(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Dakra Massacre : पाकिस्तान में 600 से ज्यादा हिंदुओं के कत्ल की कहानी, कैसे हुई हत्या, रूह कांप जाएगी
Pakistan Killed Many Hindus : 25 मार्च 1971 की रात से पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार शुरू किया था. 450 से अधिक लोगों को ट्रेन के डिब्बों में बंद कर भेड़ियों की तरह हमला कर मार दिया गया
Pakistan Killed Many Hindus : 26 मार्च 1971 में जब पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश की स्थापना हो रही थी, तब सैंकड़ों हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. 25 मार्च 1971 की रात से पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार शुरू किया था. कई लोगों को तो धोखा देकर अपने पास बुलाया कि वह उन्हें ट्रेन के रास्ते वापस भेज देगा और 450 से अधिक लोगों को ट्रेन के डिब्बों में बंद कर भेड़ियों की तरह हमला कर मार दिया गया. जिन लोगों ने तुरंत गोली मारने की मांग की तो उन्हें चाकू घोंपकर मारा गया. पाकिस्तानी सेना ने यह कहते हुए शत्रुतापूर्ण जवाब दिया कि पाकिस्तान की गोलियां इतनी सस्ती नहीं हैं कि उन पर बरबाद की जाएं. घना अंधेरा था और लाशें रेलवे ट्रैक पर बिखरी पड़ी थीं. केवल 8 से 10 लड़के ही गोलियों से बचकर भागने में सफल रहे. इंडिया टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उनमें से बचे कुछ लोग अब भी उस मंजर को याद करते हैं तो उनकी रूह कांप जाती है.
10,000 अधिक निहत्थे बंगालियों पर चली गोली
रिपोर्ट में बताया गया कि 25 मार्च 1971 की रात से ही पाकिस्तानी सेना ने धोखे की रणनीति अपनाई. कुछ रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि इस क्रूर जातीय सफाए में 3 मिलियन लोग मारे गए थे. वहीं, 200,000 से 300,000 महिलाओं का यौन शोषण किया गया था. हालांकि, पाकिस्तान की सेना अब भी इन सबको खारिज करती है.
गोलीबारी में बचे सुरेन्द्रनाथ बैरागी बताते हैं कि पाकिस्तान की सेना से बचने के लिए 20 मई 1971 को लोग इधर उधर भागने लगे थे. भारत में घुसने की कोशिश कर रहे लगभग 10,000 शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल की सीमा पर पाकिस्तानी सेना ने गोलीबारी में मार गिराया गया था.
बांग्लादेश के खुलना में लिबरेशन वॉर आर्काइव म्यूजियम के ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य शेख बहारुल आलम ने बताया कि युद्ध शुरू होने से 15 दिन पहले पाकिस्तानी सेना ने करीब 10,000 स्थानीय लोगों पर हमला किया था. बहारुल ने कहा कि चुकनगर में 1971 के सबसे क्रूर नरसंहार में शहीदों की सही संख्या अभी भी अज्ञात है, लेकिन 10,000 से 12,000 निर्दोष निहत्थे बंगाली मारे गए थे.
स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि मानव इतिहास में ऐसी कोई अन्य घटना नहीं है, जिसमें इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में लोग मारे गए हों. शोधकर्ता शहरयार कबीर ने दावा किया कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से 51 वर्षों में लगभग 3,500 कब्रों की पहचान की गई है. 26 मई 1971 को पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के सिलहट जिले के बालागंज के बुरुंगा के स्कूल में 94 हिंदुओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. प्रत्यक्षदर्शियों ने ये भी बताया कि हिंदुओं को स्कूल के कक्ष में ले जाया गया, जबकि मुसलमानों को कक्षा में ले जाया गया. हिंदू और मुस्लिम दोनों समूहों को कलमा पढ़ाया गया और पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाने के लिए कहा गया. सारा पैसा और सोने के गहने ज़ब्त करने के बाद ज्यादातर मुसलमानों को छोड़ दिया गया. लोगों के हाथ पैर बांधकर मशीनगन से गोलियां चलाई गईं.
कुएं के पास मिली थीं हड्डियां
1991 में ढाका के एक कुएं के पास दशकों पुरानी हड्डियां और खोपड़ियां मिलीं. खुदाई करने पर वहां 70 से अधिक कंकाल और 5,000 से अधिक हड्डियां मिलीं, जिससे 1971 में पाकिस्तानी सेना और समर्थक मुसलमानों की क्रूर नरसंहार की बात सामने आई. अपराधियों ने हजारों लोगों को गोलियों से भून दिया, उनके सिर काट दिए और उनके शवों को पंप हाउस के पास एक कुएं में फेंक दिया.
700 के आसपास हिंदुओं को लाइन में लगाकर मार दिया था
इंडिया टूडे की रिपोर्ट में लिखा गया है कि 21 मई को रज्जब अली अपनी सेना के साथ 2 बड़ी नावों में सवार होकर डकरा पहुंचे. डाकरा गांव में शरणार्थियों की भरमार थी, जो भारत जाना चाहते थे. रजाकारों ने जो भी सामने पाया, उस पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. कुछ रजाकारों ने हर हिंदू घर की जांच की कि कहीं और पुरुष तो नहीं हैं और उनमें से कुछ ने साड़ी पहन रखी थी. मंदिर के सामने सभी पुरुषों को खड़ा करके गोलियां चलाई गईं. कुछ ही सेकंड में सैकड़ों लोगों को गोलियों से भून दिया गया. पेरिखाली यूनियन के तत्कालीन अध्यक्ष शेख नजरुल इस्लाम ने दावा किया कि उस दिन कम से कम 646 लोग मारे गए थे. घटना के प्रत्यक्षदर्शी गिलाटाला स्कूल के शिक्षक परितोष कुमार बनर्जी का मानना है कि मृतकों की संख्या 600 से 700 के बीच थी.
2009 में शेख हसीना ने सत्ता में आने पर युद्ध अपराध न्यायाधिकरण के गठन का आदेश दिया, जो युद्ध पीड़ित परिवारों के लिए राहत की बात थी. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का उद्देश्य 1971 में मानवता के खिलाफ अपराध करने वालों को सजा दिलाना था.