Pushpa Kamal Dahal Interview: रविवार को नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पूर्व माओवादी गुरिल्ला पुष्प कमल दहल प्रचंड को प्रधानमंत्री नियुक्त किया. नेपाल के पीएम बनने के बाद से ही यह सवाल उठ रहा है कि वो भारत को लेकर क्या रुख रखते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वह चीन समर्थक माने जाते हैं. हालांकि अब उन्होंने इस सवाल को लेकर एबीपी न्यूज़ पर अपनी बात रखी है.


प्रो चाइना होने पर क्या कहा
पुष्प कमल दहल प्रचंड चीन समर्थक होने को लेकर कहा,'' यह आरोप बिल्कुल गलत है. आज नेपाल की राजनीति जिस तरीके से आगे बढ़ रही है. अब कोई प्रो चीन, प्रो इंडिया या प्रो अमेरिकी की बात ही नहीं है. हम सबके साथ मिलकर काम करेंगे और व्यवहार में मिलकर काम करेंगे.


किस देश पहली यात्रा पर जाएंगे


प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड किस देश जाएंगे इसको लेकर उन्होंने कहा कि मैं वहीं जाऊंगा जहां से मुझे पहले निमंत्रण आएगा. कल मेरी भारत के विदेश सचिव से बात हुई थी. शायद पहला दौरा भारत का ही हो.


जनादेश से ही देश में सरकार बनी 
नेपाल की हालिया चुनाव पर उन्होंने कहा कि नेपाल की राजनीतिक पार्टियों में संघर्ष भी है और एकता का चरित्र भी है. पीएम प्रचंड ने कहा कि जो जनादेश रहा है, उसके हिसाब से ही देश में सरकार बनी है. जनता चाहती थी कि सब मिलकर काम करे इसलिए मिलकर सरकार बनाई है. हमारी सरकार कार्यकाल पूरा करेगी. 


भारत के राजदूत ने दी सबसे पहले बधाई 
पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा कि पीएम चुने जाने पर मुझे सबसे पहले भारत के राजदूत ने बधाई थी. उसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके शुभकामनाएं दी और भारत व नेपाल के संबंधों को और मजबूत करने की बात कही. उन्होंने कहा कि पीएम बनने के बाद एबीपी न्यूज़ पर ही मैं सबसे पहले इंटरव्यू भी दे रहा हूं. 


बता दें कि कमल दहल प्रचंड का जन्म 11 दिसंबर 1954 को पोखरा के पास कास्की जिले के धिकुरपोखरी में हुआ था.  पूरी तरह से राजनीति में आने से पहले कमल दहल नें 13 सालों तक पार्टी कार्यकर्ता के तौर पर काम किया. वे नेपाल के कुछ गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं, जो लगातार 32 सालों से पार्टी के उच्च पद को संभाल रहे हैं. नेपाल में 10 सालों तक कमल दहल प्रचंड ने हिंदू राजशाही का विरोध किया था. उन्होंने साल 1996 से लेकर 2006 तक सशस्त्र संघर्ष को लीड किया. इस दौरान वो 10 सालों के लिए अंडरग्राउंड रहे, जिसमें 8 साल भारत में बिताए. हालांकि प्रचंड के नेतृत्व वाले अभियान को आखिरकार सफलता मिली और अंततः नेपाल की 237 साल पुरानी राजशाही को समाप्त करने के अपने लक्ष्य में वो सफल रही. ये सारी चीजें नवंबर 2006 में एक व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद खत्म हुआ.