अभी हाल ही में पाकिस्तान ने तालिबान शासित अफगानिस्तान पर एयरस्ट्राइक की है. पाकिस्तान के इस हमले में अफगानिस्तान के करीब 50 लोग मारे गए हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. पाकिस्तान की सीमा से लगे अफगानिस्तान के पकतिका प्रांत के पहाड़ी इलाकों में किए गए इन हमलों में पाकिस्तान ने पाकिस्तानी तालिबान यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ट्रेनिंग सेंटरों को तबाह करने का दावा किया है. इस हमले की वजह से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जंग जैसी नौबत आ गई है. ऐसे में सवाल है कि आखिर ये पाकिस्तानी तालिबान है क्या, आखिर ये पाकिस्तानी तालिबान अफगानिस्तानी तालिबान से अलग क्यों है और क्या अब इस पाकिस्तानी तालिबान यानी कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का अगला मकसद अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान पर कब्जा करना है. 

11 सितंबर 2001 को जब अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ तो उसका बदला लेने के लिए अमेरिका अफगानिस्तान में दाखिल हो गया. वहां पर अलकायदा और तालिबान के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. अमेरिका के हमले में हजारों तालिबानी लड़ाके मारे गए, लेकिन जो बचे उनमें से कुछ तो अफगानिस्तान में ही छिपकर रहने लगे और कुछ भागकर पड़ोसी देश पाकिस्तान चले गए. अब लड़ना इनकी आदत थी, तो पाकिस्तान जाकर भी इन्होंने अलग-अलग नाम से कई आतंकी गुट बनाए और छोटे-मोटे हमले जारी रखे. तो अफगानिस्तान में तालिबान के खात्मे की कोशिश में लगा अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ भी सख्त हो गया. अमेरिका ने पाकिस्तान से भी कहा कि या तो वो इन आतंकियों का सफाया करे या फिर अमेरिका पाकिस्तान को और पैसे नहीं देगा.

अमेरिका और उसके पैसे के दबाव में झुकते हुए पाकिस्तान ने फेडरली एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरिया यानी फाटा में कब्जा जमाए आतंकियों के ठिकाने पर साल 2007 में बाकायदा मिलिट्री ऑपरेशन किया. नतीजा ये हुआ कि कुल 13 आतंकी संगठन एक साथ आ गए और उन्होंने मिलकर एक नया संगठन बनाया जिसका नाम रखा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी कि टीटीपी. इसका मुखिया बना पाकिस्तान के वजीरिस्तान प्रांत का रहने वाला आतंकी बैतुल्लाह महसूद. पाकिस्तान में बना ये संगठन चाहता था कि

* पूरे पाकिस्तान में शरिया लागू हो.
* पाकिस्तान में महिलाओं की पढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए.
* पाकिस्तान के संविधान को भंग कर देश को शरीयत के हिसाब से चलाया जाए.
* अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं को बाहर निकाला जाए.
* फाटा यानी कि फेडरली एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरिया से पाकिस्तानी फौजें बाहर चली जाएं.

तब की पाकिस्तान सरकार ने इस आतंकी संगठन की एक भी बात नहीं मानी. 25 अगस्त, 2008 को पाकिस्तान की सरकार ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया. जब अफगानिस्तान वाले तालिबान को लगा कि पाकिस्तानी तालिबान कमजोर हो रहा है, तो तालिबान को बनाने वाले मुल्ला ओमर ने दिसंबर 2008 और जनवरी 2009 के बीच तालिबान के प्रभावी नेता मुल्ला अब्दुल जाकिर के नेतृ्त्व में एक प्रतिनिधिमंडल टीटीपी के पास भेजा ताकि टीटीपी अफगानिस्तान में दाखिल अमेरिकी सैनिकों से लड़ने में अफगानिस्तान वाले तालिबान की मदद कर सके. टीटीपी के तीन सबसे बड़े आतंकी यानी कि इसे बनाने वाला बैतुल्लाह महसूद, हाफिज गुल बहादुर और मौलवी नजीर तालिबानी नेता मुल्ला ओमर की बात से सहमत हो गए और कहा कि वो अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के खिलाफ लड़ने में तालिबान की मदद करेंगे.

जब अमेरिका को पता चला कि टीटीपी अफगानिस्तान वाले तालिबान की मदद करने जा रहा है तो अमेरिका ने पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में कई ड्रोन हमले किए और टीटीपी को निशाना बनाया. ऐसे ही एक हमले में अगस्त 2009 में बैतुल्लाह महसूद मारा गया. बैतुल्लाह के मारे जाने के बाद लीडरशिप को लेकर टीटीपी में खूब उठापटक हुई और आखिरकार हकीमुल्लाह मेहसूद के रूप में टीटीपी को नया लीडर मिल गया. इसके बाद बैतुल्लाह महसूद की हत्या का बदला लेने के लिए टीटीपी के स्यूसाइड बॉम्बिंग के मुखिया कारी महसूद ने दिसंबर 2009 में अफगानिस्तान में बने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के कैंप और मई 2010 में अमेरिका के न्यू यॉर्क के मैनहट्टन के टाइम्स स्क्वॉयर पर आत्मघाती हमले करवा दिए.  इतना ही नहीं म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार हुआ तो टीटीपी ने म्यांमार में भी दंगे करवा दिए और पाकिस्तान सरकार पर इस बात के लिए दबाव डाला कि पाकिस्तान सरकार इस्लामाबाद में बने म्यांमार के दूतावास को बंद कर दे और म्यांमार से अपने रिश्ते खत्म कर दे.

ये सब देखते हुए अमेरिका ने 1 सितंबर, 2010 को टीटीपी को ग्लोबल टेररिस्ट ऑर्गनाइजेशन की लिस्ट में डाल दिया. और साथ टीटीपी के मुखिया हकीमुल्लाह महसूद और कभी बैतुल्लाह महसूद के प्रवक्ता रहे टीटीपी आतंकी वली उल रहमान को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दिया. इनके उपर 50 लाख डॉलर का इनाम भी घोषित कर दिया गया. सख्ती बढ़ती देख टीटीपी के नेताओं ने पाकिस्तान सरकार के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की. लेकिन इसकी वजह से टीटीपी टूट गया.  फरवरी 2014 में मौलाना ऊमर कासमी के नेतृत्व में टीटीपी के एक धड़े ने टूटकर नया संगठन बना लिया और नाम दिया अहरार-उल-हिंद.फिर एक नया संगठन बना तहरीक-ए-तालिबान साउथ वजीरिस्तान . फिर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जमात-उल-अहरार बना. कुछ टीटीपी आतंकी पाकिस्तान छोड़कर इराक चले गए और वहां आईएसआईएस में शामिल हो गए. कुछ लड़ाके अमेरिका की ड्रोन स्ट्राइक और कुछ पाकिस्तानी सेना के ऐक्शन में भी मारे गए. लेकिन 22 जून 2018 को अफगानिस्तान में हुई अमेरिकी ड्रोन स्ट्राइक में टीटीपी के तब के मुखिया रहे मुल्ला फजलुल्लाह के मारे जाने के बाद जब नूर वली महसूद ने कमान संभाली, टीटीपी ने फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया. और इसी के साथ टीटीपी के लक्ष्य भी बदल गए.

2007 में बैतुल्लाह महसूद का बनाया जो टीटीपी पाकिस्तान में शरिया लागू करने की मांग कर रहा था, जो पाकिस्तान में महिलाओं की पढ़ाई पर रोक लगाने की मांग कर रहा था, जो फाटा यानी कि फेडरली एडमिनिस्ट्रेटेड ट्राइबल एरिया से पाकिस्तानी फौजों को बाहर करने की मांग कर रहा था, वही टीटीपी नूर वली महसूद के कमान संभालते ही अब सीधे तौर पर पाकिस्तान की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात करने लगा. उसने पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ जिहाद का ऐलान कर दिया और कहा कि उसका मकसद पाकिस्तान की सरकार को उखाड़कर वहां खलीफा का शासन स्थापित करना है.

टीटीपी की ताकत तब और बढ़ गई जब तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान पर अपना शासन स्थापित कर लिया. अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आने के साथ ही काबुल की जेलों से बंद सैकड़ों टीटीपी कैदियों को रिहा कर दिया गया. इन कैदियों में टीटीपी के उप संस्थापक अमीर मौलवी फकीर मोहम्मद जैसा आतंकी भी शामिल था. अपने साथियों की रिहाई से खुश टीटीपी के आतंकियों ने पूर्वी अफगानिस्तान में रैलियां निकालकर जश्न भी मनाया था. 2022 में इस तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान में 150 से ज्यादा हमले किए. 28 नवंबर, 2022 को तो टीटीपी के सुरक्षा प्रमुख मुफ्ती मुजाहिम ने ऐलानिया तौर पर कहा था कि अब टीटीपी पूरे पाकिस्तान में हमले करेगा. और टीटीपी ने वही शुरू किया, जिसकी वजह से अब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में घुसकर एयर स्ट्राइक की है. और ये कोई पहली बार नहीं है. इस साल में पाकिस्तान दो-दो बार एयरस्ट्राइक कर चुका है, जिसकी वजह से अब असली तालिबान भी पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से में है. और अगर असली वाले तालिबान का गुस्सा और भड़का तो फिर अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच भी एक जंग तो तय है.


 


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