इमरान की गिरफ्तारी के बाद से जो हालात बने उसके बाद पाकिस्तान की सेना का सम्मान भी जनता की नजरों से गिर गया है. पाकिस्तान की आम जनता बड़े पैमाने पर आर्मी के खिलाफ सड़कों पर उतर आई. 


पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान को जमानत दी है लेकिन आज एक दूसरे मामले में उनकी पेशी है. पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. दूसरी तरफ पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार इमरान खान की मांग है कि 14 मई को पंजाब में चुनाव हों, लेकिन सेना और मौजूदा शाहबाज शरीफ शासन चुनावों को इस साल के अंत तक टालना चाहते थे. केंद्र में राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने की कुंजी पहले पंजाब में राजनीतिक जीत है.


इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद की तस्वीरें ये साफ करती हैं कि पाक की जनता में वहां की सेना के खिलाफ कितना गुस्सा भरा हुआ है. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक लड़की हाथ में स्ट्राबेरी लिए पाकिस्तान में फैले भ्रष्टाचार को उजागर कर रही थी. लड़की ने कैमरे के सामने हाथ लहराते हुए कहा कि मैं इस वक्त एक मंहगी चीज का आनंद ले रही हूं जो मुझे पाकिस्तान के सबसे अमीर आदमी के फ्रिज से मिली है. 


इमरान की गिरफ्तारी के बाद देश में हिंसा भड़क उठी और लाहौर में कोर कमाडंर लेफ्टिनेंट जनरल सलमान फैयाज गनी के आवास पर धावा बोल दिया गया. लाठियों से लैस भीड़ ने सब कुछ तोड़ना शुरू कर दिया. इमरान खान की गिरफ्तारी को विरोध में सड़कों पर उतरी निहत्थी जनता ने "अमेरिका ने कुत्ते पाले... वर्दी वाले वर्दी वाले" के नारे लगाए. 


बता दें कि पीटीआई और मूवमेंट फॉर जस्टिस 2018 के आम चुनावों में संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. इससे यह गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने में सक्षम हो गई. 2013 से पहले खैबर पख्तूनख्वा में केवल एक प्रांतीय चुनावी सफलता वाली पार्टी के लिए यह एक बड़ी जीत थी. इमरान खान ने एक नए पाकिस्तान और एक ऐसे देश में राजनीति की एक नई शैली का वादा किया जो लंबे समय से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के वंशवादी और भ्रष्ट नागरिक नेताओं के बोझ से दबा हुआ था . 


इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद लाहौर, कराची, इस्लामाबाद और पेशावर के प्रमुख शहरों में आम जनता सड़कों पर उतर आई. सड़कों पर उतरी आम जनता में ये गुस्सा था कि सेना देश के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करती है, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सबसे पहले गढ़ा था.


पीटीआई समर्थकों द्वारा पंजाब के रावलपिंडी में सेना के जनरल मुख्यालय (जीएचक्यू) में घुसने की कोशिश को गंभीर घटनाक्रम माना जा रहा है, पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय में आज से पहले इस तरह की घटना कभी नहीं देखी गई थी. 


आम जनता ने दिखा दिया पाक आर्मी का असली चेहरा


शुरुआती दौर से ही पाक की सेना एक राष्ट्रीय संस्था के रूप में उभरी है, जो लंबे समय से नागरिकों और राजनीतिक शक्तियों के लिए मध्यस्थ माना जाता रहा है. अब यही सेना लोगों के गुस्से का निशाना बन गई है. सेना के खिलाफ सड़कों पर उतरी आम जनता ने पाक की सेना पर जिस तरह धावा बोला वो इस बात का सबूत है कि सालों से पाकिस्तान की सेना ने जो नकाब पहना था उसे निहत्थी जनता ने नोच दिया है. दरअसल अभी तक पाकिस्तान में सेना को बहुत ही सम्मान की नजरों से देखा जाता रहा है. लेकिन गरीबी और महंगाई से जूझ रही जनता की आंखों में सेना के अफसरों के ठाटबाट खटकने लगे हैं. खबरों की मानें तो पाकिस्तान की सेना में जो जितना बड़ा अधिकारी होता है उसके पास उतनी ही संपत्ति भी हो जाती है. बिजनेस, रियल स्टेट में सेना के अफसरों का शेयर है. उनके पास पैसे की कभी नहीं होती है.


दो धड़ों में बंटी पाकिस्तान की सेना


डेकन हेराल्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में बनें मौजूदा हालात सेना के जनरलों के बीच दरार पैदा होने की वजह से भी है. इसलिए क्योंकि उनमें से कुछ का मानना है कि टीटीपी (पाकिस्तान तालिबान) के साथ शांति भरा रवैया अपनाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे अच्छा है, जबकि दूसरे जनरल सोचते हैं कि भारत के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध विकसित करना एक बेहतर दांव होगा. यानी पाकिस्तान की सेना दो धड़े में बंटी हुई है. 


सेना नेतृत्व में पहला धड़ा इमरान खान का समर्थक है, जो टीटीपी विकल्प को तरजीह देता है और इसलिए वह सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के खिलाफ है जो भारत के साथ नवाज शरीफ की शांति की कोशिश का समर्थन करते हैं. इमरान समर्थक सेना शरीफ और जरदारी के राजनीतिक परिवारों को नापसंद करती है. दूसरा धड़ा नवाज समर्थक का है. 


सेना के बीच आपसी टकराव कब शुरू हुआ ? 


2007 में दिवंगत जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ वकीलों के आंदोलन ने उनके सैन्य शासन को समाप्त करने और 2008 में चुनावों का मार्ग प्रशस्त करने में मदद की. ये पहला मौका था जब पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व और सेना के बीच टकराव की शुरुआत हुई. 


जानकारों का ये मानना है कि सेना में हुआ ये राजनीतिक टकराव की नौबत अगस्त 1988 में पूर्व राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक की एक हवाई दुर्घटना में हुई मौत के बाद दबी हुई थी. 


अक्टूबर 2022 में तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल जावेद कमर बाजवा ने वाशिंगटन डीसी की आधिकारिक यात्रा के दौरान घोषणा की कि सेना अब पाकिस्तान की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करेगी. 2014 के डॉन अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक नवाज शरीफ भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना चाहते थे जिसके लिए जरूरी था कि पाकिस्तान सेना को राजनीति से दूर रखा जाए. तब भी सेना ने इसका विरोध किया और बात आगे नहीं बढ़ पाई. 


75 साल की पाक सेना की राजनीति अब तक के सबसे खराब मोड़ पर 


पाकिस्तान की 75 साल की राजनीतिक यात्रा में नागरिक और सैन्य शासन के बीच बारी-बारी से बदलाव आया है. देश की सैन्य ताकतों ने कभी भी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को कभी भी कार्यकाल पूरा करने की अनुमति नहीं दी है. समय-समय पर सैन्य ताकतें राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध भी लगाती आई हैं. जो पाकिस्तान में लोकतंत्र को पूरी तरह से कुचलने जैसा था. 


क्या न्यूट्रल है पाकिस्तानी फौज? 


पाकिस्तान की सेना बार बार कहती आई है, कि वो राजनीति से न्यूट्रल है.  पिछले एक साल में इमरान खान के ऊपर 100 से ज्यादा मुकदमे किए गये हैं, जिसको इमरान खान ने अच्छे से भुनाया है और खुद को जनता के सामने पीड़ित की तरह पेश किया है. इमरान खान को इस तरह से गिरफ्तार करना, पाकिस्तान की सेना की सबसे बड़ी गलती है. 


पाक की सेना और भ्रष्टाचार .... शिकार बन रही आम जनता


बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक रक्षा विश्लेषक शुजा नवाज का कहना है कि पाकिस्तान में सरकार और सेना का राब्ता 'औपचारिक' और 'अनौपचारिक' दोनों ही मंचों पर रहा है. किसी जमाने में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष के बीच नियमित रूप से महत्वपूर्ण बैठकें हुआ करती थीं, इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और मौजूदा दौर में राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत सेना अपना पक्ष रखती है.


पाकिस्तान में पिछले 70 सालों में सेना का सियासी रसूख बढ़ा है, वहीं चीनी और उर्वरक कारखानों से लेकर बेकरी तक के कारोबार में उसकी भागीदारी में भी बढ़ोत्तरी हुई है. पाकिस्तानी आर्मी बिजनेस में शामिल होकर भ्रष्टाचार भी कर रही है.. 


पिछले साल नवंबर में जब जनरल कमर जावेद बाजवा पाकिस्तान के सेना प्रमुख के पद से इस्तीफा देने वाले थे, तब पाकिस्तान के एक खोजी पत्रकारिता मंच ने दावा किया था कि बाजवा को उनके कार्यकाल से फायदा हुआ है और वे अरबपति बन गए हैं. फैक्ट फोकस की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बाजवा 12.7 अरब पाकिस्तानी रुपये (4.7 करोड़ डॉलर) की संपत्ति बढ़ाने में कामयाब रहे.


कमर जावेद बाजवा के बाद पाकिस्तान में जनरल सैयद असीम मुनीर नए सेना प्रमुख बनाए गए. जिन्होंने मुश्किल से दो महीने पहले पदभार संभाला था. 


देश के बड़े व्यापारिक समूह पर है पाकिस्तान आर्मी का कब्जा


बता दें कि पाकिस्तान में एक बड़ा व्यापारिक समूह है जिसमें लगभग 3 मिलियन कर्मचारी और वार्षिक राजस्व में 26.5 बिलियन से ज्यादा है. इस व्यापारिक समूह को सेना ही चलाती है. 


यह समूह अस्करी फाउंडेशन, फौजी फाउंडेशन (पाकिस्तान सेना), शाहीन फाउंडेशन (पाकिस्तान वायु सेना), बहरिया फाउंडेशन (पाकिस्तान नौसेना), आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी और कई दूसरे संगठनों के तालमेल से चलता है. बड़ा बिजनेस होने के बावजूद ये समूह कोई भी टैक्स नहीं देता है.


यहां पर काम करने वाली आम जनता को सीधे तौर पर इसका कोई भी फायदा नहीं पहुंचता है. सारा फायदा कंपनी के शेयरधारकों को जाता है. ये शेयरधारक सेवानिवृत्त सेना के जनरल ही हैं. जबकि सेना के जनरल पहले से ही महत्वपूर्ण लाभ उठा रहे हैं. 


पाक की सेना पर बार बार ये आरोप लगाया जाता रहा है वो लगभग हर व्यावसायिक क्षेत्र में शामिल है - अचल संपत्ति से लेकर उर्वरक और सीमेंट निर्माण तक के बिजनेस में सेना का ही रसूख है और वो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करके फायदा उठा रहे हैं. 


देश के सबसे बड़े काम पर सेना का मालिकाना हक


देश के शीर्ष पांच बैंकिंग संस्थानों में शामिल अस्करी बैंक का स्वामित्व पाकिस्तानी सेना के पास है. सौर ऊर्जा से आने वाली अचल संपत्ति में भी सेना की बड़ी भागीदारी है.


लाहौर के एक पत्रकार और टिप्पणीकार अनस मुहम्मद खान ने पिछले दिनों ये दावा किया था कि पाकिस्तान की सेना कश्मीर मुद्दे सहित भारत विरोधी प्रचार में लगातार आगे बढ़ रही है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश की राजनीतिक संरचना पूरी तरह से सेना पर निर्भर है. जो जल्द ही देश को बदतर दिन दिखाएगा. 


इमरान खान और पाकिस्तान आर्मी के रिश्ते


साल 2018 में  इमरान खान सत्ता में आए और उन्होंने एक "नए पाकिस्तान" का वादा किया था. हालांकि इमरान ने हमेशा इस बात को खारिज किया है कि वे पाकिस्तानी सेना के चहेते हैं. लेकिन कई जानकार राजनीति में उनके उत्थान को इससे जोड़ कर देखते हैं.


2021 आते-आते पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल फैज अहमद और इमरान सरकार के बीच तनाव दिखा और उनके पदभार संभालने पर आर्मी चीफ बाजवा के साथ इमरान खान के रिशते कथित तौर पर खराब होने लगे.