फलस्तीन को UN मेंबरशिप: US का वीटो और 1974, 88 के बाद 24 में भी अडिग खड़ा भारत, रुचिरा कंबोज ने दिया अपडेट
मसौदा प्रस्ताव तभी पारित होता है यदि उसे परिषद के 15 में से कम से कम नौ सदस्यों का समर्थन मिले और उसके स्थायी सदस्यों-चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका में से कोई भी वीटो का इस्तेमाल नहीं करे.
भारत ने उम्मीद जताई है कि संयुक्त राष्ट्र का पूर्ण सदस्य बनाए जाने के फलस्तीन के जिस आवेदन के खिलाफ अमेरिका ने पिछले महीने वीटो का इस्तेमाल किया था, उस पर पुनर्विचार किया जाएगा और वैश्विक संगठन का सदस्य बनने की उसकी कोशिश को समर्थन मिलेगा.
संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता हासिल करने के फलस्तीन के प्रयासों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका ने पिछले महीने वीटो का इस्तेमाल किया था. परिषद ने मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया था जिसके पक्ष में 12 वोट पड़े थे, स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन मतदान से दूर रहे थे और अमेरिका ने वीटो का इस्तेमाल किया था.
मसौदा प्रस्ताव तभी पारित होता है यदि उसे परिषद के 15 में से कम से कम नौ सदस्यों का समर्थन मिले और उसके स्थायी सदस्यों-चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका में से कोई भी वीटो का इस्तेमाल नहीं करे.
UN में क्यों रुका फलस्तीन का अप्रूवल?
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने यहां कहा, 'हम जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता के लिए फलस्तीन के आवेदन को वीटो के कारण सुरक्षा परिषद ने अनुमोदित नहीं किया, लेकिन मैं भारत की दीर्घकालिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए शुरुआत में ही यह बताना चाहती हूं कि हम आशा करते हैं कि उचित समय पर इस पर पुनर्विचार किया जाएगा और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के फलस्तीन के प्रयास का समर्थन किया जाएगा.'
UN में कब-कब फलस्तीन के लिए खड़ा हुआ भारत?
भारत 1974 में फलस्तीन मुक्ति संगठन को फलस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना था. भारत 1988 में फलस्तीन देश को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में से एक था और 1996 में दिल्ली ने गाजा में फलस्तीन प्राधिकरण के लिए अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया.
अभी संयुक्त राष्ट्र में क्या है फलस्तीन का स्टेटस?
इस समय फलस्तीन संयुक्त राष्ट्र में एकगैर-सदस्य पर्यवेक्षक देश है जिसे 2012 में महासभा ने यह दर्जा दिया था. कंबोज ने बुधवार को महासभा की बैठक को संबोधित करते हुए रेखांकित किया कि भारतीय नेतृत्व ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि इजराइल और फलस्तीन के बीच सीधी और सार्थक बातचीत के माध्यम से प्राप्त द्विराष्ट्र समाधान ही स्थायी शांति को संभव बनाएगा.
उन्होंने कहा, 'भारत ऐसे द्विराष्ट्र समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां फलस्तीनी लोग इजराइल की सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित सीमाओं के भीतर एक स्वतंत्र देश में स्वतंत्र रूप से रह सकें.' कंबोज ने इस बात पर जोर दिया कि स्थायी समाधान पर पहुंचने के लिए भारत सभी पक्षों से शीघ्र ही प्रत्यक्ष शांति वार्ता फिर से शुरू करने के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बढ़ावा देने का आग्रह करेगा.
कंबोज ने कहा कि गाजा में हालिया संघर्ष छह महीने से अधिक समय से जारी है और इससे उत्पन्न मानवीय संकट बढ़ता जा रहा है. उन्होंने कहा, 'क्षेत्र और उसके बाहर भी अस्थिरता बढ़ने की संभावना है.' कंबोज ने संघर्ष पर भारत की स्थिति को रेखांकित करते हुए कहा कि इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध के कारण बड़े पैमाने पर नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की जान चली गई है और मानवीय संकट पैदा हो गया है जो पूरी तरह अस्वीकार्य है. भारत ने युद्ध में आम नागरिकों की मौत की कड़ी निंदा की है.
कंबोज ने कहा कि पिछले साल सात अक्टूबर को इजराइल में हुए आतंकवादी हमले चौंकाने वाले थे और इसकी ‘‘स्पष्ट रूप से निंदा’’ की जानी चाहिए. उन्होंने गाजा के लोगों के लिए मानवीय मदद की आपूर्ति बढ़ाए जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.
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