(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Prostate Cancer Side Effects: सामने आया प्रोस्टेट कैंसर का हैरतअंगेज केस, इलाज के बाद अमेरिकी व्यक्ति आयरिश बोलने लगा, जानें
Prostate Cancer Causes: इस स्थिति का वर्णन पहली बार साल 1907 में एक फ्रांसीसी न्यूरोलॉजिस्ट पियरे मैरी ने किया था.
Prostate Cancer Symptoms: मेटास्टैटिक प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के बाद एक अमेरिकी व्यक्ति 'आयरिश' लहजे में बोलने लगा. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि मरीज व्यक्ति की उम्र करीब 55 वर्ष थी और वह अपने जीवन में कभी भी आयरलैंड नहीं गया था. मरीज काफी कोशिश करने के बावजूद आयरिश लहजे में बोलने से खुद को नहीं रोक पा रहा था और वह अपनी मृत्यु तक आयरिश बोलता रहा.
ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी व्यक्ति में प्रोस्टेट कैंसर की वजह से 'विदेशी लहजे में बोलने के लक्षण' विकसित हुए. साथ ही, यह कैंसर के कारण विदेशी लहजे में बोलने के लक्षणों वाला तीसरा मामला है, अन्य दो मामले स्तन कैंसर और ब्रेन कैंसर से जुड़े हुए थे.
मस्तिष्क को नुकसान होने से लक्षण
विदेशी लहजे में बोलने के लक्षण आमतौर पर मस्तिष्क को क्षति पहुंचने के बाद होता है, जैसे कि मस्तिष्काघात से, मस्तिष्काघात विभिन्न तरह से बोलने और भाषा विकारों का कारण बन सकता है. लेकिन विदेशी लहजे में बोलने का लक्षण ज्यादा असामान्य है. इसके अन्य कारणों में, मस्तिष्क की संरचना में परिवर्तन, जैसे कैंसर ट्यूमर, एन्सेफलाइटिस और डिमेंशिया जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार शामिल हैं.
1907 में आया था पहला केस
इस स्थिति का वर्णन पहली बार साल 1907 में एक फ्रांसीसी न्यूरोलॉजिस्ट पियरे मैरी ने किया था. मैरी ने एक ऐसे व्यक्ति के मामले का वर्णन किया था, जो मूल रूप से पेरिस लहजे में फ्रेंच बोलता था, लेकिन अचानक उसने क्षेत्रीय लहजे में फ्रेंच बोलना शुरू कर दिया. आज तक, क्लिनिकल अध्ययनों में विदेशी लहजे में बोलने के लगभग 200 मामले सामने आए हैं.
मरीज व्यक्तित्व विशेषता खो देते हैं
शायद सबसे प्रसिद्ध मामला जॉर्ज माइकल का है, जब उसने 2011 में निमोनिया होने पर कोमा में जाने के बाद ठीक होने पर एक पश्चिमी देश के लहजे में बात की. जबकि वो उत्तरी लंदन का रहने वाला है. रोगियों के लिए स्थिति चिंताजनक हो सकती है क्योंकि वे एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व विशेषता खो देते हैं जो उनके उच्चारण द्वारा व्यक्त की जाती है.
1947 में भी आया केस
इस बीमारी के प्रभाव की सूचना 1947 में नॉर्वे के न्यूरोलॉजिस्ट मोनराड-क्रोन द्वारा दी गई थी. उन्होंने नॉर्वे की एक महिला का वर्णन किया था, जिसे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बमबारी की वजह से सिर में गंभीर चोट लगी थी. इसके बाद उसने एक जर्मन विदेशी उच्चारण के साथ नॉर्वेजियन में बात की.
महिला मरीज को अक्सर दुकानों में सामान देने से मना कर दिया जाता था क्योंकि लोग सोचते थे कि वह जर्मन है. हर समय एक विदेशी के रूप में पहचाना जाना और इसके बारे में पूछताछ किया जाना बहुत परेशान करने वाला हो सकता है. इस तरह के लक्षण वाली एक महिला को यह कहते सुना गया कि उसे होटल में रहना अच्छा लगता था क्योंकि होटल के माहौल में विदेशी उच्चारण सुनना बहुत स्वाभाविक है, इसलिए इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है.
मनोवैज्ञानिक कारण
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को नुकसान के अलावा, अत्यधिक तनाव जैसे मनोवैज्ञानिक कारकों के चलते विदेशी लहजे में उच्चारण लक्षण विकसित हो सकता हैं.