टोक्यो: परमाणु हथियार संपन्न उत्तर कोरिया, अमेरिका तक पहुंच सकने में सक्षम लंबी दूरी की मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है. इसके बाद जापान और दक्षिण कोरिया में अपने परमाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से जुड़ी बहस को जन्म दे दिया है. उत्तर कोरिया के हालिया परीक्षण ने पूर्वोत्तर एशिया में हथियारों की दौड़ शुरू होने की आशंकाओं को भड़का दिया है.


उत्तर कोरिया के साथ आर-पार का युद्ध होने की स्थिति में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सोल और टोक्यो में अपने पारंपरिक सहयोगियों की सुरक्षा के लिए क्या ये जोखिम मोल लेंगे कि अमेरिकी शहर प्योंगयांग के निशाने पर आ जाएं ? इस सवाल ने दक्षिण कोरिया और जापान में घबराहट पैदा कर दी है. जापान में तो परमाणु हथियार तैनात करना या विकसित करना खासतौर पर एक निषिद्ध कार्य माना जाता है क्योंकि यह एकमात्र ऐसा देश है, जो परमाणु हमलों की विभीषिका झेल चुका है.


राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर ट्रंप ने यह कहकर रोष को जन्म दे दिया था कि जापान और दक्षिण कोरिया को अपनी रक्षा के लिए अधिक जिम्मेदारी उठानी चाहिए. इस बात को लेकर भी चिंताएं हैं कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का मतलब कई हजार किलोमीटर दूर स्थित सहयोगी देशों के लिए कम सैन्य सुरक्षा से भी हो सकता है. इससे इन देशों को अपनी सुरक्षा खुद करने की जरूरत महसूस होने लगी है.


उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों में से एक परीक्षण ऐसा भी था, जिसमें मिसाइल जापान के ऊपर से होकर गई थी. परमाणु हथियारों से संपन्न और सनकी पड़ोसी की ओर से कई मिसाइलों को लॉन्च किए जाने से जापान की कई प्रमुख हस्तियों ने सवाल उठाए हैं. सवाल है कि इस वर्जित विषय पर दोबारा गौर किया जाना चाहिए या नहीं? पूर्व रक्षामंत्री शिगेरू इशिबा ने बुधवार को एक टीवी बहस में पूछा, ‘‘क्या इस बारे में और बात ना करना वाकई सही है?’’ शिगेरू प्रधानमंत्री शिंजो आबे की कंजर्वेटिव एलडीपी पार्टी में वरिष्ठ सदस्य भी हैं.


पूर्व मंत्री ने कहा, ‘‘क्या यह कहना सही है कि हम अमेरिकी परमाणु हथियारों के जरिए सुरक्षा चाहते हैं लेकिन उन्हें अपनी धरती पर नहीं चाहते. उन्होंने माना कि शांतिप्रिय जापान में यह एक भावनात्मक मुद्दा है क्योंकि जापान आज भी दूसरे विश्वयुद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी में हुए विनाश से डरा हुआ है.’’ ऐसी ही आवाजें दक्षिण कोरिया से भी आ रही हैं. दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के साथ साल 1974 में परमाणु ऊर्जा संधि की थी, जो उसपर अपने परमाणु हथियार बनाने पर प्रतिबंध लगाती है.


दक्षिण कोरिया के लोकप्रिय अखबार डोंगा इलबो ने सोमवार को एक संपादकीय में कहा कि इतनी अधिक संख्या में बनाए जा रहे परमाणु हथियारों के बीच हम हमेशा अमेरिकी परमाणु छत्रछाया में नहीं रह सकते.