रिसर्च में खुलासा- एशियाई मूल के लोग कोरोना का टीका लगवाने में इच्छुक नहीं
ब्रिटेन में एक रिसर्च के मुताबिक ‘ब्लैक, एशियन एंड माइनॉरिटी एथनिक’ समूह सहित ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोग कोरोना का टीका लगवाने को इच्छुक नहीं है.
लंदन: ‘ब्लैक, एशियन एंड माइनॉरिटी एथनिक’ (बीएएमई) समूह सहित ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोग कोविड-19 का टीका लगवाने को इच्छुक नहीं है. नए रिसर्च में यह दावा करते हुए ब्रिटेन सरकार से अधिक लक्षित अभियान चलाने की अपील की गई है. ब्रिटने में ‘फाइजर/बायोएनटेक’ के विकसित कोविड-19 का टीका पहले एक सप्ताह में ही करीब 1,38,000 लोगों को लगाया जा चुका है.
‘रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ’ के किए गए रिसर्च में पाया गया कि ब्रिटेन के चार में से तीन लोग (76 प्रतिशत) अपने डॉक्टर की सलाह पर टीका लगवाने को तैयार हैं. जबकि केवल आठ प्रतिशत ने ही ऐसा ना करने की इच्छा जाहिर की. वहीं, बीएएमई पृष्ठभूमि (199 प्रतिभागियों) के केवल 57 प्रतिशत प्रतिभागी टीका लगवाने को राजी हुए , जबकि 79 प्रतिशत श्वेत प्रतिभागियों ने इसके लिए हामी भरी.
लोगों में टीके के प्रति भरोसा कम दिखा- रिसर्च
रिसर्च में कहा गया कि एशियाई मूल के लोगों में टीके के प्रति भरोसा कम दिखा क्योंकि केवल 55 प्रतिशत ने ही इसको लगवाने के लिए हां कहा. आरएसपीएच की मुख्य कार्यकारी क्रिस्टीना मैरियट ने कहा, ‘‘हमें कई वर्षों से यह पता है कि अलग-अलग समुदायों का राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा पर अलग-अलग स्तर का विश्वास है. हाल ही हमने देखा कि टीकाकरण विरोधी संदेशों के जरिए विशेष रूप से विभिन्न समूहों को निशाना बनाया गया, जिसमें विभिन्न जातीय या धार्मिक समुदाय शामिल हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन असल में ये समूह सबसे अधिक कोविड से प्रभावित हुए हैं. उनके बीमार होने और मरने का खतरा भी बना रहेगा. इसलिए, सरकार, एनएचएस और स्थानीय जन स्वास्थ्य सेवाओं को तेजी से और लगातार इन समुदायों के साथ काम करना चाहिए. उनके साथ काम करने का सबसे प्रभावी तरीका स्थानीय समुदायिक समूहों के साथ काम करना होगा.’’
ब्रिटेन के अल्पयंख्यक जातीय समूहों पर कोरोना का पड़ा सबसे अधिक असर
पहले सामने आए कई रिसर्चों में भी यह बात सामने आई है कि ब्रिटेन के अल्पयंख्यक जातीय समूहों पर कोविड-19 का सबसे अधिक असर पड़ा है. जहां काम करने और रहने की स्थिति बीएएमई समूहों में मृत्यु दर अधिक होने का बड़ा कारण मानी जाती है.
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