किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंजिल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा.
अहमद फराज की यह शायरी अजमल रहमानी और उनके जैसे कुछ और अफगानियों पर फिट बैठती है जो करीब 1 साल पहले अपने देश (अफगानिस्तान) को छोड़कर यूक्रेन में रहने आ गए थे. उन्हें लगा था कि मानों शांति का ठिकाना मिल गया है और वह आराम से जी सकते हैं, लेकिन वह नहीं जानते थे कि 1 साल बाद ही किस्मत उन्हें फिर से उसी मोड़ पर ले आएगी. पिछली बार तालिबान के डर से भागकर यहां आए थे, इस बार रूस के हमलों की वजह से एक हफ्ते पहले पोलैंड का रुख करना पड़ा है.
एक युद्ध छोड़कर आया, तो दूसरा शुरू हुआ
रहमानी ने पोलैंड में घुसने के बाद मीडिया से बातचीत में बताया कि, "मैं एक युद्ध से भागकर दूसरे देश में आता हूं, लेकिन वहां दूसरा युद्ध शुरू हो जाता है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है." रहमानी के इतना कहते ही उनकी 7 साल की बेटी मारवा अपने सॉफ्ट टॉय (डॉग) को कसकर पकड़ लेती है. रहमानी के साथ उनकी पत्नी मीना और 11 साल का बेटा ओमर भी है. परिवार 30 किलोमीटर तक पैदल चलकर पोलैंड बॉर्डर तक पहुंचा. इसके बाद ये लोग शरणार्थियों वाली बस में बैठकर आगे लिए निकले.
एक झटके में दुनिया बदल गई
40 साल के रहमानी कहते हैं कि उन्होंने नाटो के लिए अफगानिस्तान में काबुल एयरपोर्ट पर 18 साल तक काम किया. अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के फैसला से 4 महीने पहले उन्होंने अफगानिस्तान छोड़ने का फैसला किया था. वहां उन्हें औऱ बच्चों को स्कूल जाने पर धमकी मिलती थी. देश छोड़ने से पहले मेरी जिंदगी अच्छे से गुजर रही थी. मेरे पास अपना घर था, कार थी, अच्छी सैलरी थी. मजबूरी में शांति की तलाश में मुझे सबकुछ बेचना पड़ा. एक झटके में सबकुछ खत्म हो गया था. बड़ी मुश्किल से यूक्रेन का विजा मिला था, लगा था कि अब सब ठीक होगा. उन्होंने ओडेसा में घर भी लिया था, लेकिन एक बार फिर सब छोड़कर आना पड़ा है.
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