Afghanistan Crisis: पंजशीर में तालिबानी लड़ाकों को मदद करने की रिपोर्ट्स पर पाकिस्तान ने दिया ये जवाब
Afghanistan Crisis: तालिबान ने सोमवार को कहा था कि उसने पंजशीर पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया. यही एक प्रांत था जिस पर तालिबान का कब्जा नहीं हुआ था.
Afghanistan Crisis: पंजशीर घाटी में रेसिस्टेंस फोर्सेज के खिलाफ तालिबानी लड़ाकों को मदद करने की रिपोर्ट्स को पाकिस्तान ने खारिज करते हुए इसे ‘शरारतपूर्ण कैंपेन’ करार दिया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने एक बयान जारी किया और इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह ‘शरारतपूर्ण प्रोपगेंडा’ अभियान का एक हिस्सा है. उन्होंने बयान में कहा- “ये दुर्भावनापूर्ण आरोप पाकिस्तान को बदनाम करने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने के एक हताश प्रयास का हिस्सा थे. ”
इफ्तिखार ने जोर देते हुए कहा कि पाकिस्तान शांतिपूर्ण और स्थायी अफगानिस्तान को लेकर प्रतिबद्ध है. समाचार एजेंसी पीटीआई ने यूनाइटेड स्टेट्स सेंट्रल कमांड के हवाले से खबर दी थी कि रेसिस्टेंस फोर्सेज के खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने तालिबान के लड़ाकों की पंजशीर में मदद की. इसके अलावा, पाकिस्तान स्पेशल फोर्सेज के कम से कम 27 हैलिकॉप्टर्स और ड्रोन ने तालिबान को इस लड़ाई में मदद की.
गौरतलब है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने भी पंजशीर के 'पतन' से एक दिन पहले तालिबान नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की थी. हालांकि दोनों पक्षों ने यह दावा किया था कि स्पिन बोल्डक में शरणार्थी संकट और बंद सीमाओं के बारे में चर्चा हुई थी.
तालिबान ने सोमवार को कहा था कि उसने पंजशीर पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया. यही एक प्रांत था जिस पर तालिबान का कब्जा नहीं हुआ था. हालांकि, पंजशीर के लड़ाकों ने दावा किया है कि पूरी तरह से पंजशीर पर तालिबान ने अपना कब्जा नहीं किया है. नेशनल रेसिस्टेंस फ्रंट (NRF) के नेता अहमद मसूद ने कहा कि वरिष्ठ नेता सुरक्षित हैं और उन्होंने "राष्ट्रीय विद्रोह" का भी आह्वान किया.
तालिबान छापेमारों ने अगस्त के मध्य में अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित निर्वाचित नेतृत्व को हटा दिया. तालिबान को हटाने के लिए अमेरिकी सेना की अगुवाई में किए गए आक्रमण के लगभग 20 साल बाद छापामारों ने देश पर फिर से कब्जा कर लिया है. पंजशीर, एक दुर्गम पहाड़ी घाटी है जहां 1,50,000 से 2,00,000 लोग रहते हैं. यह 1980 के दशक में अफगानिस्तान के सोवियत कब्जे में होने और तालिबान के शासन की पिछली अवधि के दौरान, 1996 से 2001 के बीच प्रतिरोध का केंद्र था.
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