Pakistan Sectarian Violence: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच भयानक सांप्रदायिक हिंसा जारी है. इस हिंसा में अब तक 80 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 150 से अधिक घायल हो गए हैं. हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि 300 से ज्यादा परिवारों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पलायन करना पड़ा.


हिंसा की शुरुआत 21 नवंबर को उस समय हुई जब शिया समुदाय के काफिले पर घात लगाकर हमला किया गया. ये काफिला पेशावर से पाराचिनार जा रहा था और बेगन टाउन में इसे निशाना बनाया गया. हमले में 40 से ज्यादा शियाओं की मौत हो गई. साथ ही कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. हमले के बाद से ही पूरे इलाके में हिंसा भड़क उठी जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर हमले किए.


अब तक 82 लोगों की मौत 


पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ लोगों का कहना है कि काफिले को चारों ओर से घेरकर गोलीबारी की गई. घटना के बाद से हिंसा लगातार बढ़ती गई और अब तक 82 लोगों की मौत हो चुकी है. खैबर पख्तूनख्वाह की सरकार ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए दोनों समुदायों के बीच सात दिनों का सीजफायर घोषित किया है. इसके साथ ही राज्य सरकार ने एक उच्च स्तरीय कमीशन गठित करने का फैसला लिया है जो शिया और सुन्नी समुदायों के बीच विवाद को सुलझाने का प्रयास करेगा.


शांति कायम करने के सरकार ने लिया बड़ा फैसला


सरकार का दावा है कि हिंसा प्रभावित इलाकों में शांति कायम करने के लिए हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं. हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की निष्क्रियता के कारण स्थिति इतनी भयावह हो गई. बता दें कि कुर्रम जिला पाकिस्तान का कबीलाई इलाका है जहां शिया और सुन्नी समुदाय लंबे समय से जमीन और अन्य मुद्दों को लेकर टकराते रहे हैं. यहां शिया समुदाय की आबादी लगभग 45% है जो मुख्य रूप से अपर कुर्रम में रहती है जबकि लोअर और सेंट्रल कुर्रम में सुन्नी बहुसंख्यक हैं.


हिंसा को लेकर विशेषज्ञों ने कही बड़ी बात


1980 के दशक में अफगानिस्तान से आए सुन्नी शरणार्थियों के कारण इस इलाके की जनसंख्या संरचना बदल गई. तब से दोनों समुदायों के बीच संघर्ष बढ़ता गया. साल 2007 से 2011 के बीच कुर्रम में भयानक सांप्रदायिक झड़पें हुईं जिनमें 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए और 10,000 से अधिक विस्थापित हुए. विशेषज्ञों का मानना है कि कुर्रम में हिंसा केवल स्थानीय विवाद का परिणाम नहीं है. 


सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों की भूमिका ने भी इस संघर्ष को बढ़ावा दिया है. सऊदी अरब ने सुन्नी संगठनों को समर्थन दिया है जबकि ईरान ने शिया संगठनों को सहायता दी है. सऊदी समर्थित सुन्नी संगठनों और ईरानी समर्थित जैनबियुन ब्रिगेड के बीच कुर्रम में लगातार झड़पें होती रही हैं. इस संघर्ष ने कुर्रम को अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक संघर्ष क्षेत्र के रूप में अंकित कर दिया है.


दुनियाभर में शिया-सुन्नी संघर्ष


शिया और सुन्नी समुदायों के बीच ये टकराव सदियों पुराना है. इसकी शुरुआत पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी (खलीफा) को लेकर हुए विवाद से हुआ. शिया समुदाय हजरत अली को पैगंबर का सही उत्तराधिकारी मानते हैं जबकि सुन्नी समुदाय अबू बकर को अपना खलीफा मानता है.


दुनियाभर में मुस्लिम आबादी का लगभग 85% हिस्सा सुन्नी है जबकि शिया केवल 15% हैं. पाकिस्तान में ये आंकड़ा लगभग 90% सुन्नी और 10% शिया का है. ऐसे में दोनों के बीच धार्मिक मतभेद समय-समय पर हिंसा का रूप लेते रहे हैं.


कुर्रम की स्थिति पाकिस्तान के लिए एक गंभीर चुनौती  


कुर्रम की मौजूदा स्थिति ने न केवल पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा तंत्र पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि ये सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है. हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, लेकिन उनकी वापसी और पुनर्वास में अभी लंबा समय लग सकता है. ऐसे में पाकिस्तान सरकार के लिए ये जरूरी है कि वे सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाए. इसके अलावा बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप को रोकने और स्थायी शांति कायम करने के लिए ठोस नीति अपनानी होगी.


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