UK General Election Results 2024: ब्रिटेन में ऋषि सुनक की हार से भारत को क्या फायदा है?
ब्रिटेन में हुए संसदीय चुनाव के बाद रिजल्ट अंतिम चरण में है. लेबर पार्टी जहां, 400 के पार जाती दिख रही है, वहीं कंजर्वेटिव 111 पर सिमट सकती है. अब कीर स्टार्मर ब्रिटेन के नए पीएम बनने वाले हैं.
UK General Election Results 2024: भारत के दामाद और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक चुनाव हार गए हैं. न सिर्फ हारे हैं बल्कि बुरी तरह से हारे हैं. ब्रिटेन में इस बार लेबर पार्टी की जीत हुई है, जिसके मुखिया कीर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. लेकिन सवाल है कि आखिर ब्रिटेन में ऐसा क्या हुआ कि जिस जोश-खरोश के साथ ऋषि सुनक प्रधानमंत्री बनाए गए, वो अपना कार्यकाल खत्म होते-होते इतने अलोकप्रिय हो गए कि एकतरफा हार का सामना करना पड़ा. आखिर ऋषि सुनक की हार की वजहें क्या हैं. क्या ऋषि सुनक की हिंदूवादी छवि और मंदिरों में पूजा-अर्चना का ब्रिटेन के वोटरों पर कोई नकारात्मक असर पड़ा. क्या ऋषि सुनक की सत्ता जाने और कीर स्टार्मर की सत्ता आने से भारत पर भी कोई बड़ा असर पड़ने वाला है, आज इसी मुद्दे पर चर्चा करने वाले हैं.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे ऋषि सुनक ने भले ही अपनी नॉर्थ इंग्लैंड की सीट जीत ली है, लेकिन उनकी कंजर्वेटिव पार्टी चुनाव हार चुकी है. ये हार कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ब्रिटेन की कुल 650 सीटों में से लेबर पार्टी ने 400 से भी ज्यादा सीटें जीत ली हैं. ऋषि सुनक की पार्टी कंजर्वेटिव 111 पर सिमटती नज़र आ रही है. इतना ही नहीं ऋषि सुनक से पहले ब्रिटेन की प्रधानमंत्री रह चुकीं लिज ट्रस तो अपनी सीट भी नहीं बचा पाईं. ऋषि सुनक के 11 मंत्री चुनाव हार गए हैं. लिहाजा वोटों की अंतिम गिनती पूरी होने से पहले ही ऋषि सुनक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी हार मान ली और अपने विरोधी कीर स्टार्मर को ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने की बधाई दे दी.
14 साल में कंजर्वेटिव ने दिए 5 प्रधानमंत्री
इस बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर ऋषि सुनक के साथ ऐसा हुआ क्यों? इसकी वजह एंटी इनकम्बेंसी और एक ही पार्टी के बदलते प्रधानमंत्री चेहरे बताया जा रहा है. ब्रिटेन में पिछले 14 साल से एक ही पार्टी का शासन रहा है. और वो पार्टी है ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी. 14 साल के शासन काल में कंजर्वेटिव पार्टी ने पांच प्रधानमंत्री देखे. 2010 में हुए चुनाव के बाद कंजरवेटिव पार्टी के डेविड कैमरन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे. पांच साल बाद 2015 के चुनाव में भी कंजर्वेटिव ही जीते और फिर से कैमरन ही प्रधानमंत्री बने. लेकिन एक साल बीतते-बीतते कैमरन ने इस्तीफा दे दिया.
बोरिस जॉनसन के समय में कंजर्वेटिव की हुई थी बड़ी जीत
क्योंकि तब यूरोपियन यूनियन से ब्रेक्जिट के लिए चुनाव हुआ था और तब ब्रिटेन के लोगों ने तय किया था कि वो यूरोपियन यूनियन से अलग होंगे. ये फैसला कैमरन के खिलाफ था, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह ली टेरेसा मे ने. 2019 में टेरेसा मे को भी जाना पड़ा और इसकी वजह भी यूरोपियन यूनियन और वहां का चुनाव था. इसके बाद उनकी जगह बोरिस जॉनसन ने ली और 2019 के आखिर में बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में ही ब्रिटेन में आम चुनाव हुए. प्रधानमंत्री नए थे, तो जनता ने सब भूलकर बोरिस जॉनसन और उनकी पार्टी कंजर्वेटिव को झोली भरकर वोट दिए. 650 में से 365 सीटों पर बोरिस जॉनसन की जीत हुई जो पिछले चुनाव से 48 सीटें ज्यादा थीं.
ब्रिटेन में समय से पहले हुआ चुनाव
बोरिस की सरकार में ही कोरोना आ गया और दुनिया में लॉकडाउन लग गया. लेकिन बोरिस जॉनसन ने कोरोना नियमों का पालन नहीं किया. आलोचना हुई तो इस्तीफा दे दिया और फिर लिज ट्रस ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं. लेकिन वो भी महज 50 दिनों तक ही अपने पद पर रह पाईं और फिर आए ऋषि सुनक. लेकिन तब तक कंजर्वेटिव के खिलाफ पर्याप्त माहौल बन चुका था. ऋषि सुनक की हर कोशिश नाकाम होती दिखी. रही-सही कसर उस सट्टेबाजी घोटाले ने पूरी कर दी, जिसमें ऋषि सुनक के करीबियों का नाम सामने आ गया. लिहाजा ऋषि सुनक ने समय से पहले चुनाव करवाने का फैसला किया ताकि एंटी इनकम्बेंसी को कम किया जा सके, लेकिन ऋषि सुनक का फैसला काम नहीं आया और ऋषि सुनक की पूरी पार्टी ही चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई.
ब्रिटेन में चरम पर पहुंची बेरोजगारी और महंगाई
बाकी तो कहानी इतनी सी है कि साल 2016 में ब्रिटेन में हुए ब्रेग्जिट यानी कि यूरोपियन यूनियन से अलग होने के फैसले के बाद से ही ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कभी पटरी पर लौट नहीं पाई है. पहले कोरोना ने तबाही मचाई और इस तबाही के बीच प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की आयोजित शराब पार्टियों ने पूरी पब्लिक को कंजर्वेटिव के खिलाफ कर दिया. महंगाई से लेकर बेरोजगारी तक ब्रिटेन में चरम पर पहुंच गई. प्रति व्यक्ति आय 2016 से ही लगातार घटती जा रही है, अनाज की कीमतें आसमान छू रही हैं. अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है और कोरोना के बाद से ही इसे कोई भी नेता संभाल नहीं पाया है.उधर अवैध प्रवासियों की संख्या ब्रिटेन में बढ़ती ही जा रही है, जिसे रोकने का वादा तो ऋषि सुनक ने किया था, लेकिन वो नाकाम रहे. नतीजा सामने है और अब ऋषि सुनक सत्ता से बाहर हैं.
ऋषि सुनक के जाने से भारत का नहीं होगा नुकसान
लेकिन सवाल ये है कि ऋषि सुनक का जाने का असर भारत पर क्या पड़ने वाला है. क्योंकि ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले हिंदू प्रधानमंत्री थे. मंदिरों में पूजा करते हुए उनकी तस्वीरें वायरल हुआ करती थीं. वो भारतीय कारोबारी और इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति के दामाद हैं, जिसे लेकर भारत में उत्साह का माहौल रहा है. लेकिन अब ये सब खत्म हो गया है, क्योंकि अब ऋषि सुनक प्रधानमंत्री नहीं रहे. ऐसे में भारत को कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है, उल्टे फायदा ही हुआ है.
धारा 370 पर कीर स्टार्मर ने लिया था भारत का पक्ष
ऋषि सुनक को जिस नेता कीर स्टार्मर ने हराया है, उनकी पार्टी है लेबर पार्टी और ये वही लेबर पार्टी है जिसने भारत पर अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत की आजादी का समर्थन किया था. लेकिन यही वो पार्टी है, जिसके नेता जर्मी कोर्बिन ने 2019 में कश्मीर पर तब बयान दिया था, जब धारा 370 को खत्म किया गया था. तब लेबर पार्टी के नेता जर्मी कोर्बिन ने कहा था कि कश्मीर में मानवीय संकट पैदा हो गया है, हालांकि उसी वक्त इसी लेबर पार्टी के एक और नेता कीर स्टार्मर ने कहा था कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का आपसी मसला है. लेकिन तब बात बिगड़ चुकी थी. भारत ने अपना विरोध भी दर्ज करवाया था. लेकिन इस बीच लेबर पार्टी ही बदल गई.
कीर स्टार्मर से भारत को बड़ी उम्मीद
कश्मीर के खिलाफ बयान देने वाले जर्मी कोर्बिन चले गए और उनकी जगह ले ली भारत के समर्थक कीर स्टार्मर ने और अब वहीं प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. ऐसे में उम्मीद है कि भारत से ब्रिटेन के रिश्ते और भी मज़बूत होंगे, क्योंकि कीर पहले से भी भारत के साथ रिश्ते सुधारने की बात करते आए हैं. अब उनकी सरकार में 10 से ज्यादा सांसद तो भारतीय मूल के हो गए हैं. ऐसे में जो ऋषि सुनक फ्री ट्रेड एग्रिमेंट, वर्क परमिट, वीजा और भारत के पक्ष में सिर्फ तमाम बातें और वादे करते ही दिखे थे, शायद कीर स्टार्मर उन वादों को अमली जामा पहना सकें. यही भारत के हक में है.