Pakistan Crisis: पाकिस्तान... एक ऐसा देश बन गया है जिसकी अर्थव्यवस्था नाकामी की जीती जागती मिसाल बन चुकी है. फिलहाल पाकिस्तान की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही हैं. पूरे पाकिस्तान में खाने-पीने की चीजों से लेकर अन्य जरूरत की चीजों की कीमत आसमान छू रही हैं. यह कहना गलत न होगा कि विकास और आगे बढ़ने की रणनीति के बजाय आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश आखिरकार इसी तरह से ढह जाते हैं.
पाकिस्तान रुपये की हालत डॉलर के मुकाबले 260 हो गई है. स्थिति ये हो गई है कि पाकिस्तान बास्केट केस बनने वाला है. यहां बास्केट केस से मतलब एक ऐसे देश से है जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो. इन सब के बीच भारत के एक्सपर्ट्स ने आशंका व्यक्त की है कि कंगाल पाकिस्तान की खराब हालत से भारत समेत आस-पास के क्षेत्रों में भी खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है.
क्या कहते हैं विश्लेषक?
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट के बीच शहबाज शरीफ सरकार एक सहायता पैकेज के लिए वॉशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ अहम वार्ता शुरू करेगी. उन्होंने कहा कि इसमें (बातचीत में) मितव्ययिता की “कठिन और संभवतः राजनीतिक रूप से जोखिम भरी” पूर्व-शर्तें जुड़ी हो सकती हैं जो एक बड़े राजनीतिक संकट को जन्म दे सकती है.
भारत के लिए जोखिम केवल क्षेत्र में बढ़ते चरमपंथ के साथ पाकिस्तान में अस्थिरता ही नहीं होगी बल्कि अप्रत्याशित कार्रवाई भी होगी, जिसमें बाहरी दुश्मन पर ध्यान केंद्रित करके घरेलू जनता का ध्यान हटाने की कोशिशें शामिल हो सकती हैं.
पाकिस्तान में भारत के पूर्व दूत रहे टीसीए राघवन ने कहा, “मौजूदा आर्थिक संकट पहले से जारी राजनीतिक संकट को बढ़ा रहा है (जहां इमरान खान की अगुआई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने नए चुनाव कराने के लिए दो प्रांतीय विधानसभाओं को भंग कर दिया है)…आईएमएफ के धन जारी करने के लिए जिन शर्तों को लागू करने की संभावना है, वे निश्चित रूप से अल्पकालिक मुश्किलों का एक बड़ा कारण बनेंगी, जिसका राजनीतिक असर हो सकता है.”
बाज नहीं आता पाकिस्तान
पाकिस्तान के सात अरब डॉलर के आईएमएफ ‘बेल-आउट’ (स्वतंत्रता के बाद से 23वां) पैकेज के वितरण को पिछले नवंबर में रोक दिया गया था क्योंकि वैश्विक ऋणदाता ने महसूस किया था कि देश ने अर्थव्यवस्था को सही आकार देने के लिए राजकोषीय और आर्थिक सुधारों की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 4.34 अरब डॉलर (एक साल पहले के 16.6 अरब डॉलर से) रह गया है, जो मुश्किल से तीन सप्ताह की आयात जरूरतों के लिए पर्याप्त है जबकि उसका दीर्घावधि कर्ज बढ़कर 274 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें इस तिमाही में करीब आठ अरब डॉलर का पुनर्भुगतान किया जाना भी बाकी है.
देश गेहूं और तेल के आयात पर निर्भर करता है जिसके साथ मुद्रास्फीति 24 प्रतिशत तक बढ़ गई है. चीनी फर्मों समेत विदेशी निवेशक जिन्होंने आर्थिक गलियारे में कारखाने स्थापित करने में रुचि दिखाई थी वे भी एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं.
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