Pakistan Economic Crisis: पाकिस्‍तानी अर्थव्‍यवस्‍था इतिहास के सबसे बुरे दौर का सामना कर रही है. वहां महंगाई ने 58 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. मुल्क विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार कम होता चला गया. मुल्क पर विदेशी कर्ज बढ़कर 100 अरब डॉलर से ज्‍यादा हो चुका है. पाकिस्‍तानी मुद्रा की वैल्‍यू भी लगातार कम होती जा रही है. यदि उसे जल्‍द विदेशी फंड नहीं मिला तो ये देश डिफॉल्‍ट भी हो सकता है.


ऐसे में पाकिस्‍तान के वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार रह चुके साकिब शेरानी का कहना है कि पाकिस्तान पहले से कहीं ज्यादा जॉम्बी देश बनने के करीब है. साकिब ने गुरुवार (13 अप्रैल) को चेताता कि पाकिस्तान जिस तरह से दशकों में सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, उसके चलते ये मुल्‍क भी अगला लेबनान बन सकता है, दरअसल लेबनान ऐसा इस्‍लामिक मुल्‍क है, जो आर्थिक संकट में ही बर्बाद हो गया.  वहां लोगों में खाने पीने की चीजों को लेकर मारा-मारी मची हुई है.




'पाकिस्तान भी लेबनान बनने की राह पर'
साकिब शेरानी, जिन्होंने 2009 से 2010 तक वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्य किया, ने पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति की तुलना लेबनान से करते हुए कहा कि लेबनान में भी कुछ समय पहले ऐसे ही हालात थे, जो अब पाकिस्‍तान में हैं. भ्रष्‍टाचार, खराब आर्थिक नीतियां, कर्ज का बढ़ता बोझ, ग्‍लोब्‍लाइजेशन पर फोकस न करना, वैश्विक व्‍यापार में खुद को स्‍थापित न कर पाना, मशीनीकरण के लिए ठोस कदम न उठाना ये कुछ ऐसे पहलू हैं, जिनसे, पाकिस्तान भी लेबनान बनने की राह पर है.


साकिब ने कहा कि यह देश लंबे समय से 'जोखिम में' रहा है. यहां घुसपैठ या लूटपाट की घटनाएं होती रहती हैं. साकिब की ये बातें पाकिस्‍तान के एक प्रमुख अखबार "डॉन" में छपी हैं. उन्होंने अपने लेख की शुरुआत अमेरिका में बैंकिंग संकट से की. उन्होंने कहा कि अमेरिका में होने वाली घटनाओं ने जॉम्बी बैंकों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया है.


'जॉम्बी बैंकों की तरह क्या जॉम्बी देश नहीं हो सकते?'
उन्‍होंने लिखा, "जॉम्बी बैंकों और फर्मों की तरह, क्या 'जॉम्बी' देश हो सकते हैं?"  उन्‍होंने पाकिस्तान के मौजूदा हालातों पर लिखा, "ऐसा देश जहां आर्थिक संकट के साथ-साथ सियासी संकट भी चल रहा हो, जहां अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है, जो विदेशों से अपने ऋण और उससे जुड़े दायित्वों को पूरा नहीं कर सकता हो, और जो केवल हैंडआउट्स और बेलआउट्स के सहारे खुद की जररूतें पूरा करना चाहता हो, वहां हालात भला कैसे सुधर सकते हैं?"




शेरानी के गिनाए गए सभी मानदंड पाकिस्‍तान पर फिट बैठते हैं, एक ओर से विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण इस्लामाबाद अपने कर्जे चुकाने में असमर्थ है, वहीं, उसका आयात भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. वो डिफ़ॉल्टर बनने के डर को दूर करने के लिए अब मित्र देशों के आगे हाथ पसार रहा है.


IMF की 1.1 अरब डॉलर की किश्त भी नहीं संभाल सकती
देश के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आईएमएफ से 1.1 अरब डॉलर की अपेक्षित किश्त भी पाकिस्‍तानी अर्थव्‍यवस्‍था को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं होगी और मुल्क की हुकूमत को फिर कर्ज के लिए गिड़गिड़ाना पड़ेगा. 


'पाकिस्तान नाममात्र का संप्रभु और स्वतंत्र देश'
शेरानी ने यहां तक कहा है कि पाकिस्तान केवल कागजों में नाममात्र का संप्रभु और स्वतंत्र देश है. उन्होंने कहा, यहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्ट, स्वार्थी वर्ग से भरा है. ये अपने बारे में ही सोचते हैं और अपने व्यवसाय और धन को विदेशों में स्थानांतरित करने में लगे हैं. उन्‍होंने कहा कि इन हालातों से मुल्‍क को बचाने के लिए पाकिस्‍तानी अवाम को मुल्‍क के लिए खुद आगे आना चाहिए.


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