अमेरिकी ऊर्जा विभाग (डीओआई) ने परमाणु संलयन ऊर्जा पर सफलता प्राप्त करने की घोषणा की है. इसका मतलब है कि अमेरिका ने पहली बार ऊर्जा के एक अनंत भंडार की खोज की है. अमेरिका न्यूक्लियर फ्यूजन (नाभिकीय संलयन) पर आधारित रिएक्टरों पर कई दशकों से प्रयोग कर रहा था लेकिन अब तक कोई अच्छा व्यावहारिक मॉडल विकसित नहीं हो सका था लेकिन अब पहली बार अमेरिका के हाथों एक बड़ी सफलता लगी है.
डीओआई ने मंगलवार इसे "प्रमुख वैज्ञानिक सफलता" बताते हुए कहा कि इस रिएक्टर की मदद से राष्ट्रीय रक्षा में प्रगति और स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा.
इस सफल प्रयोग से अमेरिका का एक रास्ता तो खुल गया, लेकिन अभी इसे औद्योगिक स्तर पर लाने में लंबा समय लगेगा. वर्तमान में इसके ऊर्जा को कई गुणा ज्यादा बढ़ाने और इस प्रक्रिया को सस्ता करने की जरूरत है. जिसे करने में अभी 20 से 30 साल लगने का अनुमान है. हालांकि लगातार गंभीर हो रहे जलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए पर्यावरण विशेषज्ञ इसे जल्द से जल्द करने की जरूरत पर बल दे रहे हैं.
1950 में शुरू हुआ न्यूक्लियर फ्यूजन पर शोध
न्यूक्लियर फ्यूजन में भारी तत्व बनाने के लिए हाइड्रोजन जैसे हल्के तत्वों को एक साथ तोड़ना शामिल है. इस प्रक्रिया में ऊर्जा का एक बड़ा विस्फोट होता है. हालांकि, 1950 के दशक में न्यूक्लियर फ्यूजन पर अनुसंधान शुरू होने के बाद से शोधकर्ता एक सकारात्मक ऊर्जा लाभ प्रदर्शित करने में असमर्थ रहे हैं. वहीं, अब लगता है कि शोधकर्ताओं ने ताले की चाबी ढूंढ निकाली है.
परमाणु संलयन से क्या फायदा
परमाणु संलयन को बनाए जाने की कोशिश काफी लंबे अरसे से की जा रही है. अमेरिका के अलावा भी कई देश इसे बनाने में सफलता पाने के लिए लगातार प्रयोग कर रहे हैं. यह ऊर्जा के एक अनंत भंडार की खोज की है. अगर सब कुछ सही रहा तो आने वाले कुछ दशकों बाद गैस, पेट्रोल और डीजल से अमेरिका की निर्भरता कम हो सकती है. और ऐसा होने सऊदी अरब, रूस, कतर, ओमान, नाइजीरिया जैसे तेल उत्पादक देशों के लिए अच्छी खबर नहीं है.
परमाणु संलयन यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को खत्म कर सकता है. आसान भाषा में समझे तो यह सूरज को शक्ति देने वाली ऊर्जा की नकल करता है.
ये देश भी कर रहा है रिएक्टर बनाने की तकनीक पर काम
अमेरिका ने रिएक्टर के निर्माण में सफलता तो पा ली है लेकिन विश्व में अमेरिका के अलावा भी कुछ देश हैं जो फ्यूजन आधारित परमाणु रिएक्टर बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. इसमें 35 देशों के सहयोग से चल रहे अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट आईटीईआर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जो फ्रांस में चल रहा है. इस तरीके में डोनट के आकार वाले चैंबर में मथे हुए हाइड्रोजन प्लाज्मा पर मैग्नेटिक कनफाइनमेंट तकनीक आजमाई जा रही है.
क्या है परमाणु संलयन
दो या दो से ज्यादा परमाणु एक बड़े परमाणु में जुड़ते हैं तभी परमाणु संलयन होता है. इस प्रक्रिया में काफी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है. यह एक मानव निर्मित प्रक्रिया है जिससे इंसान सूर्य के समान ऊर्जा उत्पन्न कर पाने में कामयाब होंगे. वर्तमान में इस परमाणु संलयन या न्यूक्लियर फ्यूजन पर कईं वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं. संलयन प्रोजेक्ट्स मुख्य रूप से ड्यूटेरियम और ट्रिटियम तत्वों का उपयोग करती हैं. ये दोनों हाइड्रोजन के समस्थानिक हैं.
परमाणु संलयन की खोज से दुनिया पर कैसे पड़ेगा असर
परमाणु रिएक्टरों से जो ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, उसका इस्तेमाल दुनिया में बिजली निर्माण के साथ-साथ अलग-अलग ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए होता है. परेशानी यह होती है कि उसमें न्यूक्लियर कचरे का भी निर्माण होता है, जिसे खत्म करना काफी मुश्किल होता है. वहीं दूसरी ओर, परमाणु संलयन के जरिये मुख्य रूप से ड्यूटेरियम और ट्रिटियम तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है और ये दोनों हाइड्रोजन के समान हैं. आसान भाषा में कहें तो न्यूक्लियर फ्यूजन से किसी तरह का कचरा उत्पन्न नहीं होता है.
बीबीसी के एक रिपोर्ट में कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के निदेशक डॉ किम बुडिल ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है. पिछले 60 सालों में हजारों लोगों ने इस प्रयास में योगदान दिया है. परमाणु संलयन वह प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य तारों को शक्ति प्रदान करती है.
यह प्रकाश परमाणुओं के जोड़े को लेकर और उन्हें एक साथ मजबूर करके काम करता है - यह "संलयन" बहुत सारी ऊर्जा जारी करता है.
फ्यूजन-संचालित भविष्य कितना करीब ?
बीबीसी के रिपोर्ट में साइंस एडिटर रेबेका मोरेसे कहती हैं कि इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने जितनी ऊर्जा उत्पन्न की है वह बहुत कम है. बस कुछ केटल्स को उबालने के लिए पर्याप्त है. लेकिन यह जो दर्शाता है वह बहुत बड़ा है.
इस प्रयोग का सफल होने फ्यूजन-संचालित भविष्य का वादा एक कदम और करीब है. लेकिन सूर्य जितनी ऊर्जा उत्पन्न करने तक का रास्ता अभी भी बहुत लंबा है. इस प्रयोग से पता चलता है कि विज्ञान काम करता है. अब वैज्ञानिकों को इसकी ऊर्जा बढ़ाए जाने पर काम करना होगा. उन्होंने कहा कि इस प्रयोग में अरबों डॉलर खर्च हुए हैं, फ्यूजन सस्ते में नहीं आता. लेकिन इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत का वादा निश्चित रूप से एक बड़ा प्रोत्साहन होगा.