Russia-Ukraine War One Year: रूस को यूक्रेन पर आक्रमण करने से पहले भले ही लग रहा होगा कि वो उसकी बात मान लेगा, लेकिन इस जंग पर मशहूर शायर साहिर लुधियानवी का ये शेर सटीक बैठता है, "जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी." यूक्रेन पर हमले को एक साल होने में अब महज 5 दिन बचे हैं, लेकिन इस जंग का हल अब-तक दिखाई नहीं पड़ा है. 


24 फरवरी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में " खास सैन्य अभियान" का एलान किया और कुछ मिनट बाद ही राजधानी कीएव सहित पूरे यूक्रेन में मिसाइल हमले शुरू हो गए. इस जंग की जीत-हार का फैसला अधर में है, लेकिन अब-तक इससे अरबों डॉलर स्वाहा हो चुके हैं.


दुनिया में अफरा-तफरी और बेबसी है. दुनिया का आर्थिक ढांचा हिचकोले खाने लगा है. जंग में खर्च हुई इस दौलत से बड़ी आबादी को रोटी मुहैया हो सकती थी. कईयों को तालीम हासिल हो सकती थी, कई जिंदगियां मुस्कुरा सकती थीं, लेकिन हुआ क्या अनगिनत मौतें, हिसाब न लगाया जा सकने वाला नुकसान और रोती-बिलखने को मजबूर दुनिया. ऐसे में बशीर बद्र अगर ये कहें, "सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें, आज इंसां को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत" तो गलत क्या कह गए है.


रो रहे हैं यूक्रेनी राष्ट्रपति क्यों?


रूस को भले ही जंग में इतना गवां कर भी अक्ल न आई हो, लेकिन यूक्रेन को शायद अपनी गलती का एहसास हो गया है. सीना चौड़ा कर एक साल पहले जो यूक्रेन रूस को चुनौती देता नजर आ रहा था वो आज पश्चिमी देशों से  खुद को समर्थन देने की कोशिशों में तेजी लाने और पुतिन का सैन्य फायदा रोकने के लिए हथियारों की डिलीवरी और उस पर आगे के लिए भी जल्द से जल्द प्रतिबंध लगाने की गुहार लगा रहा है.


यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelenskiy) ने म्यूनिख में एक सुरक्षा सम्मेलन में बढ़ते डर के बीच विश्व नेताओं को एक वीडियो संबोधन में कहा है कि रूस एक नए आक्रमण की योजना बना रहा है.


ज़ेलेंस्की ने कहा, "हमें जल्दी करने की जरूरत है. हमें रफ्तार की जरूरत है - हमारे समझौतों की रफ्तार, हमारे डिलिवरी की रफ्तार ... रूसी क्षमता को सीमित करने के लिए फैसलों की रफ्तार."  यूक्रेनी राष्ट्रपति ने आगे कहा. " रफ्तार का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि इस वक्त यह वो रफ्तार है जिस पर जिंदगी निर्भर करती है."


उन्होंने कहा,  "देरी हमेशा से रही है और अभी भी ये एक गलती है." उनका ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब रूस-यूक्रेन के युद्ध एक साल यानी 24 फरवरी आने को है.  यूरोप में 1940 के दशक के बाद के सबसे बड़े युद्ध के बाद ये युद्ध है जो इतना लंबा चल रहा है. 


ज़ेलेंस्की ने स्वीकार किया कि रूस आंशिक तौर से नागरिक और ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमला करके, मुख्य तौर पर दक्षिण में एक आक्रामक हमला करने की कोशिश कर रहा था. इस बीच, उन्होंने कहा, पड़ोसी बेलारूस ऐतिहासिक गलती कर बैठता यदि वो रूसी आक्रमण में शामिल हो गया होता तो. उन्होंने दावा किया कि सर्वेक्षणों से पता चला है कि 80 फीसदी देश युद्ध में शामिल नहीं होना चाहते थे. 


82 अरब से अधिक डॉलर फूंके रूस ने


ऐसा नहीं है कि रूस के हमले से केवल यूक्रेन ही परेशानी में है. रूस को भी इसका अच्छा खासा खामियाजा भुगतना पड़ा है. अरबों डॉलर के नुकसान होने के साथ ही उसे पश्चिमी देशों के सख्त आर्थिक प्रतिबंध झेलने पड़ रहे हैं. रूस के जंग को लेकर हुए खर्चे की बात की जाए तो उसने 24 फरवरी 2022 से लेकर नवंबर 2022 तक महज 9 महीने में उसने अपने सालाना बजट का एक-चौथाई खर्च कर डाला था.


रूस ने इन नौ महीनों में 82 अरब डॉलर युद्ध में लगा डाले थे. उसे यूक्रेन के साथ जंग जारी रखने के लिए हर महीने कम से कम 10 अरब डॉलर की दरकार रही. साल 2021 में रूस का सालाना बजट 340 बिलियन यूरो था. इससे साफ जाहिर है कि मास्को ने इस जंग में अपने सालाना बजट का एक- चौथाई फूंक दिया. ये तब है जब इसमें  वल उसके सैन्य अभियान की प्रत्यक्ष लागत ही शामिल है. इसमें उसका रक्षा पर किया गया खर्च और पश्चिमी देशों के लगाए गए प्रतिबंधों के चलते हुआ आर्थिक नुकसान शामिल नहीं है.


यूक्रेन को भी अरबों का नुकसान


रूस-यूक्रेन की 9 महीने और 10 दिन की जंग में  दिसंबर 2022 तक जहां रूस ने जंग में करीब 8,000 अरब रुपये फूंके तो यूक्रेन भी इस मामले में पीछे नहीं रहा. यूक्रेनी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार ओलेग उस्तेंको ने बीते साल दिसंबर 2022 में कहा था कि यूक्रेन को जंग की वजह से एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 8 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. यूक्रेन को इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ा है.


भले ही अमेरिका, यूरोप,यूक्रेन और रूस के लिए इस जंग के अपने-अपने फायदे और नुकसान हो, लेकिन इसकी कीमत पूरी दुनिया चुका रही है. ये कीमत बीते साल ही  करीब 32 लाख करोड़ रुपये (4 ट्रिलियन डॉलर) की हो चुकी थी. अमेरिका और यूरोप मिलकर यूक्रेन की मदद के नाम पर युद्ध में 12,520 अरब रुपये स्वाहा कर चुके हैं. खाने और ईंधन की बढ़ी हुई कीमतें, बाधित आपूर्ति शृंखला, महंगाई और बेरोजगारी जैसे सभी कारणों को लिया जाए तो इस जंग की वजह से साल 2020 के आखिर तक दुनिया पर करीब 24 लाख करोड़ रुपये (तीन ट्रिलियन डॉलर) भारी पड़े थे. 


20 करोड़ से अधिक लोग गरीबी के शिकार


जंग अधिकतर सैनिक मारे गए थे जिनकी औसतन उम्र 30 साल होगी. अगर इसमें मुद्रास्फिती जैसे कारणों को छोड़ दे तो ये इस उम्र में दुनिया की अर्थव्यवस्था में शामिल होते तो ये कीमत लगभग 144 लाख करोड़ रुपये तक जाती. कोविड महामारी और इस जंग की वजह से दुनिया के 20 करोड़ से अधिक लोग गरीबी के शिकार हुए हैं.


बीते साल 2022 तक दोनों तरफ से 1.90 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत जंग में हुई.  करीब 1.5 करोड़ यूक्रेनी लोग जंग की वजह से जिंदा रहने का संघर्ष करने को मजबूर हैं. लगभग 75 लाख से अधिक लोग विस्थापित होने को मजबूर हुए. यूक्रेनी सेना का दावा था कि जंग में 90,090 रूसी सैनिकों मारे गए. इधर एक अमेरिकी सेना के टॉप जनरल के मुताबिक यूक्रेन के एक लाख से अधिक सैनिक जंग में घायल हुए. उध रूस का दावा था कि यूक्रेन के लगभग 1.5 लाख सैनिक जंग में मारे गए. 


इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूस को इस जंग की क्या कीमत चुकानी पड़ी है क्योंकि जंग की कीमत रूस की पूरी अर्थव्यवस्था से लगभग दोगुनी है. अगर रूस को इस जंग की वजह से दुनिया को हुए नुकसान की कीमत देनी पड़ी तो उसके लिए लगभग 10 साल तक हर रूसी को फ्री में काम करना होगा. 


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