Afghan Embassy: भारत में अफगान दूतावास के बंद होने के बाद नीदरलैंड में पूर्व भारतीय राजदूत भास्वती मुखर्जी ने बताया कि दूतावास को बंद करने का फैसला भारत की वजह से नहीं लिया गया है. 


उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि दूतावास को बंद करने का फैसला वास्तव में भारत की वजह से नहीं लिया गया है, बल्कि दिल्ली में अफगानिस्तान दूतावास के भीतर आंतरिक समस्याएं इसकी वजह हैं. ये काबुल में नई सरकार की ओर शुरू की गई हैं, जो पिछली सरकार का पूरी तरह से विरोध करती है. मेरे नजरिए से अफगान दूतावास के बंद होने का यही असली कारण है."


क्या है मामला?


दरअसल, शनिवार को दिल्ली में अफगानी दूतावास ने एक ट्वीट के जरिए जानकारी दी कि वह 1 अक्टूबर से भारत में अपनी सेवाएं खत्म कर देगा. अफगानिस्तान दूतावास ने तालिबान सरकार की ओर से "संसाधनों की कमी" और "अफगानिस्तान के हितों को पूरा करने में नाकामयाबी" का हवाला देते हुए यह फैसला लिया.


दूतावास ने कहा कि कुछ वाणिज्य दूतावास हैं जो तालिबानी सरकार के निर्देश और फंड पर काम करते हैं, वे वैध नहीं हैं और न ही वे चुनी हुई सरकार के मकसद के मुताबिक काम कर रहे हैं.


'उनके पास फंड की भी कमी होगी'


भास्वती मुखर्जी ने दूतावास की फंड की कमी की ओर ध्यान खींचा. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि उनके पास फंड की भी कमी होगी क्योंकि दूतावास चलाना और राजदूत होना बहुत महंगा है. आपको बिजली, पानी और कई दूसरे खर्चों के लिए भुगतान करना पड़ता है. आपको अपने स्थानीय कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करना होता है."


उन्होंने आगे कहा, "काबुल में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद उन्होंने अपने ही लोगों को यहां भेजा. हालांकि तालिबान सरकार को भारत समेत अब तक किसी भी सरकार ने मान्यता नहीं दी है. इस बीच, पहले राजदूत ने भारत छोड़ दिया और वर्तमान में किसी देश में निर्वासन में रह रहे हैं."


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