भौतिकी के नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है. इस साल यह पुरस्कार जापान, इटली और जर्मनी के तीन वैज्ञानिकों को दिया जा रहा है. स्यूकूरो मनाबे और क्लॉस हैसलमैन को 'पृथ्वी की जलवायु की भौतिक मॉडलिंग, ग्लोबल वॉर्मिंग के पूर्वानुमान की परिवर्तनशीलता और प्रामाणिकता के मापन' के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने के लिए चुना गया है. तीसरे वैज्ञानिक जॉर्जियो पारिसी को 'परमाणु से लेकर ग्रहों के मानदंडों तक भौतिक प्रणालियों बदलाव और उतार-चढ़ाव की परस्पर क्रिया' के लिए चुना गया है. नोबेल पुरस्कार का आधा हिस्सा जापानी मूल के वैज्ञानिक स्यूकुरो मनाबे और अमेरिका में स्थिति प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी क्लॉस हैसलमैन के बीच साझा किया जाएगा. दोनों जलवायु विशेषज्ञों की उम्र 90 साल है.


जलवायु की भौतिक मॉडल 


कॉम्पलेक्स सिस्टम द्वारा उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करते हुए नोबेल फाउंडेशन का कहा कि जलवायु कई गतिमान भागों से मिलकर बनी होती है जो उसके व्यवहार की किसी भी भविष्यवाणी को कठिन बना देती है. मनाबे ने साल 1960 में दर्शाया था कि कैसे वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी के सतह के तापमान में वृद्धि होगी. इसी आधार पर उन्होंने मौजूदा जलवायु मॉडलों की नींव रखी थी. 


ग्लोबल वार्मिंग वास्तविक है? या यह मानव क्रियाओं के कारण वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि हुई है, जिससे तापमान बढ़ा है? जलवायु संशयवादियों का मानना है कि इस तरह के दावों का कोई निर्णायक आधार नहीं है और ग्लोबल वार्मिंग के बिगड़ने प्रभावों की सभी चेतावनियों के पूर्वानुमान को खारिज करते हैं. 


मानेबे की खोज के 10 साल बाद हासेलमैन ने मौसम और जलवायु को एक साथ जोड़ने वाला मॉडल बनाकर इस सवाल का जवाब दिया कि मौसम के परिवर्तनशील और अराजक होने के बावजूद जलवायु मॉडल विश्वसनीय क्यों हो सकते हैं. महत्वपूर्ण रूप से उन्होंने एक ऐसा तरीका विकसित किया जिससे शोधकर्ता बताने वाले संकेतों और उंगलियों के निशान की पहचान कर सकें. उनके तरीकों का इस्तेमाल "यह साबित करने के लिए किया गया है कि वातावरण में बढ़ा हुआ तापमान कार्बन डाइऑक्साइड के मानव उत्सर्जन के कारण है."


नोबेल फाउंडेशन ने बताया कि मनाबे और हासेलमैन द्वारा बनाए गए मॉडल भौतिकी के नियमों पर आधारित हैं और उन मॉडलों से विकसित किए गए हैं जिनका उपयोग मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए किया गया था.


जटिल पैटर्न समझने के लिए गणितिय मॉडल


इस साल के भौतिकी नोबेल के दूसरे भाग के प्राप्तकर्ता इटली की राजधानी रोम के 73 वर्षीय जार्जियो पारिसी हैं. उन्होंने एक गहन भौतिकी और गणितीय मॉडल तैयार किया जिससे जटिल प्रणालियों को समझना आसान हुआ.


मान लिजिए एक कमरा गुब्बारों से भरा है यदि इस कमरे में एक टेबल फैन रख दें तो पंखे की हवा गुब्बारों के चारों ओर घूमती रहेगी, जिसके बाद वे फिर से स्थिर हो जाएंगे, लेकिन यह प्रक्रिया बार-बार दोहराने पर गुब्बारे एक अलग पैटर्न में खुद को पुनर्व्यवस्थित कर लेंगे. यह भविष्यवाणी करना असंभव होगा कि पैटर्न क्या होगा. ठीक इसी प्रकार किसी पदार्थ के कण व्यवहार करते हैं. इन्हे गर्म करने पर कणों का विस्तार होता है जबकि ठंडा होने पर वे संघनित हो जाते हैं लेकिन जिस पैटर्न में कण हर बार खुद को व्यवस्थित करते हैं वह पैटर्न अलग हो सकता है. 


अपने प्रयोग के लिए पारिसी ने रेडम तरीके से पेटर्न खोजने के लिए मिश्र धातु के साथ स्पिन ग्लास लिया साल 1979 में उन्होंने  प्रतिकृतियों में एक छिपी हुए संरचना की खोज करने में कामयाब रहे और इसे गणितीय रूप से वर्णन करने का एक तरीका मिला. हालांकि उन्हे गणितीय रूप से सिद्ध करने में कई साल लगे.  


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