Pakistan Nuclear Test: पाकिस्तान ने आज ही के दिन यानी 28 मई, 1998 को पहली बार परमाणु परीक्षण करके दुनिया में परमाणु संपन्न देशों की सूची में शामिल हो गया था. पाकिस्तान आज उसकी खुशियां मना रहा है, लेकिन कुछ पाकिस्तान के ही विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम ने पाकिस्तान को बर्बाद कर दिया. पाकिस्तान ने अपना परमाणु कार्यक्रम भारत से बराबरी करने के लिए शुरू किया था. इसकी गवाही खुद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो ने दिया था, जिन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जनक कहा जाता है.
जुल्फिकार भुट्टो ने साल 1965 में विदेश मंत्री रहते हुए कहा था कि 'अगर भारत परमाणु बम बनाता है तो पाकिस्तान को चाहे घास, पत्तियां खाना पड़े या भूखा रहना पड़े हम परमाणु बम हासिल करके रहेंगे.' इस बयान के तीन दशक बाद पाकिस्तान परमाणु शक्ति तो बन गया, लेकिन उसी के बाद से परमाणु शक्ति वाले सबसे गरीब देश के रूप में भी पाकिस्तान को जाना जाता है. अब पाकिस्तान के विद्वानों का भी मानना है कि पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण करके अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली थी.
पाकिस्तान का परमाणु परीक्षण बड़ी गलती
पाकिस्तान के अर्थशास्त्री यूसुफ नजर ने पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण को बड़ी गलती बताया है. उन्होंने एक्स पर लिखा, 'पाकिस्तान को साल 1998 में परमाणु परीक्षण की कोई जरूरत नहीं थी. वह जनता को खुश करने के लिए एक प्रतिक्रिया थी, जो भारत के परमाणु परीक्षण के मात्र 17 दिन बाद किया गया था. फरवरी 1997 में नवाज शरीफ के सत्ता में आने से बहुत पहले ही पाकिस्तान ने परमाणु क्षमता विकसित कर ली थी.'
परमाणु परीक्षण से पाकिस्तान को नुकसान
यूसुफ नजर ने दावा किया कि परमाणु परीक्षण से पाकिस्तान को सिर्फ नुकसान ही हुआ है. इसके चलते पाकिस्तान को कई प्रतिबंधों की मार झेलनी पड़ी, पाकिस्तान में निवेश आना बंद हो गया. उन्होंने दावा किया कि 2001 में 9/11 हमले के बाद बड़े पैमाने पर आई अमेरिकी मदद के बावजूद यह कभी पहले स्तर पर नहीं पहुंच सका. साल 2002 से 2007 के बीच पाकिस्तान को अमेरिका से कुल 12 अरब डॉलर की मदद मिली.
परमाणु हथियारों की सुरक्षा को खतरा
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री ने कहा कि इसके बाद पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध छेड़कर एक और बड़ी गलती की. उन्होंने इस युद्ध को आपदा के रूप में बताया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का दुर्भाग्य यह रहा कि पाकिस्तान पर अक्षम और बौने लोगों का शासन रहा, जिनके पास दूरदर्शिता नहीं थी. साल 1998 में नवाज शरीफ के पास दो तिहाई बहुमत था, जबकि परवेज मुशर्ऱफ एक सैन्य तानाशाह थे. इसके अलावा युसुफ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की.
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