India Pak Relation: पहले अदावत अब 'मोहब्बत'...क्या भारत-पाकिस्तान में दोस्ती संभव है?
India-Pakistan Relation: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संजीदगी और नेकनीयत से बात करने का मन है, लेकिन क्या भारत उनकी इस बात पर यकीन कर आगे कदम बढ़ाएगा.
India Pakistan Relation: भारत के साथ हुए तीन युद्ध के बाद हमने अपना सबक सीख लिया है... जैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दुबई के एक अरबिया टीवी चैनल से ये कहा तो भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में कयासों का दौर भी शुरू हो गया. पाक की तरफ से ये बयान उस वक्त आया है जब वहां आतंकवाद और आर्थिक संकट चरम पर पहुंच चुका है.
दशकों से भारत के खिलाफ अदावत पालने वाले पाकिस्तान के अचानक इस तरह से बदले रूख के पीछे एक बड़ी वजह है कि वहां हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. ऐसे में वह भारत के सामने खुद को कमजोर न दिखाकर दुनिया के सामने अपनी दरियादिली और नेकनीयती का नमूना पेश करने की कोशिश में है. अब सवाल ये है कि क्रॉस बॉर्डर आतंकवाद को बढ़ावा देने और उकसाने वाले पड़ोसी की बातचीत की इस पहल को भारत किस तरह लेगा? क्या दोनों देशों के बीच दुश्मनी का ये दौर खत्म होगा?
क्यों है अमन की दरकार पाक को?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पाकिस्तान के हालातों को देख खासे परेशान हैं. उन्होंने पाक में लगातार बढ़ते जा रहे वित्तीय संकट को देखते हुए कहा कि उन्हें दोस्त देशों से और अधिक लोन मांगने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है. पीएम शहबाज ने ये भी कहा कि नकदी की परेशानी से जूझ रहे देश की आर्थिक चुनौतियों के लिए ये स्थायी समाधान नहीं है.
पाकिस्तान के आर्थिक हालात वहां चल रहे राजनीतिक संकट की वजह से खासे खराब हैं. रुपये का मूल्य तेजी से गिरता जा रहा है. महंगाई ने वहां सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं. कोविड की महामारी के बाद इस पड़ोसी देश में आई भयंकर बाढ़ ने वहां मुसीबतें बढ़ा डाली हैं. इसके साथ वैश्विक ऊर्जा संकट से हालात बेकाबू हो गए हैं.
ऐसे में देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ये कहें कि वह भारत के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर संजीदा है तो ये बात कुछ हजम नहीं होती. दरअसल हर वक्त जिस पड़ोसी देश भारत की नींव खोदने की पाकिस्तान लगातार कोशिशें करता रहता है. उसे लेकर अचानक से नरम लहजे में उतर आना. पाक पीएम का ये कहना कि यह हम पर निर्भर करता है कि हम अमन-चैन से रहे और तरक्की करें या फिर एक-दूसरे से झगड़कर वक्त और संसाधनों को बर्बाद करें.
आलम ये है कि जिस जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाकर वो हमेशा भारत को नीचा दिखाने की कोशिशों में रहता है. अब वो उस पर भी बात करने को तैयार हैं. पाक पीएम ने कहा, ‘’मेरा भारत के नेतृत्व और पीएम नरेंद्र मोदी को संदेश है कि चलो हम अपने कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को सुलझाने के लिए पूरी संजीदगी और ईमानदारी से बात करते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “हम पड़ोसी है हमें एक-दूसरे के साथ रहना है, हम भारत के साथ लड़ी तीन जंग का नतीजा झेल चुके हैं जो मुसीबतें, गरीबी और लोगों के लिए बेरोजगारी लेकर आईं. हमने अपना सबक सीख लिया है. हम अमन से रहना चाहते हैं और अपनी वास्तविक परेशानियों को सुलझाना चाहते हैं. गरीबी मिटाकर, खुशहाली तरक्की के साथ तालीम, सेहत की सुविधाएं अपने लोगों को देना चाहते हैं. हम बम और हथियारों पर अपने संसाधन बर्बाद नहीं करना चाहते हैं.”
पाक पीएम शहबाज शरीफ ने कहा, "यूएई परमाणु हथियार संपन्न भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने में अहम भूमिका निभा सकता है." बीते हफ्ते पाकिस्तान के विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा था कि उनका देश कश्मीर सहित भारत के साथ सभी लंबित मुद्दों के समाधान में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का स्वागत करता है. बलोच ने ये भी कहा था कि इस्लामाबाद कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के तहत कोशिश करता रहेगा.
आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं
मसला यहीं आकर फंसता है. भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कश्मीर को लेकर पहले से ही तनातनी वाले हैं. भारत पाकिस्तान की तरफ से भारत में आने वाले आतंकवाद से पहले ही तंग आ चुका है. भारत कश्मीर मुद्दे पर किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को पहले खारिज कर चुका है. नई दिल्ली से साफ कहा गया है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने पहले ही कहा है, "जम्मू और कश्मीर और लद्दाख दोनों केंद्र शासित प्रदेश हमेशा भारत के अभिन्न और अविभाज्य हिस्से होंगे. किसी अन्य देश के पास इस पर टिप्पणी करने का कोई हक नहीं है." भारत का कहना है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते और इस्लामाबाद को बातचीत की बहाली के लिए अनुकूल माहौल मुहैया कराना चाहिए.
दरअसल 5 अगस्त, 2019 को भारत ने संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द कर जम्मू- कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म कर दिया था और जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. भारत के इस फैसले पर पाकिस्तान से सख्त प्रतिक्रिया दी थी. पाकिस्तान ने पाकिस्तान से भारत के राजदूत को वापस भेज दिया था. यही नहीं कूटनीतिक संबंधों को भी कम कर दिया था. तब से पाकिस्तान और भारत के बीच व्यापारिक रिश्तों में भी ठहराव है. इसके जवाब में भारत ने कहा था कि पूरा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश भारत का हिस्सा था और हमेशा रहेगा.
पाकिस्तान अब भी है अड़ा
पाकिस्तान की मंशा पीएम शहबाज शरीफ के भारत के साथ संजीदगी से बातचीत की मंशा एक दिन बाद ही जाहिर हो गई जब पाक पीएमओ के प्रवक्ता का 17 जनवरी को बयान आया. इस बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान भारत के साथ अपने द्विपक्षीय मुद्दों खासकर जम्मू-कश्मीर का हल करना चाहता है, लेकिन जब-तक भारत 5 अगस्त, 2019 के फैसले को वापस नहीं लेता तब-तक भारत साथ बातचीत नहीं हो सकती है.
साल 2021 में पाकिस्तान और भारत के बीच नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम समझौते के बाद कुछ ऐसे ही हालात थे. तब दोनों देशों की तरफ से राजनीतिक और सैन्य अधिकारियों के कुछ बयान आए थे. तब राणनीतिक और आर्थिक वजहों से सीमा पर अमन-चैन कायम करने को लेकर दोनों पक्षों की तरफ कुछ नरमी नजर आई थी, लेकिन तब भी कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जे खत्म होने का मुद्दा बीच में था. तब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि अगस्त 2019 में खत्म किए गए कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे की बहाली से पहले भारत के साथ रिश्तों को सामान्य करना कश्मीरियों के ख़ून के साथ दगाबाजी होगी.
तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने उस वक्त अहम बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान और भारत के बीच टूटे हुए विश्वास को बहाल करना पूरी तरह से पाकिस्तान की जवाबदेही है. तब जनरल नरवणे ने कहा था कि पाकिस्तान और भारत के बीच दशकों पुराना अविश्वास है और इसे रातों-रात खत्म नहीं किया जा सकता है. अगर पाकिस्तान संघर्ष विराम का सम्मान करता है और भारत में आतंकवादी भेजना बंद कर देता है तो यकीन बढ़ सकता है.
भारत के बयान से पहले पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने एलओसी पर संघर्ष विराम समझौते के बाद कहा था कि भारत-पाकिस्तान के बीच मजबूत रिश्ते वो चाबी है जो पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क पक्का कर दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमताओं के राह खोल सकती है.
पाकिस्तान विदेश मंत्रालय में 2013 से 2017 के बीच प्रवक्ता रही तसनीम असलम ने कहा था कि भारत को यकीन कायम करने के लिए कश्मीर और अफगानिस्तान में ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे इशारा मिले कि वह रिश्ते सामान्य करना चाहता है.उनका कहना था कि भारत को पहले कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करना चाहिए. ये भी साफ है कि भारत ऐसा कभी नहीं करेगा.
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