Pakistan-US Anti-Terror Talks: पाकिस्तान को लेकर अमेरिका की विदेश नीति में एकदम से बदलाव देखने को मिल रहा है. पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद का सबसे बड़ा स्पॉन्सर स्टेट पाकिस्तान है. इसके बाद भी बाइडेन प्रशासन पाकिस्तान के साथ आतंकवाद पर बातचीत शुरू करने जा रहा है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी ने शुक्रवार (03 फरवरी) को इसकी जानकारी दी.


बिलावल भुट्टो-जरदारी ने पाकिस्तान की अंग्रेजी अखबार डॉन को बताया कि पाकिस्तान और अमेरिका अगले महीने आतंकवाद से निपटने के अपने प्रयासों के समन्वय की संभावनाओं का पता लगाने के लिए बातचीत करेंगे. वॉशिंगटन के एक दिवसीय दौरे पर पहुंचे बिलावल ने अमेरिकी विदेश विभाग के काउंसलर डेरेक चॉलेट के साथ एक अलग बैठक की. 


'पाकिस्तान के साथ खड़ा है अमेरिका'


इस दौरान चॉलेट ने उन्हें आश्वासन दिया कि अमेरिका सभी की सुरक्षा के लिए आतंकवाद का मुकाबला करने में पाकिस्तान के साथ खड़ा है. चॉलेट ने बैठक के बाद एक ट्वीट में कहा, "उन्होंने पेशावर में हाल की बमबारी पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की और पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता और बाढ़ से उबरने की दिशा में प्रगति पर चर्चा की." बिलावल ने डॉन अखबार को बताया कि यह वार्ता पिछली गर्मियों की विनाशकारी बाढ़ से उबरने के अलावा आतंकवाद पर पाकिस्तान के प्रयासों पर केंद्रित थी.


बिलावल ने की अमेरिका की तारीफ


बैठक के बाद बिलावल ने कहा, "न केवल द्विपक्षीय सहायता के लिए बल्कि जिनेवा सम्मेलन का समर्थन करने के लिए भी हम अमेरिका से मिले समर्थन के लिए आभारी हैं." बिलावल ने कहा, "जब उन्होंने पिछले साल के अंत में वॉशिंगटन का दौरा किया था तो उन्हें पाकिस्तान के बाढ़ राहत कार्यक्रमों के लिए धन जुटाने की चिंता थी, लेकिन अमेरिकियों ने वास्तव में मदद की. अमेरिकियों ने न केवल द्विपक्षीय रूप से बल्कि अन्य देशों और दानदाताओं तक भी पहुंचे और उन्हें मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया."


अमेरिका ने पहले भी मदद की थी


बता दें कि पिछले महीने पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र ने जिनेवा में एक दिवसीय सम्मेलन की सह-मेजबानी की. यहां पाकिस्तान ने अपने पुनर्वास और पुनर्निर्माण के प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मांगा था. पाकिस्तान ने सम्मेलन में तकरीबन 9 बिलियन डॉलर जुटाए, जितना उससे संयुक्त राष्ट्र में माना था उससे एक बिलियन डॉलर ज्यादा था. माना जाता है कि अमेरिका ने इस लक्ष्य को हासिल करने में पाकिस्तान की मदद की थी.


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