इस्लामाबाद: पाकिस्तान की एक संसदीय कमेटी ने कहा है कि देश जबरन धर्मांतरण से धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पाया है . सांसद अनवारूल हक काकर की अध्यक्षता में जबरन धर्मांतरण मामलों पर गौर करने के लिए एक संसदीय कमेटी ने हाल में सिंध के कुछ इलाकों का दौरा किया जहां से हिंदू लड़कियों के जबरन धर्मांतरण के कई मामले आए हैं.


काकर ने कहा कि ‘देश जबरन धर्मांतरण से धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा की अपनी जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर सका है. ’’ हालांकि, उन्होंने कहा कि अधिकतर मामलों में कुछ हद तक रजामंदी भी थी. एक सवाल पर काकर ने कहा कि जबरन धर्मांतरण की कई परिभाषा हैं और कमेटी ने इस पर व्यापक चर्चा की है .


उन्होंने कहा, ‘‘बेहतर जीवनशैली के लिए किए गए धर्मांतरण को भी जबरन धर्मांतरण माना जाता है, आर्थिक कारणों से हुए धर्मांतरण को शोषण माना जा सकता है लेकिन यह जबरन धर्मांतरण नहीं है क्योंकि यह सहमति से होता है . ’’


काकर ने कहा कि जो लोग हिंदू लड़कियों को बाहर निकलने और अपनी इच्छा से शादी करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं वे अपनी बेटियों के मामले में उदारता नहीं दिखाते. उन्होंने कहा कि सबसे दुखद स्थिति यह है कि परिवार के ‘दुख और दर्द’ पर विचार नहीं किया जाता.


काकर ने विवाह के लिए नए नियमों को लागू करने का सुझाव दिया जिसमें शादी के समय अभिभावक की मौजूदगी को अनिवार्य किया जाए.


रिपोर्ट के मुताबिक सांघर, घोटकी, सुक्कुर, खैरपुर और मीरपुरखास जिलों में जबरन धर्मांतरण के सबसे ज्यादा मामले आते हैं . बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों से कम ही मामले आते हैं जबकि पंजाब से ईसाई समुदाय के धर्मांतरण के कुछ मामले सामने आए हैं .