ब्रिटेन दौरे पर पहुंचे राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीखी आलोचना करते हुए उसकी तुलना मिस्र के चरमपंथी मुस्लिम ब्रदरहुड से की है. राहुल ने कहा कि संघ की स्थापना ठीक उसी तरह सीक्रेट सोसाइटी के तहत की गई है, जैसे मिस्र में ब्रदरहुड की हुई थी.


राहुल ने कहा कि संघ पहले लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात कर सत्ता में आती है और फिर उसे नष्ट करने में जुट जाती है. संघ की विचारधारा की वजह से भारत में दलित और आदिवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है. राहुल के बयान पर हंगामा शुरू हो गया है और विश्व हिंदू परिषद ने सवाल उठाया है.


मीडिया से बात करते हुए वीएचपी के संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन ने कहा कि राहुल गांधी अपने स्वार्थ के लिए देश का टुकड़ा करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का व्यवहार टूलकिट मेंबर की तरह है. 


संघ के बारे में बोलते हुए जैन ने कहा कि संगठन की राष्ट्रभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. मुस्लिम ब्रदरहुड से तुलना गलत है.


राहुल गांधी ने संघ को लेकर क्या कहा?
लंदन में थिंक टैंक चैथम हाउस में एक बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि डेमोक्रेटिक कम्पटीशन का तरीका बिल्कुल बदल गया है. इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ है. संघ एक कट्टरपंथी और फासीवादी संगठन है, जिसने भारत के सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है.


उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की तर्ज पर बना हुआ है. भारत में ये लोग एक नैरेटिव चलाया जा रहा है कि बीजेपी को कोई हरा नहीं सकता है. मैं कहना चाहता हूं कि बीजेपी हमेशा के लिए सत्ता में नहीं रहने वाली है. राहुल ने कहा कि भारत में प्रेस, न्यायपालिका, संसद और चुनाव आयोग सभी खतरे में हैं.


यह पहली बार नहीं है, जब राहुल ने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की है. 2018 में भी राहुल गांधी मुस्लिम ब्रदरहुड से संघ की तुलना कर चुके हैं. उस वक्त संघ प्रचारक अरुण कुमार ने बयान जारी कर कहा था कि राहुल गांधी को हमारे संगठन के बारे में जानकारी ही नहीं है.


राहुल का बार-बार संघ पर अटैक क्यों?
भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हमलावर हैं. हरियाणा में उन्होंने संघ को 'नई सदी का कौरव' बताया था. अब फिर से उन्होंने संघ पर निशाना साधा है. राहुल पहले भी कई बार संघ पर संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करने का आरोप लगा चुके हैं. 


ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी से ज्यादा राहुल गांधी संघ पर हमलावर क्यों हैं? दरअसल, राहुल गांधी कई इंटरव्यू में कह चुके हैं कि ये सरकार बचाने और हटाने की लड़ाई नहीं है. यह विचारधारा की लड़ाई है. बीजेपी की विचारधारा तय करने का काम जनसंघ के जमाने से ही संघ करता आया है.


संघ के प्रचारक ही बीजेपी में नंबर दो (संगठन महासचिव) बनाए जाते हैं. अब तक जितने भी बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं, उनमें से अधिकांश का बैकग्राउंड भी संघ का ही रहा है. ऐसे में विचारधारा के मामले में राहुल गांधी बीजेपी के बदले संघ पर ही निशाना साधते हैं.


मुस्लिम ब्रदरहुड क्या है?
मिस्र में 1928 में सुन्नी नेता हसन अल बन्ना ने इस्लामिक देश बनाने की मांग को लेकर मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थापना की. बन्ना मिस्र के एक स्कूल में शिक्षक और इमाम थे. बन्ना ने उस वक्त राजशाही शासन के सामने राज्य, अर्थव्यवस्था और समाज के इस्लामीकरण करने की मांग रखी, जिसे ठुकरा दिया गया. मिस्र में पश्चिमी देशों का प्रभाव उस वक्त जोरों पर था. 


सरकार से मांग खारिज होने के बाद हिज्ब अल-इखवान अल-मुस्लिमीन के सहारे मिस्र में आंदोलन चलाया गया. इसमें कहा गया कि कुरान हमारा कानून है और जिहाद रास्ता. अल्लाह के उद्देश्य के लिए मरना ही हम सबके जीवन का लक्ष्य है. बन्ना का यह संदेश पूरे मिस्र में तेजी से फैल गया. 


1940 में इस संगठन से 5 लाख लोग जुड़ गए, जिसके बाद वहां हुकूमत सकते में आ गई. इजरायल से युद्ध के दौरान मुस्लिम ब्रदरहुड ने फिलिस्तीन का समर्थन देने का ऐलान किया और उस वक्त की मिस्र सरकार को यहूदियों का प्रशंसक बता दिया. ब्रदरहुड यहीं नहीं रुका, उसने मिस्र में आंतरिक युद्ध छेड़ दिया, जिसके बाद सरकार एक्शन मोड में आ गई.


कई कार्यकर्ताओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई. हजारों कार्यकर्ताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया गया.


प्रधानमंत्री की हत्या और रडार पर ब्रदरहुड
साल था 1948. राजशाही शासन में प्रधानमंत्री थे महमूद फहमी अल-नोकराशी. अल-नुकराशी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है. आरोप लगता है मुस्लिम ब्रदरहुड पर. क्योंकि गोली मारने वाले संदिग्ध हत्यारा इसी संगठन से जुड़ा था.


प्रधानमंत्री की हत्या के बाद ब्रदरहुड सरकार की रडार पर आ जाती है. ब्रदरहुड पर आंशिक प्रतिबंध लगाया जाता है. इसे सिर्फ इस्लामी संगठन के रूप में मान्यता दी जाती है और राजनीतिक मान्यता छीन ली जाती है. 


मुस्लिम ब्रदरहुड के सैकड़ों कार्यकर्ता मिस्र के ऑपरेशन में मारे जाते हैं. 1949 में हसन अल बन्ना की हत्या भी सरकारी एजेंटो द्वारा कर दी जाती है. पूरे मिस्र में बवाल मच जाता है. 


1954 में बैन हो गया मुस्लिम ब्रदरहुड
1952 में मिस्र से राजशाही खत्म हो गया और गमाल अब्देल नासर देश के राष्ट्रपति बने. मुस्लिम ब्रदरहुड सैन्य शासन से खफा थे. इसी दौरान ब्रदरहुड के कार्यकर्ता अब्दुल मुनीम अब्दुल रऊफ ने राष्ट्रपति को मारने का असफल प्रयास किया.


इस घटना के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया. हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में रखा गया. इसी दौरान सैय्यद कुतुब नामक एक ब्रदरहुड के कार्यकर्ता ने जिहाद की अवधारणा जेल में ही लिखी.


बाद में इसी को आधार बनाते हुए अलकायदा और आईएसआईएस आतंकवादी संगठन बने. 1966 में कुतुब को फांसी दे दी गई. 1970 के दशक में अनवर अल सआदत को मिस्र की कमान मिली.


सआदत ने ब्रदरहुड से समझौते की कोशिश शुरू कर दी. शआदत की बातों को मानते हुए ब्रदरहुड ने हिंसा छोड़ने का ऐलान कर दिया. इसके बाद ब्रदरहुड के सभी कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया.


सआदत की हत्या और मिस्र में चुनाव
1980 में सआदत की हत्या कर दी जाती है. आरोप अल जिहाद पर लगा, जो ब्रदरहुड से टूट कर बना था. इस घटना के बाद फिर से पूरे मिस्र में अशांति फैल गई. 1984 में मिस्र में आम चुनाव कराए जाने की घोषणा की गई. 


1984 में ब्रदरहुड ने वफाद पार्टी के साथ गठबंधन किया. इस चुनाव में ब्रदरहुड को ज्यादा फायदा नहीं मिला. उनका गठबंधन 450 में से सिर्फ 65 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई. इसके बाद लगातार कई चुनावों में ब्रदरहुड को सफलता नहीं मिली.


2011 में मुबारक का तख्तापलट
2010 के संसदीय चुनाव में होस्नी मुबारक ने एकतरफा जीत दर्ज की, लेकिन विपक्षी दलों ने मुबारक पर फर्जी तरीके से जीतने का आरोप लगाया. मुबारक के खिलाफ तहरीर चौक पर लाखों लोग जुट गए.


इस आंदोलन के पीछे ब्रदरहुड का हाथ बताया गया. सभी ने राष्ट्रपति होस्नी मुबारक सत्ता छोड़ने की मांग रखी. मुबारक शुरू में तो सेना के बदौलत आंदोलन पर कंट्रोल करना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी. 


30 साल तक मिस्र में राज करने के बाद होस्नी मुबारक ब्रदरहुड के दबाव में सत्ता से बेदखल हो गए. इसके बाद मोहम्मद मोरसी मिस्र के राष्ट्रपति बनाए गए. हालांकि, कोर्ट के फैसले की वजह से मोरसी का भी तख्तापलट हो गया और अब्दुल फतह अल सीसी मिस्र के राष्ट्रपति बनाए गए. 


अल-सी-सी ने ब्रदरहुड पर फिर से बैन लगा दिया. 2019 में अमेरिका ने अल-सी-सी से ब्रदरहुड को आतंकी संगठन घोषित करने के लिए कहा. अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि ब्रदरहुड कई भाग टूटकर फिर से मिस्र में हिंसा फैलाने का काम करेगी.


अब कहानी आरएसएस की...
1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. संघ का शुरुआती उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट करना और उनके विकास को दिशा देना था. बाद में वसुधैव कुटुंबकम को संघ ने अपना मूल मंत्र बनाया.


वर्तमान में संघ के 50 लाख से भी अधिक स्वयंसेवक संघ है. इसके प्रमुख को सरसंघचालक कहते हैं. 1948 में गांधी जी की हत्या में नाम आने के बाद संघ पर पहली बार बैन लगा था. उस वक्त सरसंघचालक गुरु गोवलकर थे. 


1975 में संघ पर दूसरी बार बैन लगा और तत्कालीन संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस समेत 1300 से अधिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. 


संघ ने इसके बाद लिखित रूप से संविधान बनाया और सामाजिक कार्यों में ही सिर्फ हिस्सेदारी लेने की बात कही. 1980 तक संघ से आए लोग जनसंघ के जरिए राजनीति करते थे, लेकिन बीजेपी की स्थापना के बाद कहानी बदल गई.


मालेगांव विस्फोट के वक्त कई संघ कार्यकर्ताओं पर बम विस्फोट कराने और उसकी साजिश में शामिल होने का आरोप लगा. प्रचारक इंद्रेश कुमार के खिलाफ एटीएस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दिया था. हालांकि, संघ हमेशा इसे साजिश करार देता रहा.