रूस पर यूक्रेन के लोगों को उनके फोन और दस्तावेजों को जब्त करने के बाद उन्हें जबरन साइबेरियाई शहरों में ले जाने से पहले 'फिल्ट्रेशन सेंटरों' में निर्वासित करने का आरोप लगाया गया है. डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक कई हजार लोगों को साइबेरिया ले जाया जा चुका है. मारियुपोल नगर परिषद ने दावा किया कि यूक्रेनी नागरिकों को पहले 'फिल्ट्रेशन कैम्प' में रखा गया, उसके बाद रूस के 'दूरस्थ शहरों' में भेज दिया गया, जहां वे वर्षो तक रहने और मुफ्त में काम करने के लिए बाध्य होंगे.
रूसी समाचार एजेंसियों ने बताया है कि दक्षिण-पूर्वी बंदरगाह शहर मारियुपोल से सैकड़ों शरणार्थियों को लेकर बसें हाल के दिनों में रूस पहुंची थीं. मॉस्को के अधिकारियों ने यह भी कहा कि 280 से अधिक यूक्रेनियाई लोगों को मारियुपोल से निकाला गया है. फुटेज में वे लोग रूसी सेना को धन्यवाद देते दिख रहे हैं.
डेली मेल के मुताबिक, मारियुपोल के मेयर वादिम बोइचेंको ने इस तरह के जबरन निर्वासन की तुलना द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी शासन द्वारा कैदियों को यहां से वहां ढोए जाने से की. उन्होंने कहा, "कब्जा करने वाले लोग आज जो कर रहे हैं, वे पुरानी पीढ़ी से परिचित हैं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध की भयावह घटनाओं को देखा था, जब नाजियों ने लोगों को जबरन कब्जे में ले लिया था. यह कल्पना करना कठिन है कि 21वीं सदी में लोगों को जबरन एक और देश ले जाया जा सकता है."
रूसी सैनिकों द्वारा घेरे जाने, ऊर्जा, भोजन और पानी की आपूर्ति से कट जाने और लगातार बमबारी का सामना करने के बाद यूक्रेन का मारियुपोल शहर एक मानवीय आपातकाल के कगार पर है. रूसी कर्नल-जनरल मिखाइल मिजिनत्सेव ने रविवार देर रात मांग की कि काला सागर बंदरगाह में यूक्रेनी सैनिकों और भाड़े के विदेशी सैनिकों ने अपने हथियार डाल दिए और बदले में आत्मसमर्पण कर दिया, ताकि शहर में फंसे हजारों नागरिकों को सुरक्षित निकाला जा सके.
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