पाकिस्तानी सेना के ‘लाडले’ बने इमरान ने 2012 में कहा था- ‘सेना के दिन अब लद गए’
इमरान की पार्टी पीटीआई ऐसे समय में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है जब उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टियों और कई कमेंटेटर्स का मानना है कि पूर्व क्रिकेटर अब सेना के ‘लाडले ’ बन गए हैं और सेना उनकी मदद के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम कर रही है. ऐसे में इमरान के 2012 के बयान और उनके आज के रुख में बड़ा फर्क देखा जा रहा है.
![पाकिस्तानी सेना के ‘लाडले’ बने इमरान ने 2012 में कहा था- ‘सेना के दिन अब लद गए’ Pakistan Army's new poster boy Imran Khan said in 2013 that Army's day's are over पाकिस्तानी सेना के ‘लाडले’ बने इमरान ने 2012 में कहा था- ‘सेना के दिन अब लद गए’](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2018/07/26224449/AP_18206272102761.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: पाकिस्तान के आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान को फिलहाल देश की ताकतवर सेना का ‘लाडला’ माना जा रहा है, लेकिन करीब छह साल पहले उन्होंने बयान दिया था कि पाकिस्तान में ‘सेना के दिन अब लद गए हैं.’
इमरान ने कहा था सेना के दिन लद गए हैं इमरान की पार्टी पीटीआई ऐसे समय में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है जब उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टियों और कई कमेंटेटर्स का मानना है कि पूर्व क्रिकेटर अब सेना के ‘लाडले’ बन गए हैं और सेना उनकी मदद के लिए पर्दे के पीछे रहकर काम कर रही है. ऐसे में इमरान के 2012 के बयान और उनके आज के रुख में बड़ा फर्क देखा जा रहा है.
साल 2012 में स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक के दौरान एक इंटरव्यू में इमरान ने कहा था, ‘‘सेना के दिन लद गए हैं. आप पाकिस्तान में जल्द ही एक सच्चा लोकतंत्र देखेंगे.’’
अब कहा सेना को अपने साथ लेकर चलूंगा इमरान के इस बयान के बाद जब पाकिस्तान में चुनाव हुए थे तो उनकी पार्टी पीटीआई कुछ ही सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन कल हुए चुनाव के बाद सामने आ रहे नतीजों में उनकी पार्टी शानदार प्रदर्शन करती दिख रही है. गौरतलब है कि सेना के बारे में इमरान की राय में भी अब बड़ा बदलाव आ गया है.
इस साल मई में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में इमरान ने कहा था, ‘‘यह पाकिस्तान की सेना है , दुश्मन की सेना नहीं है. मैं सेना को अपने साथ लेकर चलूंगा.’’
साल 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद से अब तक लगभग आधे समय वहां सेना का ही शासन रहा है. पाकिस्तान की लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई असैन्य सरकारों में भी सेना का दखल रहा है. भारत को लेकर भी इमरान की राय में अब बदलाव नजर आता है.
भारत से अच्छे रिश्ते चाहते हैं इमरान साल 2012 में इमरान भारत के साथ ‘बेहतरीन रिश्ते’ चाहते थे, लेकिन इस बार के चुनावों में उन्होंने भारत पर पाकिस्तानी सेना को ‘कमजोर’ करने और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलकर ‘साजिश’ रचने के आरोप लगाए.
मौजूदा चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद इमरान ने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए तैयार है और अगर भारत एक कदम आगे बढ़ाएगा तो वो दो कदम आगे बढ़ाएंगे. उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित हनन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कश्मीरी लोगों को तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है.
सेनाओं को बताया था अक्षम साल 2013 में दावोस में एक बार फिर एक इंटरव्यू में इमरान ने इस बात पर जोर दिया था कि सेनाएं भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय समस्याओं का समाधान तलाश पाने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने अफसोस जताया था कि संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं से शांति प्रक्रिया पीछे जा रही है.
उस वक्त इमरान ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान को अपने दम पर लंबित मुद्दे सुलझाने चाहिए और लगातार डायलॉग होना चाहिए. उन्होंने कहा था, ‘‘दुश्मनी भारत और पाकिस्तान के लोगों के हित में नहीं है...आखिरकार समाधान वार्ता की मेज पर ही होना है और मतभेद सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण वार्ता की जरूरत है.’’
इमरान ने की थी बडे़ जनमत वाले नेताओं की वकालत यह पूछे जाने पर कि क्या भारत और पाकिस्तान की सेनाओं को शीर्ष स्तर पर और ज्यादा संपर्क में रहना चाहिए, इस पर उन्होंने कहा था, ‘‘हमें मजबूत (राजनीतिक) नेतृत्व की जरूरत है. सेना से मसले हल नहीं होने वाले. सेना के लोग राजनीतिक समाधान तलाश पाने में सक्षम नहीं हैं.’’
अमेरिका के अलोचक रहे हैं इमरान इमरान ने कहा था, ‘‘आखिरकार बड़े जनादेश वाले नेता ही दोनों देशों के बीच मुद्दे सुलझा सकते हैं.’’ उस वक्त इमरान ने कहा था कि अमेरिका पाकिस्तान का इस्तेमाल ‘टिशू पेपर’ के तौर पर करता रहा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका को लेकर उनका रवैया कैसा रहता है.
आतंकियों को मुख्याधारा में लाने की वकालत की थी साल 2012 की अपनी दावोस यात्रा में इमरान ने भारतीय व्यापार चैंबरों की ओर से आयोजित समारोहों में हिस्सा लिया था जिनमें भारत के कॉरपोरेट एवं राजनीतिक जगत के नेताओं ने भी शिरकत की थी. इमरान ने यह भी कहा था कि अपने राजनीतिक सफर में जमात-उद-दावा जैसे संगठनों से बातचीत करने में कुछ भी गलत नहीं है.
उन्होंने कहा था, ‘‘यदि मैं उन्हें (चरमपंथियों) मुख्यधारा में वापस लेकर आऊं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. और यदि आप चरमपंथियों का समर्थन करने के बारे में बात करें तो क्या अमेरिका ने तालिबान का समर्थन नहीं किया था?’’
सत्ता में आने पर भारत के प्रति नीति के बारे में पूछे जाने पर इमरान ने वादा किया था कि रिश्ते सामान्य बनाने और विश्वास बहाली उपायों के लिए तेज कदम उठाए जाएंगे. इमरान ने दोनों देशों के बीच क्रिकेट संबंधों की भी वकालत की थी.
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