इस्लामाबाद: पाकिस्तान जब से आजाद हुआ है तब से लेकर अब तक वहां की सरकारों के फैसले में उनकी सेना की ख़ूब दख़लअंदाज़ी रही है. कई विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि पिछले साल देश में इमरान खान की सरकार बनने में भी सेना की भूमिका थी. सेना का राजनीति में इस तरह से हस्तक्षेप करना पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट को नागवार गुजरा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात का संज्ञान लेते हुए देश की सभी सरकारी एंजेसियों, विभागों और सेना के नियंत्रण वाली आईएसआई को सख्त हिदायत दी है कि वो सक्रिय राजनीति से अपने को दूर रखें और कानून के मुताबिक ही काम करें.
कोर्ट ने कहा है कि रक्षा मंत्रालय के माध्यम से पाकिस्तान की सरकार, सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने आदेश के तहत उन कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करें, जो उनकी शपथ का उल्लंघन करते पाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस काजी फैज इसा और जस्टिस मुशीर आलम की दो सदस्यीय बेंच ने कट्टरपंथी तहरीक-ए-लब्बाइक पाकिस्तान (टीएलपी) और अन्य छोटे समूहों की तरफ से 2017 फैजाबाद हड़ताल को लेकर ये ऐतिहासिक फैसला सुनाया.
कोर्ट ने कहा है, "हम संघीय और प्रांत सरकारों को यह आदेश देते हैं कि वे उन लोगों पर निगरानी रखें जो घृणा, कट्टरवाद और आतंकवाद की वकालत करते हैं और कानून के मुताबिक उन्हें सजा दें." कोर्ट ने देश की फौज और इससे जुड़ी आईएसआई जैसी संस्थाओं को भी कानून की हद में रहकर काम करने को कहा है. कोर्ट ने ये भी कहा है कि फौज के लोग किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं ले सकते हैं. इसके तहत वो किसी पार्टी, उसके धड़े और कैंडिडेट को सपोर्ट नहीं कर सकते हैं.
आपको बता दें कि 1947 में मिली आज़ादी के बाद से पाकिस्तानी आर्मी का देश का तख्तापलट करते रहने का इतिहास रहा है. कई ऐसे आर्मी जनरल हुए हैं जिन्होंने देश पर राज किया है. इनमें 1999 में करगिल में भारत के हाथों करारी शिकस्त झेलने वाली परवेज मुशर्रफ का नाम भी शामिल है. कोर्ट ने धार्मिक संगठनों द्वारा ऐसे फतवे के जारी किए जाने पर भी बैन लगाया है जो दूसरों को नुकसान पहुंचाते हों.
ऐसे फतवे लगाने वालों पर तो कोर्ट ने आतंकवाद की धारा तक लगाने की बात कही. कोर्ट ने टीएलपी से जुड़े इस मामले में स्वत: संज्ञान लेकर 21 नवंबर 2017 को कर्रवाई शुरू की थी. टीएलपी पर इस्लामाबद के मुख्य हाईवे को ब्लॉक कर देने का मामला है. इस विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने रेल की रफ्तार भी थाम दी थी जिसकी वजह से इस्लामाबाद का जनजीवन ठहर सा गया था.
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