Pakistan Economy Crisis 2023: जानें कैसे बद से बदतर हुई पाकिस्तान की GDP, महंगाई ने बहाए आवाम के आंसू, विदेशी कर्ज ने तोड़ी अर्थव्यवस्था की कमर
Pakistan Crisis: बंटवारे के बाद जहां भारत कई बड़े संकटों से उबर आया और 5वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया, वहीं, पड़ोसी पाकिस्तान कई दफा बेहतर GDP विकास दर के बावजूद कैसे कंगाल हो गया, समझते हैं आइए.
Pakistan Economy Crisis: आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के आसार नहीं दिख रहे. यहां महंगाई ने बरसों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, और पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू कम होती जा रही है. पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम बचा है. साथ ही विदेशी कर्ज बढ़कर 130 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है, बिगड़ती व्यवस्था के कारण जीडीपी में वृद्धि नहीं हो पा रही. यहां यदि व्यवस्था जल्द नहीं सुधारी गईं तो ये मुल्क दिवालिया हो जाएगा. आइए आज समझते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कैसे इस बुरी हालत में पहुंची...
दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से पीछे छूटा पाक
पाकिस्तान की गिनती दुनिया में कम आय वाली विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में की जाती है. यूनाइटेड नेशंस डेवलप्मेंट प्रोग्राम (UNDP) और वर्ल्ड बैंक द्वारा निर्धारित अधिकांश विकास संकेतकों में इसकी रैंक इन दिनों बेहद खराब बताई गई है. हाल के दशकों में इस मुल्क को दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों द्वारा पीछे छोड़ दिया गया है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज उसके सबसे बड़े बोझ में से एक है. डॉलर की तुलना में उसका रुपया दम तोड़ता ही जा रहा है. अब एक डॉलर 283 पाकिस्तानी रुपयों के बराबर है.
युवा आबादी ज्यादा, फिर भी दुनिया में 42वीं रैंक
एक ओर जहां पाकिस्तान 22 करोड़ से ज्यादा आबादी के साथ दुनिया का 5वां सबसे बड़ा देश है, वहीं जीडीपी (नॉमिनल) के मामले में यह 42वें नंबर तक गिर चुका है. यह भी तब है, जबकि यहां 71.76 मिलियन लेबर-फोर्स और लगभग 67.25 मिलियन एम्प्लॉयी हैं. यानी बड़ी वर्क-फोर्स और अत्यधिक युवा आबादी के बावजूद पाकिस्तान आर्थिक रूप से इतना मजबूत नहीं है, जितना होना चाहिए था. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक डेटाबेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की जीडीपी महज 376.493 अरब डॉलर की है, दुनिया के कई छोटे देश इस मामले में पाकिस्तान से कई गुना आगे हैं.
बढ़ती महंगाई ने फाड़ डाली आम आदमी की जेब
पाकिस्तान में इतनी महंगाई पहले कभी नहीं हुई, ईंधन और खाद्यान्न की ऊंची कीमतों की वजह से महंगाई के कारण यहां आम आदमी का दो वक्त का खाना जुटा पाना भी बड़ा मुश्किल हो गया है. मार्च की शुरूआत में पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक की एक रिपोर्ट आई, जिसमें माना था कि अब महंगाई काबू से बाहर है. यहां महंगाई 58 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई. उसके कुछ दिनों में महंगाई ने एक और रिकॉर्ड तब तोड़ा, जब स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान ने 17 फीसदी के ब्याज दर में 3 फीसदी की बढ़ोतरी करके ब्याज दर 20 फीसदी कर दी. फरवरी में यहां मासिक महंगाई दर 31.6 फीसदी हो गई.
अभी और बढ़ेगी यहां पर महंगाई दर
पाकिस्तानी सेंट्रल बैंक के MPC ने बयान में कहा कि हाल के वित्तीय समायोजन और विनिमय दर में उन्हें नुकसान हुआ है. वहीं, महंगाई दर में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में महंगाई दर को नीचे लाने की कोशिश में ब्याज दरों में बढ़ोतरी अनुमान से कम है. MPC का अनुमान है कि मुल्क मेंमहंगाई दर अभी और बढ़ेगी. इसके पीछे की एक वजह IMF की शर्तों को पूरा किए जाने वाले सुधार कार्य हैं.
घटता जा रहा विदेशी मुद्रा भंडार
अत्यधिक कर्ज लेने, कमजोर रुपये और ईंधन की ज्यादा लागत की वजह से पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम हो गया है. इसमें व्यक्तिगत और कंपनियों के भंडार को भी जोड़ दें तो जनवरी 2023 में पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार 8.4 अरब डॉलर रह गया था, जो कि फरवरी 2022 में 22.6 अरब डॉलर था. उसके बाद मार्च 2022 में यह 17.4 अरब डॉलर, सितंबर 2022 में यह 13.3 अरब डॉलर था. अब फरवरी 2023 में यह और निचले स्तर पर चला गया था, इसमें भी विदेशी मुद्रा भंडार का ज्यादातर पैसा सउदी-यूएई की जमा राशि थी, जो कि पाकिस्तान खर्च नहीं कर पाएगा.
IMF से कर्ज की किस्त पाने पर हैं निगाहें
अपने आर्थिक हालात सुधारने के लिए पाकिस्तान को तत्काल कुछ अरब डॉलर के आर्थिक पैकेज की जरूरत है, इसके लिए ही कई महीनों से पाकिस्तानी हुकूमत IMF से गुहार लगा रही है. IMF का एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान आया भी था, लेकिन 10 दिनों की बातचीत के बावजूद पाकिस्तान को किस्त जारी नहीं की गई. बल्कि बाद में IMF की डायरेक्टर ने पाकिस्तान को ये नसीहत तक दे डाली थी कि वो एक देश की तरह बर्ताव करना सीखें.
जीडीपी की ग्रोथ पर हुआ डांवाडोल
पाकिस्तान की जीडीपी ग्रोथ का भविष्य धुंधला नजर आ रहा है. 70 के दशक में इसकी जीडीपी ग्रोथ रेट 6% से ज्यादा थी. उसके बाद यह 80 के दशक में 10% तक पहुंच गई थी, हालांकि बीते करीब 20-25 वर्षों से इसमें खास बढ़ोतरी नहीं देखी गई. 2010 में यह 2% से भी नीचे चली गई थी. अब कई एक्सपर्ट्स अनुमान लगा रहे हैं कि यदि मुल्क को आर्थिक पैकेज मिला तो यह 4% तक का बूस्ट ले सकती है.