Women Forced To Stay In Flooded Pak Village: पाकिस्तान बाढ़ की विभीषिका का सामना कर रहा है, लेकिन यहां इंसानी जान की जगह इज्जत को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है. मर्दों की इज्जत के खातिर यहां महिलाएं बाढ़ में फंसी हुई हैं. महिलाएं यहां बाढ़ में डूबे पाक गांव में रहने को मजबूर है. बस्ती अहमद दीन (Basti Ahmad Din) गांव में ऐसा ही आलम है. इस गांव के मर्दों का मानना है कि राहत शिविरों में महिलाओं को ले जाने का मतलब होगा कि वह परिवार के बाहर के मर्दों के साथ घुलमिल जाएंगी. इससे परिवार की इज्जत को खतरा पैदा होगा.


हम नहीं जाएंगे राहत शिविर में


मूसलाधार बारिश के बाद बाढ़ के पानी से घिरे एक छोटे से पाकिस्तानी गांव बस्ती अहमद दीन  के 400 गांववाले भुखमरी और बीमारी का सामना कर रहे हैं. इसके बाद भी ये गांववाले गांव खाली करने को तैयार नहीं है. उन्होंने गांव को खाली करने की सारी दलीलें भी ठुकरा दी हैं. गांव के चारों तरफ बाढ़ का गंदा मटमैला पानी भरा है. राहत कर्मी नाव के जरिए इन गांववालों को राहत कैंप में ले जाने के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन गांववाले उनके साथ जाने से साफ इंकार कर रहे हैं. गांववालों ने एएफपी को बताया कि एक राहत शिविर में जाने का मतलब होगा कि गांव की महिलाएं अपने परिवार के बाहर के पुरुषों के साथ घुलमिल जाएंगी और इससे उनके "सम्मान" को ठेस पहुंचेगी.


गांव के सभी बुजुर्ग मर्द कहते हैं कि केवल महिलाओं के लिए "आपातकालीन" स्थितियों जैसे कि खराब सेहत में ही परिवार और गांव को छोड़ कर जाने की मंजूरी है. इस मामले में प्राकृतिक आपदाओं की कोई गिनती नहीं है. बस्ती अहमद दीन के मुरीद हुसैन (Mureed Hussain) नाम के एक बुजुर्ग ने कहा  कि वे 2010 में पिछली विनाशकारी बाढ़ के दौरान भी गांव खाली करके नहीं गए थे. उन्होंने एएफपी को बताया, "हमने तब अपना गांव नहीं छोड़ा था."  वह कहते हैं, "हम अपनी महिलाओं को बाहर जाने की अनुमति नहीं देते हैं. हमारी औरतें उन शिविरों में नहीं रह सकती हैं. यह इज्जत की बात है."


मर्दों का है फैसला, बेबस हैं औरतें


इस गांव की 17 साल की शिरीन बीबी (Shireen Bibi) से जब पूछा गया कि क्या वह सूखी जमीन पर कैंप की सुरक्षा में जाना पसंद करेंगी. उन्होंने कहा,"यह तय करना गांव के बुजुर्गों और मर्दों पर निर्भर है." इस गांव की औरतों के पास अपनी भलाई के लिए सोचने तक का हक नहीं है. बस्ती अहमद दीन में रहने वाले मुहम्मद आमिर (Muhammad Amir) ने गांव में प्रमुख जातीय समूह का जिक्र करते हुए कहा, "हम बलूच (Baloch) हैं. बलूच अपनी महिलाओं को बाहर जाने की मंजूरी नहीं देते हैं." उन्होंने आगे कहा, "बलूच अपने परिवारों को बाहर जाने देने के बजाय भूखे मरना पसंद करेंगे."


रूढ़िवादी, गहरे पितृसत्तात्मक पाकिस्तान के कई हिस्सों में महिलाएं तथाकथित इज्जत के एक सख्त दायरे में रहती हैं. यह दायरा यहां औरतों के लिए इतना सीमित है कि इससे गंभीर तौर उनके कहीं आने-जाने की आजादी प्रभावित होती है. इतना ही नहीं औरतों के परिवार से बाहर मर्दों से बातचीत पर करने पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध होता है. अगर कोई महिला ऐसा करती हैं तो उसे परिवार की शर्म और इज्जत से जोड़ कर देखा जाता है. परिवार या जाति के बाहर शादी करने पर औरतों की जान तक ले ली जाती है. पाकिस्तान में बाढ़ जैसी आपदा की स्थिति में यह कोड ऑफ कंडक्ट औरतों और लड़कियों को भोजन और चिकित्सा देखभाल जैसी बुनियादी जरूरतों से पूरी तरह से काट सकता है.


बेहाल है बस्ती अहमद दीन


बस्ती अहमद दीन के लोग अपने परिवारों को राहत शिविरों में ले जाने की जगह महंगी नावों का इस्तेमाल करना अधिक मुफीद मानते हैं. ये इन नावों से सप्ताह में एक बार नजदीकी राहत शिविरों में जाते हैं और वहां से राशन और जरूरी सामान लाते हैं. गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार मानसूनी बारिश ने इस गर्मी में पाकिस्तान के बड़े हिस्से को जलमग्न कर दिया है. बस्ती अहमद दीन जैसे गांवों के लोग अपने घरों और आजीविका के विनाश से जूझ रहे हैं. पंजाब प्रांत के रोझन इलाके के बस्ती अहमद दीन के 90 में से आधे से अधिक घर तबाह हो गए हैं. जून में बारिश शुरू होने पर गांव को घेरने खड़ी कपास की फसल अब बाढ़ वाले खेतों में सड़ रही है.


इसके साथ ही गांव को नजदीकी शहर को जोड़ने वाली धूल भरी सड़क 10 फीट पानी में धंसी है. ग्रामीणों के लिए भोजन और अन्य सामान खरीदने के लिए बाहर निकलने का एकमात्र तरीका कमजोर लकड़ी की नावें हैं. वे भी बेहद महंगी हैं.  इनके ऑपरेटर सामान्य से कहीं अधिक किराया वसूलते हैं. बस्ती अहमद दीन के परिवारों के पास अब बहुत कम राशन बचा है. इस गांव के लोगों ने बारिश के बाद जो भी गेहूं और अनाज बचाया है उस इकट्ठा कर उसे निश्चित मात्रा में इस्तेमाल करने का फैसला लिया है. सहायता पैकेज (Aid Packages) छोड़ने के लिए गांव आने वाले कई स्वयंसेवकों ने यहां के गांववालों से सुरक्षा के लिए गांव से निकलने की गुहार लगाई है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.


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