नेपाल के जाजरकोट और रुकुम पश्चिम जिले में आए भूकंप में मरने वालों का आंकड़ा 157 तक पहुंच गया है. करीब 8,000 घर तबाह हो गए हैं और लोग ठंड में सड़कों पर भटकने को मजबूर हैं. 3 नवंबर को रात 11.47 बजे जब नेपाल की धरती भूकंप के झटकों से दहली तब लोग अपने घरों में सो रहे थे. अचानक धरती हिली और कुछ ही मिनटों में पूरे-पूरे के परिवार खत्म हो गए. जो बच गए वो इतनी बुरी हालत में थे कि उन्हें कोई होश ही नहीं था. जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया.


अपने प्रियजनों को खोने का सदमा बार-बार इन्हें सता रहा है. उस रात को शायद ये कभी भूल नहीं पाएंगे है. चश्मदीदों की आंखों के सामने आज भी उस रात का खौफनाक मंजर तैर रहा है कि कैसे एकदम से भगदड़ मची, मदद के लिए चारों तरफ चीख-पुकार थी और थोड़ी ही देर में ये आवाजें सुनाई देना बंद हो गईं और सन्नाटा फैल गया.


नेपाल भूकंप की चश्मदीद ने बताया कैसा था मंजर
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक,  ईशा भी उन चश्मदीदों में हैं, जिन्होंने भूकंप में अपनों को खो दिया. जाजरकोट जिले के खलंगा गांव में जब रात को भूकंप आया तब ईशा अपनी चचेरी बहनों के साथ सो रही थीं. भूकंप में सिर्फ वो ही अकेले जिंदा बची है. ईशा का कहना है कि उसे सिर्फ इतना ही याद है कि एकदम से सब गिरने लगा और चारों ओर मदद के लिए चीख-पुकार सुनाई दे रही थी और फिर एकदम सन्नाटा फैल गया. इसके बाद उसे सीधे अस्पताल में होश आया और तब पता चला कि यह भूकंप उसका सबकुछ छीनकर ले गया. जिन बहनों के साथ वह उस दिन एक कमरे में सो रही थी, अब वो इस दुनिया में नहीं है.


काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट की रिपोर्ट में मुताबिक, उर्मिला रावत और चंद्रशेखर रावत भी ईशा की तरह भूकंप के पीड़ित हैं, जिन्होंने इस भूकंप में अपने अपनों को खो दिया. जाजरकोट के भेरी के रावतगांव की रहने वाली उर्मिला ने अपने दो बेटों समेत परिवार के 6 सदस्यों को खो दिया है. उर्मिला और चंद्रकला दो बहनें थीं. भूकंप में उर्मिला के दो बेटों, छोटी बहन चंद्रकला और उसकी बेटी और परिवार के अन्य लोगों की मौत हो गई.


नेपाल भूकंप में 8,000 मकान हो गए तबाह
इस त्रासदी में हजारों लोग बेघर हो गए हैं. 8,000 घर तबाह हो गए हैं. जाजराकोट और रुकुम पश्चिम जिल के अधिकारियों ने बताया कि करीब 8,000 बिल्डिंग टूट गई हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआती जानकारी के मुताबिक, करीब 3,000 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, जबकि 5,000 बिल्डिंग पूरी तरह नष्ट नहीं हुई हैं, लेकिन काफी हद तक डैमेज हो गई हैं. नेपाल गृह मंत्रालय के प्रवक्ता नारायण प्रसाद भट्टारी ने कहा कि जो बिल्डिंग या घर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, उन्हें फिर से बनाया जाएगा. वहीं, जिनको रिपेयर करने की जरूरत है, उनको रिपेयर कर ठीक किया जाएगा.


अब तक 157 लोगों की मौत
भूकंप में मरने वालों का आंकड़ा 157 तक पहुंच गया है. रविवार को भेरी में 13 और डेड बॉडी मिली हैं और चिउरी गांव में भी 13 लोगों की मौत हुई है. पूरे जजराकोट जिले में कुल 105 लोगों की जान गई है. इसके अलावा, रुकुम पश्चिम जिले में भी 52 लोगों की मौत हुई और कुल 84 लोग घायल हुए हैं.


साल 2015 में भी ऐसे ही भूकंप से दहला था नेपाल
शुक्रवार को आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.4 मापी गई है. नेपाल के इतिहास में यह भूकंप बड़ी त्रासदी है. इससे पहले साल 2015 में 7.8 तीव्रता के भूकंप ने इसी तरह की तबाही मचाई थी, जिसमें करीब 9,000 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 8,00,000 के आस-पास घर नष्ट हो गए थे. पोस्ट डिजास्टर नीड्स असेसमेंट रिपोर्ट, 2015 के मुताबिक, इस भूकंप में 920 ऐतिहासिक इमारतें, 402 मोनेस्टरी, 7,553 स्कूल, 1,197 मेडिकल सेंटर, 415 सरकारी बिल्डिंग, सुरक्षा एजेंसियों की 216 इमारतें और विभिन्न राज्यों की 672 किमी सड़कें टूट गई थीं.   


भूकंप के लिए लंबे समय से दी जा रही थी चेतावनी
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल के पश्चिमी इलाके में कुछ सालों में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं, जिसके चलते सीस्मोलॉजी विभाग लंबे समय से सरकार को अलर्ट करता रहा है कि कभी भी यह इलाका भूकंप के जोरदार झटकों से दहल सकता है. काफी सम से भूकंप के थोड़े बहुत झटके महसूस किए जा रहे थे. पिछले महीने ही इस इलाके के बाजुरा जिले में  4 अक्टूबर को 6.3 तीव्रता के भूकंप में दर्जनों लोग घायल हो गए थे, जबकि कई घर नष्ट हो गए थे. इससे पहले जनवरी में भी इसी जिले में  भूकंप आया था, जिसमें एक महिला की मौत हो गई और 25 लोग घायल हुए थे. नेपाल के नेशनल अर्थक्वेक मीजरमेंट एंड रिसर्च सेंटर के सीनियर डिविजनल सीस्मोलॉजिस्ट लोक बिजया अधिकारी ने कहा कि हाल ही में पश्चिम नेपाल में कई बार भूकंप के झटके महसूस किए गए. पिछली घटनाओं से सीख लेकर नई इमारतों को इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि आगे इस तरह जान-माल का बड़ा नुकसान नहीं हो. उन्होंने कहा कि इतना बड़ा नुकसान इसीलिए हुआ क्योंकि सरकार ने इससे बचने के लिए तैयारियां नहीं की हुई थीं.


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