CPEC पर पाकिस्तानी नेताओं के बड़े बोल, जर्नलिस्ट ने खोल दी पोल, क्या कहा आप भी पढ़ें
CPEC Project: पाकिस्तान के नेता इन दिनों चीनी निवेश और सीपीईसी प्रोजेक्ट को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान के ही एक पत्रकार ने इन नेताओं के दावों की हवा निकाल दी.
CPEC Project: चीन और पाकिस्तान के बीच इन दिनों चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को आगे बढ़ाने को लेकर बातचीत का दौर जारी है. दोनों देशों के अधिकारियों के बीच हाल ही में इस मसले को लेकर बैठक हुई है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी जल्द ही चीन का दौरा करने वाले हैं. पाकिस्तान की मीडिया के मुताबिक शहबाज शरीफ का यह दौरा सीपीईसी परियोजना के दूसरे चरण से जुड़ा है. इस दौरान शहबाज बिजली परियोजनाओं के ऋण और दोनों देशों के बीच संबंध को लेकर चर्चा करेंगे.
पाकिस्तान में नेताओं के इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं कि चीन उनके देश में बड़ा निवेश करने जा रहा है. दूसरी तरफ द डॉन अखबार के एक लेख में पाकिस्तानी बिजनेस और इकोनॉमी जर्नलिस्ट खुर्रम हुसैन ने इस पूरे महौल पर सवाल खड़ा किया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों को फिलहाल चीन से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए. खुर्रम ने अपने लेख में कहा है कि यदि किसी को लगता है कि चीन पाकिस्तान में एक बार फिर नए निवेश की तैयारी कर रहा है, तो समझ लें ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा कि ये सीपीईसी के आसपास के पुनरुद्धार का शोर वास्तव में देश की हकीकत को छिपाने का तरीका है.
चीन की तरफ से नहीं आया कोई बयान
पाकिस्तानी जर्नलिस्ट ने कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा किसी पुनरुद्धार की तरफ नहीं जा रहा है, ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि चीन की तरफ से इस तरह का कोई बयान सामने नहीं आया है. उन्होंने कहा कि कि पाकिस्तान-चीन संबंधों में एक चीज ध्यान देने लायक यह है कि पाकिस्तान में जो कहा जा रहा है उसे तब तक सही न मानें जब तक की चीन की तरफ से आधिकारिक बयान सामने न आ जाए.
पाकिस्तानी में निवेश पर चीन नहीं दिखा रहा रुचि
खुर्रम हुसैन ने कहा कि चीन के पास इसपर बोलने के लिए कई माध्यम है, लेकिन चीन ने सीपीईसी को लेकर चुप्पी साध ली है. उन्होंने बताया कि चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ में 29 मई को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जिसमें शहबाज शरीफ के सीपीईसी मुद्दे को खूब जगह मिली, लेकिन पूरी रिपोर्ट चीन की तरफ से कोई बयान नहीं रखा गया. उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, अस्थिर राजनीति, सुरक्षा चुनौतियों और दूसरी समस्याओं के चलते चीनी पक्ष की कम रुचि को दिखाता है.
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