कोविड-19 वैक्सीन तक समान पहुंच के बिना महामारी का खात्मा संभव नहीं, विशेषज्ञों ने जताई चिंता
दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान चल रहा है. हर देश की चाहत है कि जल्द से जल्द आबादी के बड़े वर्ग को इम्यूनिटी मिल जाए. इस बीच, शोधकर्ताओं ने गंभीर चिंता की तरफ इशारा किया है. उन्होंने लांसेट पत्रिका में खुला पत्र लिखकर अपनी राय रखी है.
विशेषज्ञों ने चेताया है कि नई कोविड-19 वैक्सीन का विकास महामारी को उस वक्त तक खत्म करने में सक्षम नहीं होगा जब तक कि सभी देशों को जल्दी और निष्पक्ष तरीके से डोज मिल न जाएं. लांसेट मेडिकल पत्रिका में खुला पत्र लिखनेवाले लेखकों का कहना है कि अमीर मुल्कों में वैक्सीन की जमाखोरी वैश्विक स्वास्थ्य आपातकालीन स्थिति को बढ़ाएगी. उन्होंने सावधान किया 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' से कोवैक्स पहल को कई सालों तक भारी डोज की कमी का सामना करना पड़ सकता है.
विशेषज्ञों ने कोविड-19 वैक्सीन जमाखोरी पर जताई चिंता
आपको बता दें कि कोवैक्स पहल का मकसद गरीब और मध्यम आय वाले देशों तक वैक्सीन को पहुंचाना है. पत्र लिखनेवाले लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के विशेषज्ञ ओलाइवर वाउटर्स ने कहा, "कठोर सच्चाई है कि दुनिया को पहले की अन्य वैक्सीन की तुलना में अब कोविड-19 वैक्सीन के ज्यादा डोज की जरूरत है. इसलिए जब तक समान रूप से वैक्सीन का वितरण नहीं होता है, कोरोना वायरस को काबू करने में वर्षों लग सकते हैं."
वैक्सीन तक समान पहुंच के बिना बीमारी खत्म करना कठिन
दो दर्जन से ज्यादा कोविड-19 वैक्सीन या तो विकास में हैं या इस्तेमाल के लिए मंजूर हो चुकी हैं. मगर निम्न आमदनी वाले देशों को वैक्सीन की खरीदारी, भंडारण और डिलीवरी से जुड़ी चुनौतियां बरकरार है. उनको वैक्सीन की खरीदारी के लिए फंड की कमी है, इसके अलावा परिवहन और भंडारण के लिए खराब बुनियादी ढांचा भी मुंह बाये खड़ा है. वैक्सीन निर्माण और खरीद में निजी और सरकारी अप्रत्याशित निवेश के बावजूद कोवैक्स का अनुमान है कि उसे 92 विकासशील देशों के लिए 2021 में अतिरिक्त 6.8 बिलियन डॉलर की जरूरत होगी.
बिक्री के आंकड़ों के आधार पर विशेषज्ञों का कहना है कि अमीर देश दुनिया की आबादी का 16 फीसदी हैं. उन्होंने वैक्सीन के 70 फीसदी डोज को पहले ही सुरक्षित कर लिया है. उससे ये देश अपने नागिरकों पर कई बार खुराक का इस्तेमाल कर सकेंगे. पत्र में कहा गया है कि निर्माता तकनीक का ट्रांसफर विकासशील देशों को करें जिससे उनको घरेलू स्तर पर डोज बनाने और दाम पर काबू करने में मदद मिल सके.
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