Pakistan Election: पाकिस्तान को अनवर-उल-हक के तौर पर नया प्रधानमंत्री मिल गया है. अब ये सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान का आगे का भविष्य क्या होने वाला है. राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने हाल ही में संसद के निचले सदन को भंग किया. इस तरह एक कार्यवाहक प्रशासन के तहत होने वाले आम चुनाव का रास्ता साफ हो गया. नए पीएम के नाम का भी ऐलान हो गया है. 


संविधान के मुताबिक, पड़ोसी मुल्क में 90 दिनों के भीतर चुनाव करवाए जाने हैं. इस हिसाब से नवंबर में लोगों को वोट डालना होगा. लेकिन अभी चुनाव की तारीखों को लेकर संशय है. इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान इन दिनों संवैधानिक, राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है. आइए समझते हैं कि आने वाले आने वाले कुछ महीनों में पाकिस्तान में कैसे हालात होने की उम्मीद जताई जा रही है. 


कौन हैं नए कार्यवाहक प्रधानमंत्री?


अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और विपक्ष के नेता राजा रियाज ने सांसद अनवर-उल-हक काकर को नया कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. अनवर बलूचिस्तान आवामी पार्टी (BAP) से आते हैं, जिसने मार्च में इमरान खान की पार्टी से अपना समर्थन वापस लिया था. अगले आम चुनाव तक पाकिस्तान की कमान अनवर के हाथों में ही रहने वाली है. 


अनवर-उल-हक को लेकर कहा जाता है कि उनकी पार्टी और उनके संबंध पाकिस्तानी सेना के साथ काफी अच्छे हैं. इसलिए ही शायद उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री के पद के तौर पर इसका इनाम दिया गया है. बलूचिस्तान के मुद्दों पर मुखर रहने वाले अनवर प्रमुख मंत्रालयों को चलाने के लिए मंत्रियों का चुनाव भी करने वाले हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वह पाकिस्तान को किस तरह से चलाते हैं.


क्या टल सकते हैं चुनाव?


पाकिस्तानी संविधान कहता है कि कार्यवाहक सरकार को 90 दिनों के भीतर चुनाव करवाने होंगे. हालांकि, अंतरिम सरकार ने अपने आखिरी दिनों में नई जनगणना को मंजूरी दी है. इस वजह से अब पाकिस्तानी चुनाव आयोग को नई चुनावी सीमाएं तैयार करनी होंगी. चुनाव आयोग को राज्य और देश के आधार पर नए निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन करने में छह महीने या उससे ज्यादा समय लग सकता है. 


चुनाव आयोग को इस बात का भी ऐलान करना है कि आखिर इस पूरी प्रक्रिया को खत्म होने में कितना समय लगने वाला है. इस दौरान अगर नए निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए, तो उसके लिए कुछ लोग चुनाव आयोग के खिलाफ मुकदमे भी करेंगे. कुल मिलाकर इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही चुनाव की तारीख बताई जाएगी. ये भी हो सकता है कि चुनाव 90 दिनों से ज्यादा वक्त बाद करवाएं जाएं. 


क्या है सेना की भूमिका? 


सभी इस बात से सहमत होंगे कि पाकिस्तान में सरकार पर्दे के पीछे से सेना ही चलाती है. पाकिस्तान के सात दशक के इतिहास में तीन दशक से ज्यादा समय सेना ने सीधे तौर पर सरकार चलाई है. राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि अगर कार्यवाहक सरकार का कार्यकाल बढ़ता है, तो पाकिस्तानी सेना देश की कमान अपने हाथ में ले सकती है. इसके बाद वह ही फैसला करेगी की चुनाव कब करवाए जाएंगे. 


चुनाव को लेकर क्या चुनौतियां हैं? 


पाकिस्तान में चुनाव को लेकर सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक स्थिरता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मिली मदद की वजह से कंगाल होने की कगार पर खड़ी अर्थव्यवस्था किसी तरह बच पाई है. आर्थिक सुधारों की वजह से पहले से ही बढ़ी महंगाई और ब्याज दरों को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है. देश में फैली राजनीतिक अस्थिरता भी एक चुनौती है. इमरान खान को जेल में डालकर उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है. वहीं, 90 दिनों से ज्यादा वक्त तक अगर चुनाव टलते हैं, तो संवैधानिक और कानूनी सवाल भी उठने लगेंगे. 


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