साथ कैसे रहे हैं संबंध

नेपाल के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि भारत को लेकर उनका रुख क्या होगा. दरअसल इससे पहले उनका भारत के साथ संबंध कभी अच्छा तो कभी बुरा वाला रहा है. इससे पहले जब दो बार वो प्रधानमंत्री बने तो उनका चीन के प्रति खास लगाव साफ देखने को मिला था.  इसके अलावा पिछले कार्यकाल के दौरान प्रचंड ने भारत को लेकर कई ऐसे बयान भी दिए, जो चुभने वाले थे. जब साल 2009 में प्रचंड के हाथों से सत्ता चली गई थी तो उसके पीछे भी उन्होंने भारत का हाथ बताया था.

ऐसा नहीं कि प्रचंड का भारत के साथ हमेशा रिश्ता खराब रहा. साल 1996 से लेकर 2006 तक वो भारत के करीब थे. यह वह दौर था जब नेपाल की चुनी हुई सरकार और माओवादियों के बीच गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. इस दौरान नेपाल में हालात खराब थे. यही वह वक्त था जब प्रचंड समेत कई नेताओं ने भारत में शरण ले रखी थी. इस वक्त तक उनका भारत को लेकर सख्त रवैया नहीं देखने को मिलता था. 

यही नहीं जब नेपाल में स्थिति गृहयुद्ध जैसी थी और लगातार माओवादी नेताओं पर नकेल कसी जा रही थी तो भारत ने ही मदद कर इस विद्रोह को समाप्त करवाया था.  भारत की ओर से प्रचंड समेत नेपाल के माओवादी नेताओं से शांति समझौते पर नई दिल्ली में बात की गई. नवंबर साल 2006 में नई दिल्ली में माओवादियों की सात पार्टियों ने 12 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए. यहीं से प्रचंड के पहली बार पीएम बनने का रास्ता साफ हुआ था. नेपाल में प्रचंड को जनता का भारी समर्थन मिला. साल 2008 से 2009 तक प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रहे और इसमें भारत का योगदान उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में बेहद अहम था.

प्रधानमंत्री बनते ही प्रचंड के बदले सुर

जैसे ही प्रचंड ने नेपाल की कमान संभाली, भारत को लेकर उनका रुख बदल गया. उन्होंने भारत के खिलाफ कई फैसले लिए और बयान दिए. वो चीन के पक्ष में नजर आने लगे. सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि जैसे ही वो प्रधानमंत्री बने वो चीन के दौरे पर चले गए, जबकि इससे पहले कोई भी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहले भारत आता रहा था. 

इसके बाद उन्होंने एक बयान में कहा कि भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते या संधियां हुई हैं, उन्हें खत्म कर देना चाहिए या बदल देना चाहिए. बात और तब बिगड़ गई, जब प्रचंड सरकार ने तत्कालीन नेपाल आर्मी चीफ रुकमंगड़ कटवाल को पद से हटा दिया, जबकि भारत इस फैसले से पूरी तरह नाखुश था.

भारत को रहना होगा चौंकन्ना
भारत को नेपाल में प्रचंड सरकार को लेकर चौंकन्ना रहना होगा. ऐसा इसलिए भी क्योंकि नेपाल भारत का सबसे करीबी पड़ोसी है. एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन से चुनौतियों का सामना कर रहे भारत को नेपाल को लेकर कोई ठोस और नई रणनीति बनानी होगी.

दरअसल, नेपाल और भारत मित्र देश रहे हैं. दोनों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता कहा जाता है. भारत के पांच राज्यों से नेपाल की सीमा जुड़ती है. ऐसे में चीन अगर नेपाल में अपनी पैठ जमा लेता है तो वह नेपाल की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है. भारत को अब पड़ोसी मुल्क के साथ हर रणनीति पर बारिक से सोचने की जरूरत है.

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