Pervez Musharraf Afghan policy: अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 को हुए हमलों के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई में साथ देने की पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की अफगान नीति और तालिबान के प्रति उनका नरम रुख उनके देश पाकिस्तान (Pakistan) के लिए दोधारी तलवार साबित हुआ. मुशर्रफ की इन नीतियों का परिणाम यह हुआ कि चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गए तथा पाकिस्तान में आतंकवादी हमले हुए. जनरल मुशर्रफ (79) का लंबी बीमारी के बाद रविवार को दुबई के अस्पताल में निधन हो गया.


पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह और 1999 में कारगिल युद्ध के मुख्य सूत्रधार जनरल मुशर्रफ ने 1999 में रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया और 2008 तक प्रभारी बने रहे.


11 सितम्बर 2001 के हमलों का मुख्य साजिशकर्ता अलकायदा का नेता ओसामा बिन लादेन था, जिसे तालिबान अफगानिस्तान में शरण दे रहे थे. मुशर्रफ ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'इन द लाइन ऑफ फायर' में लिखा है, "अमेरिका का 9/11 के हमलों के बाद घायल रीछ की तरह पलटवार करना निश्चित था. यदि साजिशकर्ता अल-कायदा हुआ तो घायल रीछ सीधे हमारी ओर आएगा."


ऑटोबायोग्रफी में खुलासा


ऑटोबायोग्रफी के अनुसार, 2001 में अमेरिकी विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल ने 9/11 के हमलों के बाद मुशर्रफ से कहा था कि पाकिस्तान या तो हमारे साथ होगा या हमारे खिलाफ होगा. अमेरिकी संदेश के बावजूद, अफगानिस्तान पर आक्रमण मुशर्रफ के लिए अधिक उपयुक्त समय पर नहीं हुआ. लेकिन, तब वह अमेरिका के साथ हो लिए और पाकिस्तान के लिए अमेरिकी पैसों के रास्ते खोल दिए.


सीमा पर सुरक्षा के इंतजाम के अभाव 


पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह के फैसले के दूरगामी परिणाम हुए. पाकिस्तान में चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गए और न केवल अफगान आतंकवादियों को समर्थन मिला, बल्कि देश के अंदर हमले भी शुरू हो गए. अफगानिस्तान के साथ स्थानीय गतिशीलता और सीमा पर सुरक्षा के इंतजाम के अभाव में मुशर्रफ आतंकवादियों को सीमा में प्रवेश से रोक नहीं सके. इस दोहरे खेल के लिए पश्चिमी देशों ने उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन वे पाकिस्तान और तालिबान के बीच साठगांठ को तोड़ने में विफल रहे. मुशर्रफ के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के लंबे समय बाद, तालिबान अंततः 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में लौट आया.


 पाकिस्तान को एक ट्रांजिट रास्ते के रूप में इस्तेमाल किया गया


अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेना के घुसने के लिए पाकिस्तान को एक ट्रांजिट रास्ते के रूप में इस्तेमाल किया गया था और मुशर्रफ ने पाकिस्तान के बीहड़ सीमावर्ती इलाकों में संदिग्ध आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिकी सेना के हमलों को सहन किया. मुशर्रफ की अफगान नीति के कारण 2007 में सामने आए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकवादी संगठनों के समक्ष पाकिस्तान की दुर्बलता उजागर हुई. TTP को पूरे पाकिस्तान में कई घातक हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें 2009 में सेना मुख्यालय पर हमला, सैन्य ठिकानों पर हमले और 2008 में इस्लामाबाद में मैरियट होटल में बमबारी शामिल है.


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