तालिबान की कैबिनेट पर पाकिस्तान की छाप, जानें- कैसे कटा मुल्ला बरादर का पत्ता और हक्कानी को मिली अहम जिम्मेदारी
ISI चीफ के काबुल पहुंचने के बाद तालिबान के सरकार बनाने के सभी समीकरण बुरी तरह फंस गए, तालिबान जिन चेहरों को लगभग तय कर चुका था, उनके नाम लिस्ट के कटने लगे और नए नामों की एंट्री शुरू हो गई.
नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान सरकार 2.0 की शुरुआत हो चुकी है. 20 साल बाद सत्ता में लौटे तालिबानियों ने मंत्रालयों का बंटवारा तो कर दिया है लेकिन प्रधानमंत्री का नाम ही संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकियों की लिस्ट में शामिल है.
तालिबान सरकार के नए प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद हसन अखुंद को यूनाइटेड नेशन ने प्रतिबंधित आतंकी घोषित किया हुआ है. हसन अखुंद की पहचान कट्टर धार्मिक नेता की है. बामियान में बुद्ध की मूर्तियां तुड़वाने में शामिल रह चुका है. पिछली तालिबान सरकार में डिप्टी पीएम और विदेश मंत्री रह चुका है.
दोहा समझौते से लेकर दुनियाभर के मंचों पर तालिबान का चेहरा बन चुके मुल्ला बरादर को भी सरकार में जगह मिली है लेकिन साथ ही पर भी कतर दिए गए. प्रधानमंत्री पद के लिए बरादर के नाम पर चर्चा थी लेकिन मुल्ला बरादर नई तालिबान सरकार में डिप्टी पीएम होगा. मुल्ला बरादर के साथ अब्दुल सनाम हनाफी को भी डिप्टी पीएम बनाया गया है.
तालिबान की नई सरकार के पीछे पाकिस्तान का हाथ?
तालिबान के इस सरकार गठन के पीछे पाकिस्तान का बड़ा हाथ माना जा रहा है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के काबुल पहुंचने के तीन दिन बाद तालिबान ने अपनी सरकार का एलान कर दिया.
तालिबान की सरकार में पाकिस्तानी दखल की छाप साफ दिखाई दे रही है. ISI चीफ के काबुल पहुंचने के बाद तालिबान के सरकार बनाने के सभी समीकरण बुरी तरह फंस गए, तालिबान जिन चेहरों को लगभग तय कर चुका था, उनके नाम लिस्ट के कटने लगे और नए नामों की एंट्री शुरू हो गई.
ISI प्रमुख के काबुल दौरे के बाद ही मुल्ला बरादर के राष्ट्रपति की रेस से बाहर होने के संकेत मिलने लगे थे. चूंकि बरादर तालिबान का एक जाना पहचाना नाम है, इसलिए उसे लिस्ट से बाहर करते ही बगावत का खतरा था. यही वजह है कि बरादर को हटाए जाने के फैसले में तालिबान का सुप्रीम कमांडर भी शामिल हुआ.
ISI ने बरादर को राष्ट्रपति न बनाए जाने की वकालत की, बरादर को राष्ट्रपति बनाने पर ISKP से हमले तेज करने की धमकी दी. ISI की धमकी के बाद कंधार में तालिबान नेताओं की बैठक हुई. कंधार की बैठक में सुप्रीम कमांडर हैबतुल्लाह अखुंदजादा भी शामिल हुआ.
हैबतुल्लाह ने हसन अखुंद के नाम का प्रस्ताव रखा, बैठक में हसन अखुंद को रईस-ए-जम्हूर बनाने की प्रस्ताव रखा गया. सुप्रीम कमांडर से प्रस्ताव आने पर सभी तालिबान नेताओं ने सहमति दी. इस तरह मुल्ला बरादर का पत्ता कट गया और उसे उप प्रधानमंत्री बनाया गया.
पाकिस्तान के दखल से हक्कानी नेटवर्क को मिली अहम जिम्मेदारियां
यह पाकिस्तान के दखल का ही असर है कि नई सरकार पर आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क हावी नजर आ रहा है. जबकि वहीं दोहा में अमेरिका के साथ समझौते को लेकर पूरी कवायद करने वाले गुट को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली है.
तालिबान की ताजपोशी में सबसे बड़ा नाम है हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी का है. नई कैबिनेट के 33 मंत्रियों में से 20 कंधार स्थित हक्कानी नेटवर्क से जुड़े हुए हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है. सिराजुद्दीन को अमेरिका ने मोस्ट वांटेड आतंकी घोषित किया हुआ है. अमेरिका ने सिराजुद्दीन पर 37 करोड़ रुपए का ईनाम रखा है.
हक्कानी अफगानिस्तान में कई हाई प्रोफाइल हमलों को अंजाम दे चुका है. 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर भी हमला कर चुका है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का एजेंट है.
तालिबान की इस नई कैबिनेट में महिलाओं और युवाओं को जगह नहीं दी गई. इसके साथ ही सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय हाजरा को कैबिनेट में जगह नहीं दी गई. साथ ही दूसरे कबीलाई समुदाय भी कैबिनेट में नदारद रहा.