पाकिस्तान: सिंध प्रांत के जिला घोटकी में एक मुर्गे को आठ महीने बाद पुलिस हिरासत से रिहाई मिली है. पुलिस ने मुर्गों की लड़ाई के खेल के दौरान छापेमारी कर मालिकों समेत हिरासत में लिया था. पिछले कुछ महीनों में बारी-बारी से सभी आरोपी जमानत पर रिहा होते गए जबकि किसी ने मुर्गों की दावेदारी नहीं की.


मुर्गे को आठ महीने बाद मिली पुलिस से रिहाई


पुलिस ने संपत्ति केस के तौर पर हिरासत में पांच मुर्गों को अपने कब्जे में रखा. इस दौरान मुर्गे पुलिस वालों के लिए सिर दर्द बने रहे. मुर्गों के खिलाने पर पुलिस को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता. प्रतिदिन 100 रुपये का बाजरा उन्हें पुलिस खरीद कर खिलाती. मुर्गों की देखभाल के लिए एक पुलिस अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी गई. बीमार या सुस्त पड़ने पर उसे डॉक्टर के पास इलाज कराने का आदेश दिया गया.


मुर्गों को बिल्लियों और कुत्तों के हमले से भी बचाने के लिए सावधानी बरतनी गई. दूसरी तरफ उसे अदालत की नाराजगी का भी डर था. मुर्गों को नुकसान से बचाने के लिए लॉकअप या मालखाने के बजाए खुली जगह पर रस्सी बांधकर रखा गया. पाकिस्तान के चार प्रांतों और विशेष तौर पर देहाती क्षेत्रों में मुर्गों की लड़ाई लोगों के मनोरंजन का एक साधन है. मुर्गों की लड़ाई पर शर्त लगाई जाती है.


कानून में सरेआम शर्त लगाने और जुआ खेलने पर ज्यादा से ज्यादा एक साल की कैद और पांच सौ रुपये जुर्माने का प्रावधान है. कुछ महीने पहले पुलिस ने 24 लोगों के साथ दो अलग-अलग जगहों पर छापेमारी कर पांच मुर्गों को हिरासत में लिया था. घोटकी के रहनेवाले जफर मीरानी ने सिविल जज की अदालत से मुर्गे को हवाले करने की गुहार लगाई. अदालत को उन्होंने बताया कि किसी काम के सिलसिले में उन्हें कराची में रुकना पड़ा था.


अदालत के आदेश पर पुलिस ने दावेदार को सौंपा


इसलिए पुलिस हिरासत में लिए गए मुर्गे के मालिकाना हक का दावा नहीं किया जा सका. लिहाजा अदालत से अपील की जाती है कि मुर्गा उसके हवाले किया जाए. अदालत ने फरियादी की अपील मंजूर करते हुए पुलिस को मुर्गा दावेदार के हवाले करने का आदेश दिया. जरवार पुलिस ने अदालत के आदेश पर मुर्गा जफर के हवाले कर दिया.


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