इस्लामाबाद: पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोराहे पर खड़ा है और उसे फैसला करना होगा कि क्या देश युवा आबादी के फायदों को उठाना चाहता है या फिर आतंकवाद की मार झेलना चाहता है.


आतंक को नकारने में युवाओं की भूमिका पर बोलने के दौरान जनरल बाजवा ने कहा कि सेना आतंकवादियों को पराजित कर देगी लेकिन समाज से चरमपंथ का सफाया करने में उसे देश के सहयोग की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘‘कृपया याद रखिए कि सेना आतंकवादियों से लड़ती है. चरमपंथ और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कानूनी एजेंसियां और समाज लड़ता है.’’ बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान एक युवा देश है जहां 50 फीसदी से अधिक आबादी 25 साल से कम उम्र की है.

बताते चलें कि भारत के खिलाफ तमाम आतंकी हमले करवाने वाला पाकिस्तान खुद भी आतंक से पीड़िता है. उनके आतंक से पीड़ित होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अमेरिकी सेना के हमले में मारे जाने के पहले ओसामा पाकिस्तानी आर्मी के कंपाउंड के ठीक बगल में रह रहा था. वहीं लखवी से लेकर हाफिज सईद जैसे आतंकियों को पाकिस्तान ने ना सिर्फ अपने देश में पनाह दी है बल्कि उन्हें शह भी दे रखा है. साल 2014 में एक स्कूल पर हुए हमले में 132 बच्चों समेत 140 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

इन तमाम बतों के बीच पाकिस्तानी सेना प्रमुख का ये बयान इस ओर इशारा करता है कि अब पाकिस्तान को भी समझ में आ रहा है कि आतंक के समर्थन के फायदे कम और नुक्सान बहुत ज़्यादा है.