आज ही के दिन मलाला युसुफजई पर हुआ था तालिबानी हमला, जानें उनके नोबेल पुरस्कार जीतने तक की सारी कहानी
मलाला उस वक्त सिर्फ 15 साल की थीं जब तालिबान ने नौ अक्टूबर 2012 को लड़कियों की शिक्षा और शांति के लिए आवाज उठाने के लिए उन्हें गोली मार दी थी. तालिबानी आतंकी उस बस पर सवार हो गए जिसमें मलाला अपने साथियों के साथ स्कूल जा रही थीं.
नौ अक्टूबर का दिन इतिहास में पाकिस्तान में 15 साल की एक किशोरी पर तालिबान के बेरहम आतंकवादियों के घातक हमले का साक्षी है. पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की हिमायत करने वाली मलाला यूसुफजई पर तालिबान ने हमला किया और सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की.
स्कूल से घर लौट रही मलाला पर हुआ यह हमला घातक था, लेकिन मलाला का हौसला भी कम न था. ब्रिटेन में लंबे इलाज के बाद वह ठीक हुईं और एक बार फिर अपने अभियान में जुट गईं. सबसे कम उम्र में शांति का नोबेल जीतने वाली मलाला आतंकवादियों के बच्चों को भी शिक्षा देने की पक्षधर है ताकि वह शिक्षा और शांति का महत्व समझें.
बीबीसी में गुल मकाई के नाम से लिखती थीं डायरी
उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहने वाली मलाला ने 11 साल की उम्र में गुल मकाई नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरु किया. साल 2009 में डायरी लिखने की शुरुआत करने वाली मलाला स्वात इलाके में रह रहे बच्चों की व्यथा सामने लाती थीं. उस समय स्वात इलाके में तालिबान का खतरा बहुत ज्यादा था. डायरी के जरिए बच्चों की कठिनाइयों को सामने लाने के लिए मलाला को वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. साल 2011 में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया.
2012 में तालिबान में सिर में मारी गोली
मलाला उस वक्त सिर्फ 15 साल की थीं जब तालिबान ने नौ अक्टूबर 2012 को लड़कियों की शिक्षा और शांति के लिए आवाज उठाने के लिए उन्हें गोली मार दी थी. तालिबानी आतंकी उस बस पर सवार हो गए जिसमें मलाला अपने साथियों के साथ स्कूल जा रही थीं. तालिबानी आतंकियों ने बस में पूछा, ‘मलाला कौन है?’ सभी खामोश रहे लेकिन उनकी निगाह मलाला की ओर घूम गईं. आतंकियों ने मलाला पर एक गोली चलाई जो उसके सिर में जा लगी.
इस हमले में वह बुरी तरह जख्मी हो गई थीं. उन्हें पेशावर के मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर इलाज के लिए ब्रिटेन में बर्मिंघम ले जाया गया था. हमले के करीब छह साल बाद 31 मार्च 2018 को पहली बार पाकिस्तान में स्वात घाटी में अपने घर लौटीं.
नोबेल पुरस्कार जीतने वाली सबसे कम उम्र की शख्स
तालिबानी आतंकियों के उन पर किए गए हमले का अंतरराष्ट्रीय स्तर निंदा हुई. इस हमले के विरोध में दुनिया भर के लोगों ने मलाला का साथ दिया. इसके बाद मलाला ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह तालिबानी हमले को मात देकर दुनिया के सामने महिलाओं की आवाज को बुलंद करने वाली महिला बनकर उभरीं. साल 2014 में मलाला को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला. मलाला 17 साल की उम्र में नोबेल पाने वाली सबसे युवा पुरस्कार विजेता हैं.
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