Nepalese Royal Massacre Story: 1 जून 2001 को नेपाल के शाही परिवार के 9 सदस्यों को उनके ही राजमहल में गोली मार दी गई थी. गोली चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि उसी राज परिवार के राजा का बेटा था जो आने वाले वक्त में गद्दी का वारिस बनता. कहानी जितनी सरल दिखाई देती है उतनी है नहीं. 1 जून 2001 को  नारायणहिती पैलेस में जो कत्लेआम हुआ उसमें कई तरह के सवाल अनसुलझे छूट गए. उससे कई कॉन्सपिरेसी थ्योरीज पैदा हुईं जैसे कि क्या शाही परिवार की हत्या के पीछे दूसरे देशों की एजेंसियों का हाथ था? क्या कत्लेआम से पहले प्रिंस दीपेंद्र की हत्या कर दी गई थी? जब गोलियां चली तब शाही परिवार के सुरक्षा गार्ड्स कहां थे? सबसे बड़ा सवाल कि इस कत्लेआम की वजह क्या थी? आइये सभी सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं.


1 जून के कत्लेआन की कहानी


सबसे पहले कहानी 1 जून 2001 के कत्लेआम की. 22 साल पहले नेपाल के शाही महल के त्रिभुवन सदन में एक पार्टी चल रही थी. जिसमें महाराज बीरेंद्र और महारानी एश्वर्या समेत राजपरिवार के एक दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद थे. युवराज दीपेंद्र पार्टी को हेस्ट कर रहे थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, दीपेंद्र काफी नशे में थे और नशे की हालत में उन्हें उनके कमरे में पहुंचाया गया. रात 8 बजे के करीब दीपेंद्र अचानक कमरे से बाहर निकले. दीपेंद्र ने सैनिक वर्दी पहन रखी थी और हाथ में काले दस्ताने पहने हुए थे. उनके एक हाथ में MP5K सबमशीन गन थी और दूसरे हाथ में कोल्ट एम-16 राइफल और उनकी वर्दी में 9 MM पिस्टल लगी थी. 


दीपेंद्र ने अपने पिता राजा बीरेंद्र की तरफ देखा और सबमशीन गन का ट्रिगर दबा दिया. शाही परिवार के सदस्यों ने खुद को बचाने की कोशिश की लेकिन कुछ मिनटों में ही वहां परिवार के कई सदस्यों की लाशें बिछ चुकी थीं. 


गोलीबारी करने के बाद दीपेंद्र कमरे से बाहर गार्डन की तरफ निकल गए और उनकी मां महारानी एश्वर्या और दीपेंद्र के छोटे भाई निराजन उनके पीछे भागे. दीपेंद्र ने उन्हें भी गोलियों से छलनी कर दिया. जिसके बाद दीपेंद्र ने गार्डन के बाहर तालाब के पास खुद को सिर में गोली मार ली. हालांकि, इस गोलीबारी के बाद भी महाराज बीरेंद्र और उनके कातिल बेटे दीपेंद्र की सांसे चल रही थीं. उनके साथ-साथ बाकी घायलों को भी हॉस्पिटल ले जाया गया, लेकिन महाराज बीरेंद्र सिंह बिक्रम शाह देव को बचाया नहीं जा सका. वहीं, दीपेंद्र की सांसे चल रही थीं. 


इस कत्लेआम के 14 घंटे बाद अगले दिन 2 जून को नेपाल की जनता को 11 बजे के करीब महाराज बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह के निधन की खबर दी गई और उनके ही कातिल बेटे दीपेंद्र को राजा घोषित कर दिया गया. हालांकि, तब तक नेपाल की जनता को यह नहीं बताया गया था कि शाही परिवार के सदस्यों की मौत आखिर हुई कैसे. 


नेपाल ने राजशाही को त्यागकर गणतंत्र का रास्ता अपना लिया


युवराज दीपेंद्र को कभी होश नहीं आया और 4 जून 2001 को सुबह 3 बजकर 40 मिनट पर उनकी भी मौत हो गई. दीपेंद्र की मौत के बाद नेपाल नरेश बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र तीन दिन के अंदर नेपाल के तीसरे राजा बने और उनके राजा बनने से पहले एक बेहोश शख्स 3 दिन तक नेपाल का राजा बना रहा. हालांकि,  नेपाल की राजशाही इस झटके से कभी उभर नहीं पाई और नेपाल ने राजशाही को त्यागकर गणतंत्र का रास्ता अपना लिया.  


कत्लेआम की वजह क्या थी?


सवाल यह उठता है कि जो कत्लेआम की कहानी पूरी दुनिया को पता है, वही सच है या फिर सच कुछ और? सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर दीपेंद्र के हाथों इस कत्लेआम की वजह क्या थी? बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में महाराज बीरेंद्र सिंह की चचेरी बहन और दीपेंद्र की बुआ केतकी चेस्टर ने इस राज पर से पर्दा उठाया था. 


केतकी चेस्टर कत्लेआम की रात पार्टी में मौजूद थीं लेकिन उनकी जान बच गई थी. केतकी चेस्टर ने इस कत्लेआम की वजह एक अधूरी प्रेम कहानी को बताया था. असल में युवराज दीपेंद्र 1987 से 1990 के दौरान इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे और उसी दौरान उनकी मुलाकात देवयानी से हुई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों में प्यार हो गया. 


देवयानी का भारत के सिंधिया परिवार से खास नाता है. देवयानी की मां उषा राजे राणा ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया की बेटी हैं और माधवराव सिंधिया की बहन. यानी एक तरह से देखा जाए तो देवयानी की मां ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ हैं. 


कत्लेआम को दिया अंजाम


देवयानी की मां उषा राजे राणा ने पशुपति शमशेर जंग बहादुर राणा से विवाह किया, जो राणा वंश से संबंधित एक नेपाली राजनेता थे. देवायानी इन्हीं की बेटी हैं. केतकी चेस्टर के मुताबिक दीपेंद्र देवयानी से शादी करना चाहते थे लेकिन उनके पिता बीरेंद्र को ये रिश्ता मंजूर नहीं था. दूसरी तरफ देवयानी के पिरवार को भी ये रिश्ता मंजूर नहीं था. यही नहीं, दीपेंद्र को खर्च करने के लिए मनचाहे पैसे भी नहीं मिल रहे थे और देवयानी से शादी करने पर उन्हें राजपरिवार से बेदखल करने की धमकी भी दी गई थी. जिसके चलते दीपेंद्र काफी निराश थे और इसी निराशा के चलते उन्होंने कत्लेआम को अंजाम दिया.


कॉन्सपिरेसी थ्योरीज


यह कत्लेआम का आधिकारिक वर्जन है. इसके इर्द गिर्द की कॉन्सपिरेसी थ्योरीज पर भी बात कर लेते हैं. पहली थ्योरी इशारा करती है दीपेंद्र के चाचा और महाराज बीरेंद्र के भाई ज्ञानेंद्र की और जिन्हें इस कत्लेआम के बाद महाराज बनाया गया था. असल में ज्ञानेंद्र उस वक्त उस पार्टी में नहीं थे. हालांकि, उनका बेटा पारस और परिवार के बाकी सदस्य उस पार्टी में मौजूद थे. इस कत्लेआम में आश्चर्यजनक ढंग से इन सबकी जान बच गई. जिसके बाद यह अफवाह उठी कि ज्ञानेंद्र और पारस ने मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया. 


चश्मदीद सैन्यकर्मी ने किया था ये दावा


इस अफवाह को हवा मिली एक चश्मदीद से. 2008 में राजमहल में ही ड्यूटी पर तैनात एक जूनियर आर्मी स्टाफ, जिसका नाम लाल बहादुर लामतेरी था. उसने नेपाली अखबार नया पत्रिका के सामने एक चौंकाने वाला खुलासा किया. लामतेरी ने बताया कि युवराज दीपेंद्र तो शाही परिवार के कत्लेआम से पहले ही मर चुके थे. उसके मुताबिक, उसने कत्लेआम से पहले दीपेंद्र की लाश देखी थी. दीपेंद्र को पीठ में 6 गोलियां और एक गोली बाएं बाजू पर लगी थी. अगर दीपेंद्र पहले ही मर चुके थे तो शाही परिवार पर गोलियां किसने चलाईं? लामतेरी का कहना है कि महाराज ज्ञानेंद्र का बेटा पारस उस रात पार्टी में था और उसी ने एक शख्स के जरिये शाही परिवार और दीपेंद्र की हत्या करवाई. जिस शख्स ने इन सबको मारा उसने हूबहू दीपेंद्र जैसा मास्क पहन रखा था. इस थ्योरी को इसलिए भी हवा मिली क्योंकि युवराज दीपेंद्र की मौत के बाद उनका पोस्टमार्टम नहीं हुआ था और इलाज के दौरान शाही परिवार के डॉक्टर को उनसे नहीं मिलने दिया गया था.


सुरक्षा गार्ड्स कहां थे?


कत्लेआम को लेकर अगला सवाल है कि जिस वक्त राजमहल में गोलियां चलीं तब शाही परिवार की सुरक्षा में तैनात ADC's कहां थे. गोलियों की आवाज सुनने के बाद भी वो घटनास्थल की तरफ क्यों नहीं दौड़े जबकि ये सब लोग घटना से सिर्फ 150 गज की दूरी पर मौजूद थे, जहां से इन्हें पहुंचने में सिर्फ 10 सेकेंड का समय लगता. बाद में जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 4 ADC's को बर्खास्त कर दिया गया.


'पार्टी में नहीं पहुंच पाए थे गिरिजा प्रसाद कोइराला'


नेपाल के उस वक्त के विदेश मंत्री रहे चक्र बस्तोला ने 2001 में प्रधानमंत्री रहे गिरिजा प्रसाद कोइराला के 2010 में निधन के बाद यह दावा किया था कि शाही परिवार के कत्लेआम की शाम पार्टी में पीएम (कोइराला) को भी बुलाया गया था लेकिन वह नहीं पहुंच पाए थे, जिसकी वजह से उनकी जान बच गई थी. उनका कहना था कि इस कत्लेआम में पीएम को भी निशाना बनाया जाना था.


इस कत्लेआम में एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) और अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) की भूमिका पर भी इशारा करती है. असल में इस कत्लेआम के 1 साल बाद 6 जून 2002 को नेपाल के अंडरग्राउंड माओवादी नेता बाबूराम भट्टाराई का कांतिपुर अखबार में एक लेख छपा था. जिसमें कहा गया था कि पूरी घटना एक ‘पॉलिटिकल कॉन्सपिरेसी’ थी. इस लेख में नेपाल के शाही परिवार की चीन के साथ बढ़ती नजदीकियों का हवाला देकर कत्लेआम में RAW और CIA पर निशाना साधा गया था. हालांकि, इस कॉलम के छपने की तुरंत बाद ही अखबार के तीन एडिटर्स (संपादकों) को गिरफ्तार कर लिया गया था. 


कई सवाल अब भी बरकरार


2009 में नेपाल के पूर्व पैलेस मिलिट्री जनरल बिबेक शाह ने एक किताब लिखी ‘मैले देखेको दरबार’ (राजमहल, किसने देखा) और दावा किया कि मुमकिन है इस हत्याकांड के पीछे भारत का हाथ हो. नेपाल के ही एक और नेता पुष्प कमल दहल (जो उस समय माओवादी नेता हुआ करते थे) ने भी दावा किया कि इस हत्याकांड के पीछे RAW की साजिश थी. यानी कुल मिलाकर बात इतनी है कि शाही परिवार के 9 सदस्यों का कत्ल हुआ और इस कत्ल के 22 साल बाद भी इस हत्याकांड को लेकर कई सवाल जस के तस खड़े हैं.


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