इस्लामाबाद: सरकार बदलने के बाद से पाकिस्तान के आसार भी बदले-बदले से नज़र आ रहे हैं. इमरान ख़ान द्वारा प्रधानमंत्री का पद संभाले जाने के बाद से पाकिस्तान में निवेश की मानो बहार सी आ गई है. ताज़ा मामले में तो भारत का सबसे बड़ा मित्र देश रूस भी पाक में भारी निवेश करने वाला है. नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान में ऊर्जा क्षेत्र में रूस 14 अरब डॉलर (9,99,39,00,00,000 रुपए) का एकमुश्त निवेश करने वाला है.


एक मीडिया रिपोर्ट में बृहस्पतिवार को इसकी जानकारी दी गयी. ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक ख़बर के मुताबिक गैजप्रोम मैनेजमेंट कमिटी के डिप्टी चेयरमैन विटली ए. मार्कलोव की अध्यक्षता में रूस के एक प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के हालिया दौरे में इस निवेश की प्रतिबद्धता जाहिर की.


ख़बर के मुताबिक रूस की कंपनी पंजाब प्रांत की जरूरतों को पूरा करने के लिये कराची से लाहौर तक एक गैस पाइपलाइन बिछाएगी. कुल 14 अरब डॉलर के निवेश में से करीब 10 अरब डॉलर ऑफशोर गैस पाइपलाइन में, 2.5 अरब डॉलर उत्तर-दक्षिण पाइपलाइन में और बाकी की रकम का इस्तेमाल अंडरग्राउंड रिज़र्व बनाने में किया जाएगा.


पाकिस्तान और रूस की सरकारी कंपनियों ने 10 अरब डॉलर की लागत से तैयार होने वाली पाइपलाइन परियोजना की रिसर्च के लिये बुधवार को करार पर हस्ताक्षर किया. इसका निर्माण तीन से चार साल में पूरा होने का अनुमान है.


इसके पहले भी मिली संजीवनी
पैसों की कमी से जूझ रहे इमरान के पाकिस्तान को इसके पहले भी बेलआउट की संजीवनी मिली है. देश को कोई छोटी-मोटी रकम नहीं बल्कि तीन बिलियन डॉलर (4,20,94,50,00,000.00 पाकिस्तानी रुपए) का बेलआउट मिला है. भारत के इस पड़ोसी मुल्क को इतनी बड़ी रकम का बेलआउट देने वाला कोई और नहीं बल्कि भारत का एक और मित्र देश यूएई है. कैश और डॉलर की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए ये बेलआउट बड़ी राहत लेकर आएगा.


यूएई ने इसकी घोषणा पिछले साल तीन दिसंबर को ही की थी. पहले सऊदी अरब ने पाक को इतनी ही बड़ी रकम देने की बात कही जिसके बाद यूएई ने भी ऐसे ही वादा किया. दोनों देशों ने ये पेशकश इसलिए की थी ताकि पाकिस्तान बैलेंस ऑफ पेमेंट के संकट से बाहर आ सके. वहीं, इस रकम के सहारे ये दोनों देश पाकिस्तान को इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड के कठिन नियमों वाले बेलआउट से भी बचाना चाहते हैं.


यूएई ने अपने बयान में कहा कि इस मदद के जरिए यूएई पाकिस्तान में आर्थिक स्थिरता को बहाल करने में अपने नेतृत्व की भूमिका निभाना चाहता है. यूएई ने दोनों देशों के बीच 1981 से भी मज़बूत संबंध होने पर भी बल दिया. ये भी कहा गया कि ये फंड पाकिस्तान को सामाजिक और आर्थिक मज़बूती देने में मदद करेगा. यूएई ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के उनके देश के दौरे के दौरान इस मदद का वादा किया था. ये दौरा पिछले महीने हुआ था.


इसके तहत पाकिस्तान और यूएई के बीच 15 साल के एलएनजी सप्लाई का करार हुआ है. आपको बता दें कि भारत के भी अच्छे मित्रों में शामिल सऊदी अरब और यूएई ने पाकिस्तान को बैलेंस ऑफ पेमेंट के संकट से पार पाने में खासी मदद की है. पाकिस्तान के सरकारी अधिकारियों के मुताबिक 2017-18 वित्त वर्ष में पाकिस्तान के बैलेंस ऑफ पेमेंट की कमी 12 बिलियन डॉलर (16,83,78,00,00,000.00 पाकिस्तानी रुपए) की है.


'इमरान मांग रहे भीख़'
आपको बता दें कि इसके पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान नकदी के संकट से जूझ रहे अपने देश के लिए दुनिया भर में घूमकर वित्तीय मदद की भीख मांग रहे हैं. बदीन के मातली में एक रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता शाह ने कहा, "इमरान खान (आर्थिक मदद की) भीख मांगने के लिए एक देश से दूसरे देश जा रहे हैं." लोन बढ़ने के कारण पाकिस्तान पर बैलेंस ऑफ पैमेंट का क्राइसिस हो गया है जिससे वहां की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर हो गई है.  यूएई के द्वारा कुल सहायता राशि कैश में नहीं दी जाएगी. सहायता की कुछ रकम कैश और कुछ आयातित तेल के दाम बाद में चुकाने के रूप में दी जाएगी.


यूएई के द्वारा दिए जाने वाले पैकेज को अंतिम रूप दे दिया गया है जिसके बारे में पाकिस्तान के एक कैबिनेट मंत्री ने जानकारी दी. पाकिस्तान को सऊदी अरब और यूएई से जितनी रकम की मदद दी गई है वह पाकिस्तान के कुल तेल आयात का 60 प्रतिशत है. तेल आयात के रूप में इतनी बड़ी रकम के तत्काल खर्च से छूट मिलने से पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर पाएगा. इससे पहले चीन ने भी बीआरआई के तहत पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है.


हालांकि, चीन कितने करोड़ रुपए की मदद पाकिस्तान को देगा अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आईएमएफ से मिलने वाले लोन से पाकिस्तान चीन को अपना कर्जा ना चुका पाए. अमेरिका का मानना है कि चीन का पाकिस्तान पर बड़ा कर्ज वहां की अर्थव्यवस्था की कमजोरी के लिए जिम्मेदार है.


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