India Russia Relations : भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति पुतिन की दोस्ती इतनी गहरी है कि हर कोई इस पर चर्चा करता है. अभी हाल ही में पीएम मोदी रूस की यात्रा से आए हैं. रूस और भारत के रिश्ते पुराने समय से ही मजबूत रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा भूमिका एक राजदूत ने निभाई है, जिसके बारे में काफी कम लोग जानते हैं. कहा जाता है कि 1950 के दशक में सोवियत संघ और तत्कालीन राष्ट्रपति जोसेफ स्टालिन भारत के बारे में बहुत अच्छी राय नहीं रखते थे. ये वो दौर था, जब दोनों देशों के बीच संबंध नहीं थे. मॉस्को में हमेशा से भारत की छवि नकारात्मक बनी हुई थी. उन्हें लगता था कि आजादी के बाद भी भारत साम्राज्यवादी ताकतों के हाथों में खेला रहा है. मॉस्को के अखबार भारत को पिछलग्गू मानकर खबरें लिखते थे.


पहले राजदूत को छोड़ना पड़ा था रूस
रूस में लंबे समय तक रहे अशोक कपूर ने अपनी किताब 'द डिप्लोमेटिक आइडियाज एंड प्रैक्टिसेस ऑफ एशियन स्टेटस' में लिखा है कि वर्ष 1950 में राधाकृष्णन को मॉस्को में राजदूत के रूप में भेजा गया तो उनका काम बहुत मुश्किल था, क्योंकि भारत ने विजयलक्ष्मी पंडित को आजादी के बाद सोवियत संघ में अपना पहला राजदूत बनाकर भेजा था. उन्होंने स्टालिन से कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें अनुमति ही नहीं दी. स्टालिन उन्हें एरोगेंट मानते थे. विजयलक्ष्मी पंडित 2 साल तक मॉस्को में केवल भारतीय दूतावास तक सीमित रहीं. उन्हें बाद में लौटना पड़ा.


मॉस्को और भारत को ऐसे लाये करीब
ऐसी स्थिति में राधाकृष्णन को विजयलक्ष्मी की जगह मॉस्को भेजा गया. उनके सामने बड़ी चुनौती थी. मॉस्को जाने से पहले राधाकृष्ण संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत थे. उन्हें स्टालिन को साधना था, जो बहुत मूडी भी था. स्टालिन ने भारत और नेहरू के खिलाफ नकारात्मक धारणा बिठाई हुई थी, लेकिन राधाकृष्णन चालाक शख्स थे. वह फिलॉस्फर भी थे. उन दिनों रूस में दार्शनिकों को काफी सम्मान दिया जाता था. लिहाजा उन्होंने मॉस्को में खुद को अलग और खास दिखाने के लिए छवि को भुनाने की कोशिश की. मॉस्को में प्रोपेगैंडा फैलाया जाने लगा कि वह रात में केवल 2 घंटे सोते हैं. रातभर किताबें लिखने में बिजी रहते हैं. दिन में राजनयिक की भूमिका निभाते हैं. वह रहस्यपूर्ण शख्सियत बन गए. इसके बाद से राधाकृष्णन की अलग छवि सोवियत संघ में बनने लगी. उन्होंने स्टालिन से मिलने का समय मांगा तो तुरंत समय मिल गया. भारतीय दूतावास के विदेश मंत्रालय को भेजे गए तार में कहा गया कि पहली मुलाकात बहुत उपयोगी रही, जिसने भारत के बारे में स्टालिन की ढेर सारी धारणाएं बदल दीं. स्टालिन को लगता था कि भारत में अंग्रेजी भाषा का राज चलता है. उन्होंने पूछा कि आपके यहां कौन सी भाषा में काम होता है. राधाकृष्णन ने चतुराई से जवाब दिया कि देश की सबसे लोकप्रिय भाषा हिंदी है. इस पर सोवियत प्रमुख खुश हुआ. अगर राधाकृष्णन का जवाब अंग्रेजी होता तो शायद ये स्टालिन को अच्छा नहीं लगता.


लौटने से तीन दिन पहले की मुलाकात
राधाकृष्णन ढाई साल मॉस्को में रहे. उन्हें जब भारत लौटना था, उससे 3 दिन पहले ही स्टालिन से मिलने की कोशिश की. समय मिल गया, स्टालिन विदेशी राजदूतों को मिलने के लिए काफी इंतजार कराया करते थे. राधाकृष्णन मुलाकात के बाद नेहरू और मॉस्को को करीब लाने में सफल रहे थे.अपनी आखिरी मुलाकात में भी उन्होंने भारत के बारे में बची भ्रांतियों को दूर किया.