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चीन-अमेरिका में बढ़ते तनाव के बीच ट्रंप ने किया सुपर-डुपर मिसाइल होने का दावा

चीन और अमेरिका में टेंशन और पेंटागन रिपोर्ट 2020 के बीच ट्रंप ने सुपर-डुपर मिसाइल होने का दावा किया है.

नई दिल्ली: कोरोना वायरस को लेकर चीन और अमेरिका में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ा दावा किया है. उन्होंने दावा किया है कि अमेरिका के पास सुपर डुपर मिसाइल है, जो रूस और चीन से 17 गुना ज्यादा तेज है. ये एक सुपरसोनिक मिसाइल है. जिसे चीन से बढ़ते खतरे को देखते हुए अमेरिका तैयार कर रहा है.

इससे पहले पेंटागन की रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें चौंकाने वाला दावा किया गया था कि ताइवान को लेकर अगर जंग छिड़ी तो अमेरिका जंग हार सकता है, इसके बाद ट्रंप ने सुपर डुपर मिसाइल होने का दावा करते हुए चीन को धमकाया है. इसी पर एबीपी न्यूज़ की टीम ने चीनी मामलों के जानकार संजीव श्रीवात्सव से बात की. आइए देखिए उन्होंने क्या कहा..

सवाल 1- सुनकर यकीन नहीं होता कि अमेरिका चीन से हार जाएगा, लेकिन पेंटागन ऐसा मानता है, इसकी वजह क्या हो सकती है?

अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन के द्वारा चीन रिपोर्ट 2020 में इस बात की आशंका जताई गई है कि यदि एशिया पेसिफिक में जिसको अब इंडो- पेसिफिक का नाम दिया गया है, इसमें अमेरिका का चीन के साथ कोई युद्ध होता है तो इस युद्ध मे अमेरिका को हार का सामना करना पड़ सकता है. यह अमेरिका के लिए एक चिंता की बात है. अमेरिका ने एक सिमुलेशन एक्सरसाइज की जो 2030 तक के समय को ध्यान में रखते हुए किया गया था. इस एक्सरसाइज में एक तरह का असेसमेंट किया गया है कि अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो अमेरिका को हार का सामना करना पड़ सकता है जो कि अमेरिका के लिए एक चेतावनी है.

यह रिपोर्ट अमरिका की सभी सुरक्षा तैयारियों को अलर्ट करने के लिए बहुत ही सहायक साबित होगी. इसके निर्णय से अमेरिका चीन की एग्रेसिव और assertive नीति के विरुद्ध अपनी posturing को आने वाले समय मे और तेज करेगा. इस रिपोर्ट में यह बात साफ तरह से स्पष्ठ है कि अमेरिका ने पिछले दो दशकों में अपना पूरा ध्यान मिडिल ईस्ट और अफगानिस्तान की तरफ रखा और इंडो पेसिफिक के रीजन को कहीं न कहीं अमेरिका ने इग्नोर किया, जिसका फायदा चीन ने उठाया और अपनी प्रजेंस को लगातार बढ़ाता रहा, चाहे फिर वो लांग रेंज एन्टी शिप मिसाइल हों, मिडियम रेंज मिसाइल्स हों, तमाम एयरक्राफ्ट कैरियर हों या आर्टिफीसियल आइलैंड हों, इस तरह की तमाम तैयारियां चीन लगातार एशिया पसिफ़िक में करता रहा और अपने दब दबे को बढ़ाने का काम करता रहा.

दूसरी ओर अमेरिका कुछ सैनिक संधियों में भी बंधा रहा जैसे कि Intermediate Nuclear Force Treaty (INF) जो 1987 में साइन की गई थी, जिसके तहत अमेरिका मध्यम रेंज मिसाइल्स भी नहीं बना सकता था और न ही डिप्लॉय कर सकता था. ग्राउंड बेस्ड मीडियम रेंज मिसाइल्स जो 500 से 5000 km तक कि मार्क करने वाली मिसाइल हैं इसका भी उत्पादन और डिप्लॉयमेंट दोनों ही अमेरिका नहीं कर सकता था और यह जो सन्धि थी वो रूस के साथ थी. अब अमेरिका भी INF की ट्रीटी से पिछले साल बाहर आ गया है और अमेरिका का ट्रीटी से बाहर आने का सबसे बड़ा कारण चीन ही है. चीन ने अमेरिका और रूस की इस संधि का फायदा उठाते हुए एशिया पेसिफिक क्षेत्र में लगभग 2000 मिसाइलों को तैनात कर दिया है.

सवाल 2- अगर चीन गुआम पर मिसाइलों से हमला कर सकता है, तो अमेरिका की भी तो कोई तैयारी होगी, वो इसे कैसे रोकेगा ?

गुआम में अमेरिका के तीन मिलिट्री बेसेस हैं और अगर इन बेसेस पर चीन की मिसाइलों का हमला होता है तो इससे जूझने के लिए अमेरिका अभी अपनी बेसेस को इस तरह के हमले से डिफेंड करने के लिए तैयार कर रहा है. पिछले साल अमेरिका ने मीडियम और लांग रेंज मिसाइल्स की तैनाती और प्रतिबंधित करने से सम्बंधित जो ट्रीटी थी, INF, उससे बाहर आ गया है. अब अमेरिका ने ग्राउंड बेस्ड लांग रेंज एन्टी शिप मिसाइल को डिप्लॉय करने का काम शुरू कर दिया है, अपने फाइटर ऐरक्राफ्ट्स में भी लांग रेंज एन्टी शिप मिसाइल्स को तैनात कराएगा चाहे वो नेवी के सुपर हॉरनेट्स हो या फिर बी 1 बॉम्बर्स हों, इन सभी विमानों को भी अब एन्टी शिप मिसाइल्स से लैस किया जाएगा.

अमेरिका अब अपने डिप्लॉयमेंट्स को diversify कर रहा है और ऐसे 10-15 पॉइंट्स बनाने की कोशिश कर रहा है जिनके माध्यम से चीन पर वो आसानी से हमला कर पाए और चीन को यह न पता चल पाए की अमरीका का यह हमला आखिर आ कहां से रहा है. अब अमरीका ने चीन को घेरने के लिए बहुत ही एग्रेसिव तरीके से कार्य करना शुरू कर दिया है. फर्स्ट आइलैंड चेन पर नव सेना और मरीन्स दोनों की ही तैनाती की जाएगी. अब क्रूज मिसाइल्स की भी तैनाती की जा रही है. इस तरीके से अमेरिका का dominance एशिया पेसिफिक रीजन पर अब बढ़ने लगेगा.

अमेरिका के साथ दुनिया की अन्य सेनाएं भी जुड़ी हुई हैं जैसे कि जापान और ऑस्ट्रेलिया. ऐसे में चीन पर आने वाले समय में निसंदेह अमेरिका का मिलिट्री प्रेशर बढ़ेगा. शी जिंगपिंग के नैतृत्व में चीन जैसी अग्रेसिव नीति अपना रहा है उसके चलते अमेरिका अब हाई अलर्ट मोड में आ गया है और अपने पूरे क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए तैयारियां शुरू कर रहा है. अमेरिका हमेशा से ही खुद को पेसिफिक ओशन का पावर मानता रहा है और उसका मानना है कि अमेरिका की आर्थिक और नेशनल सिक्योरिटी पेसिफिक क्षेत्र से करीबी तौर पर जुड़ी हई है. अमेरिका का अब दबाव इंडो पेसिफिक क्षेत्र पर बढ़ेगा और चीन को रोकने में अधिक सहायक होगा.

सवाल 3- ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका में तनाव हर दिन बढ़ता जा रहा है, क्या बात वाकई में जंग तक पहुंच सकती है ?

ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच का तनाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन ताइवान तनाव का केवल एक बिंदु है. चीन का व्यवहार साउथ चाइना सी, ईस्ट एशियन सी, और ताइवान स्ट्रेट में दिख रहा है उससे अब लगता है कि इन सब में से कोई भी बिंदु हो सकती है जो अमेरिका और चीन के बीच मे डायरेक्ट कंफर्मेशन का कारण बन जाए. अमेरिका और चीन के बीच में तनाव के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कोरोना के कारण अमेरिका में हुई मानवी और आर्थिक त्रासदी है.

अमेरिका में कोरोना, चीन के इन्फॉर्मेशन छिपाने और दबाने की वजह से फैली है, जिसके चलते वहां के लोगों और प्रशासन में चीन के खिलाफ बेहद ही आक्रोश उमड़ गया है. जिसकी वजह से अब चीन से हर्जाना वसूलने की और चीन के ऊपर एक retaliatory कार्रवाई करने की संभावना बढ़ती जा रही है. अमेरिका और चीन का फ्लैशपॉइंट ताइवान स्ट्रेट भी हो सकता है, जापान का सेनकाकू आईलैंड भी ही सकता है, या साउथ चाइना सी का भी कोई पॉइंट हो सकता है, जहां अमेरिका और चीन एक दूसरे को चैलेंज करने की कोशिश कर रहे हैं.

यह जो स्थितियां पनप रही हैं उसका मूलभूत कारण चीन की लापरवाही. चीन के मिसिन्फॉर्मेशन की गहरी साजिश की संभावना है जिसकी वजह से अमेरिका का रुख ज़्यादा हमलावर है. जाहिर है कि ताइवान को लेकर चीन हमेशा ही एक एग्रेसिव posture बनाता रहा है, ताइवान को अपना एक मूलभूत हिस्सा बताता रहा है और जल्द से जल्द उसको वापस लेने की बात शी जिंगपिंग कहते हैं. तो ऐसे में अब ताइवान भी अमेरिका और चीन के बीच युद्ध का एक कारण बन सकता है.

सवाल 4- क्या चीन की सैन्य ताकत उम्मीद से कई गुना तेजी से बढ़ी है, क्या चीन ने इस बारे में भी दुनिया से छिपाया है ?

चीन अपना मिलिट्री मॉडर्नाइजेशन बहुत ही तेजी से करता जा रहा है और चीन इस तरीके से इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देता है कि पूरी दुनिया मे इस मॉडर्नाइजेशन को लेकर बड़ी हेडलाइंस या खबरे न बनें. चीन 'Hide your ability, Bide your time' की नीति पर चलता है और चीन की लगातार गुप्त तरह से कार्य करने की, साम दाम दंड भेद वाली जो नीति है उसी के आधार पर ही चीन अपनी शक्ति को लगातार बढ़ाता है.

पिछले दो दशकों में ऐसा कार्य चीन ने जोरों शोरों से किया है और जैसे कि बताया इस दौरान अमेरिका अलग अलग सन्धियों से बंधा हुआ था जिसके चलते चीन ने इसका पूरा फायदा उठाया. चीन अपनी वार्षिप्स की संख्या बढ़ाता जा रहा है. अपने फाइटर ऐरक्राफ्ट्स की आय दिन स्क्रेम्बलिंग करते हुए दूसरे देशों को हरास करने की कोशिश करता है, कभी छोटे देशों की कश्तियों को डुबो देता है, तो कभी किसी एरिया को अपना डिस्ट्रिक्ट घोषित कर देता है.

पूरे नौ डैश लाइन को अपने अधिकार क्षेत्र में मानता है, तो इस तरीके से देखें तो चीन ने विभिन्न तरीकों से अपनी शक्ति को बढ़ाया है, लेकिन अब लगता है कि अमेरिका ने कमर कस ली है और चीन को चेलेंज करने के लिए अलग अलग कदम उठा रहा है. भारत भी चीन से जूझने के लिए तैयारियों में लगा हुआ है. चीन की किसी भी साजिश को परास्त करने के लिए दुनिया एक होती जा रही है. यह चीन के लिए एक चुनौती बनकर सामने आने वाला है, जिससे शायद चीन लड़ नहीं पायेगा, क्योंकि जब दुनिया की सभी ताकतें चीन के खिलाफ खड़ी होंगी तो चीन लंबे समय तक खुद को सस्टेन नहीं कर पाएगा. आने वाले समय मे कोरोना को लेकर चीन में जांच की मांग और तेज होती जा रही है और शिंकजा कसता जा रहा है. अगर इसमें जरा सी भी सच्चाई हुई तो चीन को इसकी जवाबदेही और भरपाई करनी पड़ेगी.

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