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सिंगापुर स्टोन, राजा शूलन... हिंदुस्तान का ही हिस्सा था सिंगापुर? क्या है भारत से इसका हजारों साल पुराना कनेक्शन

13वीं सदी तक सिंगापुर श्री विजय साम्राज्य का हिस्सा था. आज के जावा, सुमात्रा, मलेशिया और सिंगापुर, उस वक्त श्री विजय साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगापुर दौरे की एक बात की सबसे ज्यादा चर्चा है. पीएम मोदी ने भारत में कई सिंगापुर बनाने की बात कही है. सिंगापुर 719 वर्ग किलोमीटर में फैला एक छोटा सा टापू देश है, जिसकी गिनती दुनिया के सबसे आधुनिक और अमीर देशों में होती है.

भारत के सामने सिंगापुर इतना छोटा है कि उसके जितने पता नहीं कितने ही देश भारत में समा सकते हैं. पीएम मोदी का अपने 10 साल के कार्यकाल में सिंगापुर का यह छठा दौरा था. दोनों देशों के रिश्तों में जो मजबूती आई है, उसकी चर्चा हर तरफ हो रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत और सिंगापुर का कनेक्शन हजारों साल पुराना है. शायद तब का जब सिंगापुर सिंहपुरा हुआ करता था या फिर उससे भी पुराना जब इसे तेमासेक के नाम से जाना जाता था.

तेमासेक से कैसे बना सिंगापुर?
14वीं सदी से पहले सिंगापुर का नाम तेमासेक हुआ करता था. भारत में तब इसको स्वर्ण द्वीप के नाम से जाना जाता था. मलय लोक कथाओं की अगर मानें तो सिंगापुर पर जिस राजा ने सबसे पहले राज किया, उसके पूर्वज हिंदुस्तान से आए थे. इस राजा से जुड़ी कहानियां सिंगापुर के इतिहास की किताब सेजाराह मेलायू में भी मिलती हैं. इसके अनुसार भारत में कलिंग देश के एक राजा हुआ करते थे,  जिनका नाम शूलन था. किताब के अनुसार शूलन ग्रीक सम्राट सिंकदर के वंशज थे.

किसने रखा था सिंगापुर का ना सिंहपुरा?
एक बार राजा शलून जंगी जहाजों के साथ चीन पर हमले के लिए निकले. इसी दौरान उनकी नजर तेमासेक यानी सिंगापुर पर पड़ी. हुआ ये था कि चीन तक का रास्ता बहुत लंबा था तो राजा शूलन ने तेमासेक में रुकने का फैसला किया. इस दौरान उन्हें एक चीनी जासूस ने बरगलाया और झूठी कहानी सुना दी कि चीन तो बहुत दूर है, वह पहुंच नहीं पाएंगे. राजा शूलन ने भी उसकी बात मान ली और वह तेमासेक में ही रुक गए.  किताब में बताया गया कि आगे चलकर राजा शूलन ने तेमासेक की एक राजकुमारी से शादी कर ली. इसके बाद उनके एक वंशज हुए निला उत्तमा, जिन्होंने तेमासेक का नाम बदलकर सिंहपुरा रखा था.

सिंगापुर को लेकर एक और कहानी भी है. मलय दस्तावेजों के अनुसार चीन पर हमला करने के लिए राजा शूलन के साथ चोल साम्राज्य के राजा राजेंद्र चोल भी आए थे. दोनों ने रास्ते में आने वाले श्रीविजय साम्राज्य को हराकर उस पर कब्जा कर लिया और यह सब देखकर चीन का सोंग राजवंश घबरा गया और एक गुप्तचर के जरिए राजा चोल को पैगाम भिजवाया कि चीन बहुत दूर है. इसके बाद राजा राजेंद्र चोल वापस लौट गए, जबकि राजा शूलन वहीं रुक गए और सिंगापुर के राजकुमारी से शादी कर ली. 

इसके बाद साल 1299 में राजा शूलन के वंशज सांग निला उतामा तेमासेक पहुंचे. यहां उन्हें एक शेर दिखाई दिया. उन्होंने पहली बार शेर देखा था. जब उन्हें पता चला कि यह शेर है तो उसी के नाम पर उन्होंने तेमासेक का नाम सिंहपुरा रख दिया और आज यह सिंगापुर बन गया है.

13वीं सदी तक सिंगापुर श्री विजय नाम के एक साम्राज्य का हिस्सा था. उस वक्त श्री विजय साम्राज्य में आज के जावा, सुमात्रा, मलेशिया और सिंगापुर आते थे. एक इतिहासकार जॉन मिक्सिक के अनुसार भारत और सिंगापुर के ऐतिहासिक कनेक्शन का पता चलता है. उनका कहना है कि 14वीं शताब्दी में भारतीय भाषाओं के प्रभाव में तेमासेक का नाम बदलकर सिंहपुरा किया गया होगा. जॉन मिक्सिक का कहना है कि संभवत: राजा चोल की कहानी को ही राजा शूलन की कहानी में तब्दील किया गया होगा. 

सिंगापुर स्टोन
कहानियों से अलग भारत और सिंगापुर के कनेक्शन का एक और सबूत भी है, जिसका नाम सिंगापुर स्टोन है. यह पत्थर आज भी सुरक्षित रखा हुआ है. इस पत्थर पर ऐसी भाषा लिखी है, जिसको डिकोड करने की कोशिश चल रही है. इस पर प्राचीन लिपी दर्ज है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस पर लिखी लिपी 1000 से 1300 ईसवी के बीच की है. इसमें लिखे शब्द संस्कृत, तमिल या जावानीज भाषा में हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इस पर लिखे शब्दों का भारत से कनेक्शन है, लेकिन यह पता लगा पाना मुश्किल है कि ये क्या लिखा है क्योंकि पत्थर का सिर्फ एक टुकड़ा ही मौजूद है.

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