Israel New Government: 'धार्मिक यहूदीवाद' क्या है? बेंजामिन नेतन्याहू के इजरायल का कमान संभालने से क्या फ़िलिस्तीनियों की फिर से बढ़ेगी मुश्किलें
What is Religious Judaism: धार्मिक यहूदीवाद को आसान शब्दों में समझें तो यह यहूदियों का, यहूदी संस्कृति का राष्ट्रवादी राजनैतिक आन्दोलन है जो इजराइल के ऐतिहासिक भूभाग में यहूदी देश की पुनर्स्थापना का समर्थन करता है.
Religious Zionism in the next Israeli govt: इज़राइल की सबसे दक्षिणपंथी सरकार के गठन की घोषणा हो गई है. देश के नामित प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग को सूचित करने के बाद अब नई सरकार बनने का रास्ता साफ है. अब इजारयल में एक "धार्मिक ज़ायोनीवाद" सरकार केंद्र में होगी. नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के सदस्य प्रमुख पदों पर काबिज होंगे. बेंजामिन नेतन्याहू और "धार्मिक ज़ायोनीवाद" समर्थक पार्टियों के समर्थन से चलने वाली नई इजारयल की सरकार के आने से फिलिस्तीनियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?. 'धार्मिक यहूदीवाद' आखिर है क्या और कैसे इसकी शुरुआत हुई, आइए ये सबकुछ जान लेते हैं.
'धार्मिक यहूदीवाद' क्या है?
धार्मिक यहूदीवाद को आसान शब्दों में समझें तो यह यहूदियों का, यहूदी संस्कृति का राष्ट्रवादी राजनैतिक आन्दोलन है जो इजराइल के ऐतिहासिक भूभाग में यहूदी देश की पुनर्स्थापना का समर्थन करता है.
एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी विचारधारा के रूप में स्थापित इजरायल का कई रूढ़िवादी यहूदियों ने शुरुआत में विरोध किया था. 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद भी यहूदियों का एक महत्वपूर्ण अनुपात इसका विरोध करता रहा.
इज़राइल राज्य की स्थापना से पहले, धार्मिक ज़ियोनिस्ट मुख्य रूप से चौकस यहूदी थे जिन्होंने इज़राइल की भूमि में यहूदी राज्य बनाने के ज़ायोनी प्रयासों का समर्थन किया था. उनकी विचारधारा तीन स्तंभों के इर्द-गिर्द घूमती है- इज़राइल की भूमि, इज़राइल के लोग और इज़राइल का टोरा...
धार्मिक ज़ायोनीवादियों का मानना है कि " एरेत्ज़ इज़राइल " ( इज़राइल की भूमि) का वादा प्राचीन इज़राइलियों को भगवान ने किया था. अब आधुनिक यहूदियों का दायित्व है कि वे उस भूमि पर अधिकार करें और उसकी रक्षा करें जो टोरा के न्याय के उच्च मानकों के अनुरूप हो. इससे अलग ऐतिहासिक फिलिस्तीन के लिए यहूदी लोगों का राष्ट्रवादी दावा पारंपरिक ज़ायोनीवादी सोच का केंद्र है.
धार्मिक ज़ियोनिस्ट आंदोलन तभी बढ़ा जब इज़राइल में रूढ़िवादी समुदाय का अधिक आबादी हो गया और देश की जनसंख्या में अधिकतर लोग दक्षिणपंथी विचारों के हो गए.
धार्मिक ज़ायोनी' पार्टियों ने कैसा प्रदर्शन किया?
इज़राइली मीडिया के अनुसार, कब्जे वाले वेस्ट बैंक में रहने वाले नौ सदस्य बेंजामिन नेतन्याहू की नई सरकार में बड़े पदों पर सेवा दे सकते हैं. इनमें से छह संसदीय चुनावों के दौरान "धार्मिक यहूदीवाद" बैनर के तहत एक साथ चलने वाले दलों के गठबंधन से हैं.
धार्मिक ज़ायोनीवाद गठबंधन नेतन्याहू के मुख्य गठबंधन सहयोगी के रूप में उभरा है. गठबंधन मुख्य रूप से बेज़ेल स्मोट्रिच की धार्मिक ज़ायोनीवाद पार्टी और इतामार बेन-गवीर की यहूदी पावर पार्टी को मिलाकर बना था. नेतन्याहू ने उन्हें समान विचारधारा के कारण एक साथ आकर चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था. हालांकि बाद में ये सहयोगी अलग हो गए थे, पर एक बार फिर समर्थन दिया है.
फ़िलिस्तीनियों के प्रति धार्मिक ज़ायोनी पार्टियों का स्टेंड
स्मोट्रिच और बेन-गवीर दोनों कब्जे वाले वेस्ट बैंक में अवैध बस्तियों का विस्तार करने और फिलिस्तीनी भूमि के अधिग्रहण के अपने इरादे के बारे में मुखर हैं. दोनों फिलिस्तीनियों के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए मशहूर हैं. बेन-गवीर अरब देशों के खिलाफ नस्लवादी उकसावे और "आतंकवाद" के समर्थन के साथ-साथ LGBTQ सक्रियता के लिए 2007 में सजा के प्रावधान का भी समर्थन कर चुके हैं. कुल मिलाकर धार्मिक ज़ायोनी पार्टि कभी भी फिलिस्तिनियों के हित में नहीं रही है. ऐसे में तनाव बढ़ने के आसार हैं.
इजरायल में हुए चुनाव के नतीजे यहां समझें
नेतन्याहू की लिकुड पार्टी इजरायल चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. उन्हें शास, यूनाइटेड टोरा यहूदी धर्म, धार्मिक यहूदीवाद, यहूदी शक्ति और नोआम सहित दक्षिणपंथी ब्लॉक का समर्थन प्राप्त है. नेतन्याहू की सत्तारूढ़ लिकुड पार्टी ने केसेट में 32 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि निवर्तमान प्रधानमंत्री यायर लैपिड की येश एटिड को 24 सीटें मिलीं.
अंतिम मतगणना समाप्त होने के बाद हुए चुनावों का सबसे बड़ा आश्चर्य धार्मिक ज़ायोनीवाद पार्टी रही, जिसने 14 सीटें जीतीं और तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. नेतन्याहू के अन्य संभावित गठबंधन सहयोगी, शास और यूनाइटेड टोरा यहूदीवाद ने क्रमशः 11 और सात सीटें जीतीं, जिससे ब्लॉक की कुल संख्या 64 हो गई.
अब अमेरिकी मीडिया वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक गठबंधन के लिए जारी वार्ता के 38 दिन गुजरने के बाद नेतन्याहू को सरकार बनाने में कामयाबी हासिल हुई और वो धार्मिक ज़ायोनी पार्टियों के समर्थन से सरकार बनाने जा रहे हैं.