भारतीय मूल के ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना तय हो गया है. हालांकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही कई चुनौतियां उनका मुंह बाए इतंजार कर रही हैं. बढ़ती महंगाई, चल रही हड़तालें, स्वास्थ्य संकट और यूरोप में युद्ध जैसी कई चुनौतियों का सामना ऋषि सुनक को करना होगा. इतना ही नहीं उनको कंजरवेटिव पार्टी के भीतर जो दरार है उसको भी हैंडल करना होगा. आइए विस्तार से जानते हैं वो कौन-कौन सी समस्याएं होंगी जिसका हल ऋषि सुनक को ढूंढना है.


1-आर्थिक और सामाजिक संकट


ऋषि सुनक के सामने सर्वोच्च प्राथमिकता आर्थिक संकट को हल करना है. मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से अधिक है, जो किसी भी जी 7 देश में सबसे ज्यादा है. मंदी के खतरे को ऋषि सुनक अच्छी तरह जानते हैं और इसलिए ही लिज़ ट्रस की सरकार द्वारा कर-कटौती बजट घोषणा पर उन्होंने हैरानी जताई थी.


सुनक की पहली प्राथमिकता होगी कि वो ब्रिटेन के लोगों को आश्वस्त करें कि सर्दियों में व्यापक गरीबी और आर्थिक अनिश्चितता नहीं होने वाली है. ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ट्रेन चालक और अन्य क्षेत्र पहले ही हड़ताल पर चले गए हैं. इतना ही नहीं अपने 106 साल के इतिहास में पहली बार, रॉयल कॉलेज ऑफ नर्सिंग अपने सदस्यों द्वारा औद्योगिक कार्रवाई की बात कर रहा है. नेशनल हेल्थ सर्विस की भी हालत बुरी है.


पार्टी को एकजुट करना
12 साल सत्ता में रहने के बाद, आज कंजर्वेटिव पार्टी पहले से कहीं ज्यादा विभाजित है. कई लोगों में आपसी भीतरी कलह चल रही है. लगभग 60 मंत्रियों का विश्वास खोने के बाद बोरिस जॉनसन ने जुलाई में इस्तीफा दे दिया था. ट्रस ने केवल 44 दिनों के बाद अपने इस्तीफे की घोषणा की. 2016 के बाद से डेविड कैमरन, थेरेसा मे, जॉनसन और ट्रस के बाद सनक टोरी के पांचवें प्रधानमंत्री बनेंगे.


टोरी के अधिकांश सांसदों ने सनक का समर्थन किया है. ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें एक ठोस जनादेश दिया गया है,लेकिन उनके सामने पार्टी को अब एकजुट रखने की चुनौती होगी. पार्टी के भीतर, अभी भी बोरिस प्रशंसकों का एक गुट मौजूद है. वे जॉनसन की सरकार के पतन में सनक की भूमिका को विश्वासघात के रूप में देखते हैं.


उत्तरी आयरलैंड


सनक, जिन्होंने 2016 में यूरोपीय संघ से अलग होने का समर्थन किया था, उनको अब उत्तरी आयरलैंड में व्यापार नियमों से निपटना होगा. वर्तमान में संसद के माध्यम से चल रहे एक मसौदा विधेयक में सौदे के कुछ हिस्सों को खत्म करने का प्रस्ताव है. यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि यह प्रतिशोधी व्यापार प्रतिबंधों को चिंगारी दे सकता है. ऐसे में उत्तरी आयरलैंड से व्यापार को लेकर उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना जरूरी है.


अप्रवास (Immigration)
अप्रवास (Immigration) यानी किसी एक भौगोलिक इकाई से किसी अन्य भौगोलिक इकाई में व्यक्तियों के आ कर बस जाने की समस्या ब्रिटेन में काफी बड़ी समस्या है जिससे सुनक को डील करना है.


ब्रेक्सिट सरकार के बाद से, टोरी सरकारों ने भी अप्रवासन की समस्या से डील करने के वादे किए लेकिन पूरे नहीं हुए. इसी साल रिकॉर्ड संख्या में 37,570 लोग इंग्लैंड पहुंचे हैं. सुनक ने ब्रिटेन में अवैध रूप से पहुंचने वाले शरणार्थियों को रवांडा भेजने की एक सरकारी योजना का समर्थन किया था, लेकिन कानूनी कार्रवाई के कारण यह प्रोजेक्ट महीनों से अटका हुआ है. ऐसे में अब उनको अप्रवासियों को लेकर सख्त और ब्रिटेन के हित में फैसला लेना होगा.


विदेश नीति 


किसी भी देश के नेता के लिए सबसे बड़ी चुनौती विदेश नीति ही होती है. ऐसे में ब्रिटेन जो आर्थिक संकट का खुद सामना कर रहा है वो किस तरह की विदेश नीति सुनक की सरकार में अपनाता है वह देखना दिलचस्प होगा. यूक्रेण-रूस युद्ध में ब्रिटेन की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. ऐसे में क्या ब्रिटेन आर्थिक मदद यूक्रेण को देता रहेगा यह सबसे बड़ा सवाल है.


यूके इस वर्ष यूक्रेन को 2.3 बिलियन पाउंड (2.6 बिलियन डॉलर) की सैन्य सहायता प्रदान कर रहा है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर किसी भी अन्य देश से अधिक है. 


वहीं चीन को लेकर सुनक का रुख साफ है. वो कई मौकों पर चीन को घरेलू और वैश्विक सुरक्षा के लिए "नंबर-एक खतरा" बता चुके हैं. भारत के साथ वो अच्छे संबंध के पक्षधर हैं. ऐसे में सुनक की विदेश नीति अन्य देशों को लेकर कैसी होगी यह बड़ा सवाल है.