रूस ने मंगलवार को यूक्रेन में दो प्रांतों को आजाद घोषित करते हुए अपनी सेना वहां भेजीं. इसके बाद से ही उस पर अमेरिका और अन्य देशों का प्रतिबंध का दौर भी शुरू हो गया. अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से कड़ी कार्रवाई की बात कही जा रही है. हालात ऐसे हो गए हैं जिसमें कभी भी युद्ध हो सकता है. इन सबके बीच इस मसले पर एशिया के दो बड़े देश भारत और चीन की रुख साफ नहीं हो पाया है. अब यह बड़ा सवाल है कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध होता है तो भारत और चीन का स्टैंड क्या होगा. इसके अलावा युद्ध होने पर और क्या असर होंगे. आइए हर पहलु पर करते हैं विस्तार से बात.
यूक्रेन का क्या होगा
क्योंकि इस विवाद में स्पॉट में यूक्रेन है. ऐसे में सबसे पहले बात करते हैं कि युद्ध होने पर यूक्रेन पर क्या असर होगा. रूस हर तरह से यूक्रेन पर भारी है. ऐसे में बात अगर अकेले की हो तो रूस बहुत जल्दी यूक्रेन को युद्ध में हरा सकता है. इन्फर्मेशन और साइबर वॉर में भी रूस यूक्रेन पर भारी है, लेकिन यूक्रेन की सेना अगर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाए जिसमें वह सक्षम है तो यह रूस के लिए 1992 में बनी अफगानिस्तान वाली स्थिति फिर से पैदा कर सकते हैं. यही नहीं रूस के खुद के एक सर्वे में ये बात सामने आई थी कि यूक्रेन में हर तीन में से एक यूक्रीन युद्ध में शामिल होना चाहता है, ऐसे में अगर रूस सेना को हरा भी दे तो यूक्रेन में रहना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा और समय-समय पर चुनौती मिलती रहेगी. यही चीजें यूक्रेन को दूसरा अफगानिस्तान बना सकती हैं.
रूस पर क्या असर
अब इस युद्ध से रूस पर होने वाले असर की बात करें तो यह भी कम व्यापक नहीं हैं. मंगलवार को सिर्फ 2 देशों को मान्यता देने भर की खबर से ही रूस का MOEX स्टॉक इंडेक्स 1.5% लुढ़क गया. सोमवार को इसमें 10% गिरावट हुई थी. 2022 में अब तक यह 20% तक गिर चुका है. इस तनाव का सबसे ज्यादा असर रूस की तेल कंपनी रोजनेफ्ट पर पड़ता दिक रहा है. मंगलवार को इसके स्टॉक 7.5% तक टूट गए. इस गिरावट की वजह से इसका मार्केट कैप 1 हफ्ते में 30 बिलियन डॉलर तक कम हो गया है. क्योंकि अब अमेरिका और अन्य देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है तो स्टॉक मार्केट में और गिरावट देखी जा सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक इन सबकी वजह से रूस की जीडीपी में 1% की गिरावट आ सकती है. यही नहीं सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) पर भी इन सबकी वजह से रोक लगेगी और रूस का इकोनॉमिक आउटपुट 5% तक कम हो जाएगा.
दुनिया पर क्या प्रभाव
आपको जानकर हैरानी होगी कि रूस रोजाना 1 करोड़ बैरल ऑयल प्रोड्यूस कर लेता है, जो ग्लोबल मांग का 10 फीसदी है. यूरोप के अधिकतर देश ऑयल और नेचुरल गैस के लिए रूस पर ही निर्भर हैं. रूस यूरोप में 33 पर्सेंट गैस सप्लाई करता है. वहीं अमेरिका रूस से अपनी मांग का 3 प्रतिशत ऑयल ही लेता है. अगर युद्ध हो जाता है तो रूस यह सब सप्लाई रोक देगा. इससे तेल की कीमत बहुत बढ़ जाएगी. बताया जा रहा है कि युद्ध होने की स्थिति में ऑयल की कीमत 120 से 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है. इसके अलावा रूस पूरी दुनिया में गेहूं का निर्यात भी बड़ी संख्या में करता है. युद्ध होने पर इसकी सप्लाई भी बाधित होगी और खाद्य संकट आ सकता है.
भारत का क्या होगा कदम
इस पूरे मुद्दे पर भारत अभी तक तटस्थ ही नजर आया है. यानी इंडिया ने न तो रूस का समर्थन किया है और न ही यूक्रेन का. उसका कहना है कि बातचीत से ही इस मसले को सुलझाया जा सकता है. सभी पक्षों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति को बनाए रखना चाहिए.
चीन क्या करेगा
रूस और यूक्रेन के मुद्दे पर अभी तक चीन भी सेफ चल रहा है. उसने भी भारत की तरह अभी तक किसी का समर्थन नहीं किया है. UNSC में चीनी प्रतिनिधि ने यूक्रेन विवाद के राजनयिक समाधान खोजने का अनुरोध किया. पर इन सबके बीच 4 फरवरी को विंटर ओलिंपिंक की ओपनिंग सेरेमनी के दौरान पुतिन और शी जिनपिंग की केमिस्ट्री को देखकर लोगों का अंदाजा है कि अगर युद्ध होता है तो चीन रूस का साथ देगा. वैसे भी उसकी अमेरिका से नहीं बनती है.
13 साल पहले जॉर्जिया के साथ भी किया था ऐसा
इस तनाव में एक बात जो देखने वाली है वो ये कि रूस आज जो यूक्रेन के साथ कर रहा है वैसा ही वह 2008 में जॉर्जिया के अबकाजिया और दक्षिण ओसेशिया के साथ कर चुका है. तब उसने इन दोनों को स्वतंत्र देश की मान्यता दी थी. दरअसल इसके पीछे की वजह ये थी कि रूस नहीं चाहता था कि जॉर्जिया नाटो का सदस्य बने. रूस अपने इस मकसद में कामयाब भी रहा था. अब यूक्रेन के साथ भी विवाद की वजह यही है. वह यूक्रेन को नाटो का मेंबर बनने रोकना चाहता है और फिर उसने इसके लिए वही किया है जो 13 साल पहले जॉर्जिया के साथ किया था.
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