नेपाल में जारी सत्ता कलह के बीच कम्यूनिस्ट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचण्ड ने भारत से मदद की आस जताई है. प्रचण्ड ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के प्रतिनिधिसभा भंग करने के फैसले पर भारत के मौन को अस्वाभाविक करार देते हुए उन सभी देशों से मदद का आग्रह किया जो नेपाल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के समर्थक हैं.
नेपाल में कांतिपुर टीवी को दिए साक्षात्कार में प्रचण्ड ने कहा कि नेपाल की शान्ति प्रक्रिया, संघीय लोकतान्त्रिक गणतंत्र की स्थापना की प्रक्रिया में भारत की निश्चित ही नैतिक समर्थन सहयोग मिलने की बात इतिहास में दर्ज है. लेकिन ऐसे संकट के समय में भारत का मौन रहना कुछ अस्वाभाविक लग रहा है.
महत्वपूर्ण है कि भारत सरकार ने नेपाल में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल से सुरक्षित दूरी दिखाने का प्रयास किया है. बीते दिनों विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि नेपाल में हाल के राजनीतिक घटनाक्रम पर हमाने ध्यान दिया है. यह नेपाल की अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुसार आंतरिक मामले हैं. एक पड़ोसी के रूप में, भारत शांति, समृद्धि और विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने में नेपाल और उसके लोगों का समर्थन जारी रखेगा.”
दरअसल, भारत का रणीतिक लाभ फिलहाल नेपाल में चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने से जुड़ा है. नेपाल में अगर कम्युनिस्ट ताकतें चीनी प्रभाव तले एकजुट होती हैं तो इससे भारत के हितों पर ही असर पड़ेगा. लिहाज़ा फिलहाल नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में हुए विभाजन या नए चुनावों की तरफ बढ़ती कवायद को लेकर भारत का कोई विरोध नहीं नज़र आता. हालांकि भारत की इस तटस्थ प्रतिक्रिया को नेपाल के राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री ओली के लिए मौन समर्थन के तौर पर दिखाने की भी कोशिश हो रही है.
प्रचण्ड ने भी अपने साक्षात्कार में इसका इशारा करते हुए कहा कि कई बार मौन को भी समर्थन ही माना जाता है.ऐसे में प्रधानमंत्री ओली के फैसलों के खिलाफ भारत की चुप्पी से उन्हें समर्थन ही मिलता है. हमारी भारत जैसे मित्र लोकतांत्रिक देशों से नैतिक समर्थन की उम्मीद है जो नेपाल में लोकतंत्र के पक्षधर हैं. वैसे यह बात और है कि नेपाल में दो बार प्रधानमंत्री की कुर्सी सम्भाल चुके प्रचंड सत्ता में रहते हुए भारत-विरोध के औजार का भरपूर सियासी इस्तेमाल भी करते रहे हैं.
इस बीच प्रचंड ने भारत से अपनी अपेक्षाएं जताने और ओली सरकार पर तंज के बहाने कटाक्ष करने पर तो खासा ध्यान दिया. लेकिन राजनीतिक संकट के बीच चीनी प्रतिनिधिमंडल से आपनी मुलाकात और समर्थन से जुड़े सवालों को प्रचण्ड सफाई से टाल गए. इस बारे में किए गए सवालों पर उन्होंने कहा कि चीन नेपाल में स्थिरता और कम्यूनिस्ट पार्टी में एकता चाहता है. मगर हमारी अपेक्षा और अपील भारत से है जिसकी नेपाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया की स्थापना में समर्थक की भूमिका रही है.
काठमांडो में भारत के पूर्व राजदूत रंजीत रे कहते हैं कि चीन का नेपाली राजनीति में इस तरह का खुला दखल काफी चौंकाने वाला है. नेपाल में भारत के हर कदम पर काफी सियासत होती गई. लेकिन नेपाल के आंतरिक मामलों में चीन की ऐसी राजनीतिक सक्रियता और प्रतिनिधि मंडल भेजने जैसा कदम निश्चित ही चिंताएं बढ़ाने वाला है.
गौरतलब है कि चीन ने ओली सरकार के प्रतिनिधि सभा भंग करने के फैसले के बाद ताबड़तोड़ अपना एक उच्च स्तरीय दल नेपाल भेजा. इस दल ने नेपाल में राष्ट्रपति से लेकर पीएम.ओली तथा प्रचण्ड व माधव नेपाल जैसे नाराज़ नेताओं और विपक्षी नेपाली काँग्रेस के लीडर्स से मुलाकातें की. इससे पहले नेपाल में चीन की राजदूत होउ यंक्षी भी पार्टी में एकता के लिए अपनी पुरजोर कोशिशों की नुमाइश कर चुकी हैं.
ध्यान रहे कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में लंबे समय से जारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बीते दिनों प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया. इसको लेकर पार्टी में उनके विरोधी धड़े के मुखिया माधव नेपाल और प्रचण्ड की नाराज़गी इस कदर गहराई कि पार्टी में दो फाड़ हो गए. फैसले को लेकर मामला जहां नेपाली सुप्रीम कोर्ट में है वहीं विरोधी दल सड़कों पर. ऐसे में जानकारों के मुताबिक इस सियासी घमासान के फिलहाल थमने का आसार मुशिकल ही नज़र आते हैं.
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