कोरोना वायरस के चलते इस वक्त सभी को चेहरे पर मास्क लगाने के साथ ही दो गज की दूरी बरतने की सलाह दी जाती है. लेकिन, बोलते या गाते वक्त किसी के मुंह से निकलने वाली सांस का अध्ययन करने का एक नया तरीका इजाद किया गया है, जिससे ना सिर्फ ये पता करने में सहुलियत होगी कि कोरोना जैसी महामारी कैसे फैलती है बल्कि मास्क के प्रभावी असर के बारे में पता करने में भी मदद मिलेगी.


'अप्लाइड ऑप्टिक्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यह बताया गया है कि मुंह से निकलने वाली सांस और आसपास की हवा के बीच के ना केवल तापमान के अंतर का अनुमान लगाया जाता है बल्कि यह भी पता किया जाता है कि आसपास की हवा में फैलने से पहले सांस कितनी दूर तक जाती है. अमेरिका स्थित रोलिंस कॉलेज से ताल्लुक रखने वाले अध्ययन के लेखक थॉमस मूर के अनुसार, 'नई तकनीक का उपयोग इस बात का अध्ययन करने के लिए भी किया जा सकता है कि बोलने के दौरान मुंह से सांस कैसे निकलती है और क्या इसका उपयोग संगीत के दौरान हिदायत देने या स्पीच थेरेपी में किया जा सकता है.


मूर के अनुसार, यह तकनीक इस बात में मदद प्रदान कर सकती है कि हम घर के बाहर रहने के दौरान किस तरह का मास्क पहनें और कितनी शारीरिक दूरी बनाकर रखें. उन्होंने कहा कि महामारी ने कई संगीतकारों को आर्थिक रूप से बहुत नुकसान पहुंचाया है और ऐसी कोई जानकारी जो उन्हें फिर से पटरी पर ला सके वह महत्वपूर्ण होगी.  यह शोध संगीत वाद्य यंत्रों के माध्यम से हवा के प्रवाह का अध्ययन करने के लिए विकसित किया गया था.


 मूर ने कहा कि जो नई तकनीक विकसित की गई है वह इस तथ्य पर आधारित है कि हवा के तापमान के आधार पर प्रकाश की गति में परिवर्तन होता है. चूंकि सांस आसपास की हवा की तुलना में गर्म होती है, इसलिए सांस लेने के दौरान जो प्रकाश निकलता है वह मूल प्रकाश से थोड़ी देर पहले कैमरे पर पहुंचता है. इसका उपयोग हवा की छवियां बनाने के लिए किया जा सकता है.