पड़ोसी देश पाकिस्तान में घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. इमरान की अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के 24 सांसदों की बगावत के बाद सरकार अल्पमत में आ गई है. इमरान पर इस्तीफे का दवाब लगातार बढ़ता जा रहा है, सेना ने भी इमरान को कुर्सी छोड़ने का इशारा कर दिया लेकिन इमरान अड़े हुए हैं, अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इमरान खुद इस्तीफा देते हैं या सेना जबरन उन्हें गद्दी से उतारा जाता है और अगर इमरान को हटाया जाता है तो उनकी जगह नए प्रधानमंत्री के रूप में कौन पद संभालेगा या फिर से पाकिस्तान पर सेना का राज होगा.
पाकिस्तान में बड़बोले इमरान बड़ी मुसीबत में फंस गए है, अपनी पार्टी के सांसद बागी हो गए हैं, विपक्ष इस्तीफे की मांग कर अड़ा है, इस बीच सेना ने भी इमरान पर लगाम कस दिया है, अब इमरान ऐसे चक्रव्यूह में फंस गए हैं जहां से निकलना लगभग नामुमकिन है.
पाकिस्तान डे पर इस्लामाबाद में हो रहा ये जलसा बतौर प्रधानमंत्री इमरान खान की आखिरी आवामी जहूर हो सकती है. क्योंकि इसके आगे जो होगा उसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार है. पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा अपने मातहत अफसरान के साथ मिलकर इमरान का मुकद्दर तय कर चुके हैं. इमरान को सिर्फ एक विकल्प दिया गया है. कुर्सी छोड़ो, इज्जत बचाओ.
इमरान खान को लेना होगा कोई फैसला
इस बीच पाकिस्तान से छनकर आ रही खबरें बता रही हैं कि आज इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक खत्म होते ही इमरान खान को कोई फैसला लेना होगा या तो ये बाजवा के कहे मुताबिक प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ेंगे या सेना दखल देकर इन्हें रूखसत करेगी. 25 मार्च को पाकिस्तानी संसद में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की नौबत भी नहीं आने वाली है.
पाकिस्तान में इमरान और जनरल बाजवा के बीच मतभेद की शुरुआत हुई थी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के तब के चीफ जनरल फैज को हटाने और नए चीफ की नियुक्ति को लेकर, और अब ये रिश्ते कितने बिगड़ चुके हैं उसकी गवाही है ये बयान, जिसमें इमरान खुलेआम भारतीय सेना की तारीफ कर रहे हैं , लेकिन निशाने पर है इनकी अपनी फौज.
बताया जा रहा है कि कभी सेना से लाडले रहे इमरान खान ने विपक्ष के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए खुद बाजवा से सुलह की भी कोशिश की, पूर्व आर्मी चीफ राहिल शरीफ को जनरल बाजवा के पास भेजा लेकिन बात नहीं बनी. अब बाजवा हर हाल में इमरान को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं और इसका एकमात्र तरीका है तख्तापलट वैसे भी पाकिस्तान में ये शब्द कोई नया नहीं है.
पहले भी मच चुकी है सियासी उठापटक
साल 1958 मे जनरल अयूब खान ने तत्कालीन राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा को हटाया खुद राष्ट्रपति बने. साल 1969 में पाकिस्तान की सत्ता पर जनरल याहया खान का कब्जा हुआ. साल 1977 जनरल जिया उल हक ने तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली. साल 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और राष्ट्रपति बन कर कमान अपने हाथ में ली. पाकिस्तान का इतिहास गवाह रहा है कि जब-जब यहां सियासी उठापटक मची है, सेना ने मौके का फायदा उठाया, इस बार भी यही हालात हैं.
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