नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली नीत सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर संसद को अचानक भंग करने के निर्णय के संबंध में लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा. अदालत के अधिकारियों के मुताबिक, 275 सदस्य की प्रतिनिधि सभा को भंग करने के सरकार के फैसले के खिलाफ दायर रिट याचिकाओं पर चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्य वाली संविधान पीठ ने शुरुआती सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया.
पीठ ने प्रधानमंत्री ऑफिस, मंत्री परिषद और राष्ट्रपति ऑफिस से लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा क्योंकि सभी रिट याचिकाओं में उन्हें प्रतिवादी बनाया गया है. कोर्ट ने सदन को भंग करने के लिए सरकार द्वारा की गई सिफारिशों और उन्हें मंजूरी देने की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के आदेश की मूल प्रति भी 10 दिनों के भीतर पेश करने को कहा है.
नए मंत्रियों को दिलाई गई शपथ
रिपब्लिका अखबार ने बताया कि एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में प्रधानमंत्री ओली ने एक मंत्री और एक राज्य मंत्री को उनके मंत्रालयों से हटा दिया है और अपने मंत्रिमंडल में नौ नए चेहरों को शामिल किया. राष्ट्रपति भंडारी ने शुक्रवार शाम शीतल निवास में विशेष समारोह में नवनियुक्त मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. अखबार ने स्थायी समिति के एक सदस्य मणि थापा के हवाले से कहा कि नए मंत्रियों में कम से पांच नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी केंद्र) के नेता हैं, जिसका नेतृत्व पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ कर रहे हैं.
इन मंत्रियों को मिला प्रभार
नए मंत्रियों में ऊर्जा मंत्री के रूप में शीर्ष बहादुर रायमाझी, जल आपूर्ति मंत्री के रूप में मणि थापा, शहरी विकास मंत्री के रूप में प्रभु साह और वन और मृदा संरक्षण मंत्री के रूप में प्रेम आले शामिल हैं. गणेश थागना को सामान्य प्रशासन मंत्री, गौरी शंकर चौधरी को श्रम और रोजगार मंत्री और जूली कुमारी महतो को महिला, बाल और वरिष्ठ नागरिक मंत्री नियुक्त किया गया है.
नेपाली कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने किया विरोध
संविधान के अनुसार, मंत्रिमंडल में 25 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं. समाचार पत्र में कहा गया कि संसद भंग करने के बाद प्रचंड नीत धड़े के सात मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था और इस समय रक्षा मंत्रालय भी उनके पास है. उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर रविवार को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा प्रतिनिधि सभा भंग करने और मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के बाद नेपाल में राजनीतिक संकट पैदा हो गया. इस फैसले का नेपाली कांग्रेस सहित विभिन्न दलों ने विरोध किया है.
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